Book Title: Dhwanivardhak Ka Prashna Hal Kyo Nahi Hota Kya Vidyut Aagni Hai
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 1
________________ | ध्वनिवर्धक का प्रश्न हल क्यों नही होता? क्या विद्युत अग्नि है? आज से लगभग पैतीस वर्ष पहले की बात है; अजमेर में बड़े समारोह के साथ साधु सम्मेलन हुआ था। मैं भी उसमें गया था, प्रतिनिधि के रूप में नहीं, गुरुदेव की सेवा में एक साधारण शिष्य के रूप में। ध्वनिवर्धक का प्रश्न आया तो कुछ मुनि बोल गए, और कुछ नहीं बोले। बस, तभी से ध्वनिवर्धक का प्रश्न उलझ गया। संघ में उस समय बड़े-बड़े नामी-गिरामी महारथी थे, परन्तु किनारे का निर्णय नहीं कर सके। और प्रश्न अधिकाधिक जटिल होता गया। अनिश्चय की परम्परा आगे बढ़ चली इसके बाद तो सादडी सम्मेलन हुआ, सोजत सम्मेलन हुआ और फिर भीनासर (बीकानेर) सम्मेलन। ध्वनिवर्धक का प्रश्न अधर में लटकता रहा। भीनासर में इस सम्बन्ध में एक प्रस्ताव पास हुआ, बिलकुल बेकार का। न पुत्रो न पुत्री। न इधर न उधर। सैद्धान्तिक एवं वैज्ञानिक चर्चा होकर निर्णय होना चाहिए था। वैसा तो कुछ हुआ नहीं। बस, आप मान जाइए, आप मान लीजिए। संगठन को कायम रखना है। यह टूट न जाए। और इस प्रकार संगठन के व्यामोह में लूला-लंगड़ा प्रस्ताव पास हो गया, जो अब तक परेशान कर रहा है-विरोधी और अनुरोधी दोनों ही पक्षों को। भक्षितेऽपि लशुने न शान्तो व्याधिः। स्वयं मेरी अन्तरात्मा में कितनी ही बार मुझसे पूछा है-'तूने यह सब क्या किया? सिद्धान्तहीन समझौता कैसे कर गया तू?' क्या उत्तर दूँ मैं? बस, यही कि संगठन की धुन सवार थी मन मस्तिष्क पर। जैसे भी हो, संगठन बना रहे, यही एकमात्र व्यामोह था उन दिनों। यदि वह संगठन बना रहता, तब भी मन को कुछ संतोष तो रहता। पर, वह भी कहाँ रहा? देर-सबेर एक-एक कर के साथी बिखरते और बिखरते गए। और, संगठन केवल संगठन के नाम पर जिंदा रहा। और वह अब भी इसी नारे के बल पर जिंदा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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