Book Title: Dhwanivardhak Ka Prashna Hal Kyo Nahi Hota Kya Vidyut Aagni Hai
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
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एक ऐसा यंत्र तैयार किया है, जो दिन भर मानव शरीर में लगा रहता है। वह दिन में शरीर की हलचल से पैदा होने वाली विद्युत् को अपने में इतना संग्रह कर लेता है, जिससे रात भर प्रकाश प्राप्त किया जा सकता है।
दैनिक हिन्दुस्तान का 12 अक्टूबर 1969 का अंक सामने है। उसमें लिखा है कि दक्षिण-पूर्व अमेरिका की नदियों में पायी जाने वाली 'ईल' नामक मछली डेढ़ सौ अश्वशक्ति का विद्युत्-सामर्थ्य रखती है, जिसके द्वारा साठ वाट के सैकड़ों बल्ब जलाये जा सकते है। इस प्रकार अद्भुत विद्युत् शक्ति के धारक अन्य भी अनेक प्राणी है-पशु हैं, पक्षी हैं। सूरज की धूप में भी विद्युत् शक्ति है, और उस धूप संगृहीत विद्युत् से तो पश्चिम के देशों में कितने ही कल-कारखाने चलते हैं।
स्विच ऑन होते ही एक सेकिंड में बिजली का प्रकाश जगमगाने लगता है, और स्विच ऑफ होते ही एक क्षण में प्रकाश गायब हो जाता है। एक सेकिंड में विद्युत् धारा हजारों ही नहीं, लाखों मील लंबी यात्रा कर लेती है। क्या यह सब अग्नि का गुण धर्म एवं चमत्कार हो सकता है?
आज का युग कहने का नहीं, प्रत्यक्ष में कुछ करके दिखाने का युग है। विद्युत् अग्नि है, कहते जाइए। कहने से क्या होता है ! विज्ञान ने तो अग्नि और विद्युत् का अंतर स्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष में सिद्ध करके दिखा दिया है। पुराने युग के कुछ आचार्योंने यदि वुिद्यत् की गणना अग्निकाय में की है, तो इससे क्या हो जाता है? उनका अपना एक युगानुसारी चिन्तन था, उनकी कुछ अपनी प्रचलित लोकधारणाएँ थीं। वे कोई प्रत्यक्ष सिद्ध वैज्ञानिक मान्यताएँ नहीं थीं। राजप्रश्नीय सूत्र में वायु को भारहीन माना है। बताया है कि हवा में वजन नहीं होता है।जबकि हवा में वजन होता है, और यह प्रत्यक्ष सिद्ध है। अन्य जैन आगमों से भी वायु में गुरुत्व सिद्ध है। अतः मानना होगा कि राजप्रश्नीयकार या केशीकुमार श्रमण केवल लोक प्रचलित मान्यता का उल्लेख कर रहे हैं, सैद्धान्तिक पक्ष का प्रतिपादन नहीं। चन्द्र, सूर्य आदि के सम्बन्ध में भी उनकी यही स्थिति है। वही बात विद्युत् को अग्नि मानने के सम्बन्ध में भी है, जो प्रत्यक्ष विरुद्ध है तथा अन्य आगमों से भी सिद्ध नहीं है।
___ मैं आशा करता हूँ, विद्वान् मुनिराज तटस्थ भाव से उक्त चर्चा का विश्लेषण करेंगे, और वद्युत् को अग्नि मान लेने के कारण ध्वनिवर्धक का जो
___04 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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