Book Title: Dhaturatnakar Part 4
Author(s): Lavanyasuri
Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi

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Page 11
________________ चार्वाचारविचारचारुचरिता, माता च दीपालिका। वाग्दक्षो हि सतां प्रियो गुणनिधिः श्रीबालचन्द्रोऽनुजो। वन्देऽहं शुभपादपद्मयुगलं तं नेमिसूरीश्वरम्।॥७॥ येषामीक्षणतोऽपि यान्ति विपुलं, भाग्योदयं सजना। भूपालावलिमौलिपूजितपदाम्भोजं च दिव्याकृतिम्।। सम्पूर्णेन्दुसुमण्डलाभवदनं, चन्द्रार्धभालस्थलं। वन्देऽहं शुभपादपद्मयुगलं तं नेमिसूरीश्वरम्।।८।। (स्रग्धरावृत्तम्) नानाविद्याब्धिदेवाचलविमलधिया-मुक्तिसौभाग्यभाजां। श्रीमल्लावण्यसूरीश्वरप्रगुरुसतां, दक्षनाम्नो गुरोश्च।। आसाद्यानुग्रहं चाष्टकमिदममलं, श्रीसुशीलेन दृब्ध। नित्यं भव्यात्मनां वै श्रुतिपठनकृतां मोददानाय भूयात्।।१।। ॥इति श्रीनेमिसूरीश्वराष्टकम्॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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