Book Title: Dharmyuddha Ka Adarsh
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ से यह पाप न हुआ। भारत की सांस्कृतिक परम्परा का उज्ज्वल गौरव आपके हाथों में सुरक्षित रहा। आप वैयक्तिक तुच्छ स्वार्थों के अन्धकार में नहीं भटके। बहुत बड़ा दायित्व अपने ऊपर लिया और उसे प्रसन्नता से निभाया। अभिप्राय यह है कि ऐसा समय इतिहास में कभी-कभी ही आता है। जैसा कि मैंने बताया, चेटक ने तो एक शरणागत की रक्षा के लिए इतना बड़ा भयंकर युद्ध किया। हिंसा हुई, फिर भी भगवान् महावीर कहते हैं कि वह स्वर्ग में गया और आपने तो लाखों-करोड़ों इन्सानों की रक्षा की है, और इसी कारण आपको यह युद्ध भी करना पड़ा है, अन्यथा आपके सामने तो युद्ध का कोई सवाल ही नहीं था। भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी, समूची राष्ट्र शक्ति को साथ लिए आज जो जूझ रही हैं, उसके मूल में उन्हीं पावन भारतीय आदर्शों की रक्षा का प्रश्न है। कहना तो यों चाहिए कि ढाई हजार वर्ष बाद इतिहास ने अपने आपको दुहराया है। यानी भगवान् महावीर के युग की वह घटना आज फिर से दुहराई जा रही है और यदि महावीर आज धरती पर होते तो क्या निर्णय देते इस सम्बन्ध में? प्रभु महावीर आज धरती पर निर्णय देने को नहीं हैं, तो क्या बात है? उनका जो निर्णय है, वह हमारे सामने है। आज जो फैसला लेना है, उनके द्वारा वह फैसला दिया ही जा चुका है। इसका अर्थ यह है कि वर्तमान के नये जजों के फैसले में अतीत के पुराने जजों के फैसले निर्णायक होते है। अभिप्राय यह है कि भगवान् महावीर ने जो फैसला दिया था, कि राजा चेटक स्वर्ग में गया और कूणिक नरक में-बिलकुल स्पष्ट है कि यदि आज के इस संघर्ष को लेकर इंदिराजी के सम्बन्ध में पूछे तो प्रभु महावीर का वही उत्तर है, जो वे ढाई हजार वर्ष पहले ही दे चुके हैं। तात्पर्य यह है कि यह युद्ध शरणागतों की रक्षा का युद्ध है, अतः भारतीय चिन्तन की भाषा में धर्मयुद्ध है और धर्मयुद्ध अन्ततः योद्धा के लिए स्वर्ग के द्वार खोलता है-'स्वर्गद्वारमपावृतम्'। यह वह केन्द्र है, जहाँ भारत के प्रायः सभी तत्त्वदर्शन और धर्म एकमत हैं। मैं यह जो विश्लेषण कर रहा हूँ, क्यों कर रहा हूँ? इसका कारण यह है कि अहिंसा-हिंसा के विश्लेषण का दायित्व जैन समाज के ऊपर ज्यादा है, चूँकि जैन परम्परा का मूलाधार ही अहिंसा है। भगवान् महावीर ने अपने तत्त्वदर्शन में हिंसा और अहिंसा का विश्लेषण किस आधार पर किया है? भगवान् के अहिंसा दर्शन की आधारशिला कर्ता की भावना है। बात यह है कि ये जो युद्ध धर्म-युद्ध का आदर्श 87 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14