Book Title: Dharmyuddha Ka Adarsh
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 14
________________ की दृष्टि से विचार करें तो क्या होना चाहिए? युद्ध या और कुछ? क्रूर दरिंदों के समक्ष और कुछ का तो कुछ अर्थ ही नहीं रह गया है। युद्ध ही एक विकल्प रह गया है, जो चल रहा है। यह आक्रमण नहीं, प्रत्याक्रमण है। और, जैसा कि चेटक और कूणिक का उदाहरण आपके सामने रखा कि चेटक युद्ध करके स्वर्ग में गया है, चूँकि उसने शरणागत की रक्षा के लिए आक्रमणकारी से धर्मयुद्ध लड़ा था, और कूणिक युद्ध करके नरक में गया है, चूँकि उसने न्यायनीति को तिलांजलि देकर अधर्मयुद्ध लड़ा था। आज आपके सामने ठीक वही प्रश्न यथावत है कि आप भी शरणागतों की रक्षा के प्रश्न पर युद्ध के लिए ललकारे गये हैं, युद्ध करने को विवश किये गये हैं। प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने बड़े धैर्य से काम लिया है, करोड़ों विस्थापितों का वह भार उठाया है, जो देश के अर्थतंत्र को चकनाचूर कर देता है। आठ-आठ महीने प्रतीक्षा की है कुछ सुधार हो जाए, विश्व के प्रमुख राष्ट्रों को जा-जाकर सही स्थिति समझाई है। परन्तु जब कुछ भी परिणाम नहीं आया और पाकिस्तान की दु:साहसी सैनिक टोली ने रणभेरी बजा ही दी, तो इन्दिराजी ने भी उत्तर में रण दुन्दुभी बजा दी है, भारत के नौजवान सीमा पर जूझ रहे हैं। युद्ध हो रहा है। भारतीय तत्त्वचिन्तन के आधार पर यह धर्मयुद्ध है और अन्ततः विजय धर्मयुद्ध की ही होती है। “यतो धर्मस्ततो जयः"-जहाँ धर्म है, वहीं विजय है। 'सत्यमेव जयते, नानृतम्' सच्चाई की ही विजय होती है, झूठ की नहीं। 90 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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