Book Title: Dharm ka Bij aur Uska Vikas Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 2
________________ पशु-पक्षी तक ही सीमित नहीं है, वह तो सूक्ष्मातिसूक्ष्म कीट, पतंग और बेक्टेरिया जैसे जंतुओंमें भी है। जिजीविषाके गर्भ में ही सुखकी शात, अज्ञात अभिलाषा अनिवार्यरूपसे निहित है। जहाँ सुखकी अभिलाषा है, वहाँ प्रतिकूल वेदना या दुःखसे बचनेकी वृत्ति भी अवश्य रहती है। इस जिजीविषा, सुखाभिलाषा और दुःखके प्रतिकारकी इच्छामें ही धर्मका बीज निहित है ।। कोई छोटा या बड़ा प्राणधारी अकेले अपने आपमें जीना चाहे तो जी नहीं सकता और वैसा जीवन बिता भी नहीं सकता। वह अपने छोटे-बड़े सजातीय दलका अाश्रय लिये बिना चैन नहीं पाता। जैसे वह अपने दलमें रहकर उसके आश्रयसे सुखानुभव करता है वैसे ही यथावसर अपने दलकी अन्य व्यक्तियोको यथासंभव मदद देकर भी सुखानुभव करता है। यह वस्तुस्थिति चींटी, भौंरे और दीमक जैसे क्षुद्र जन्तुओंके वैज्ञानिक अन्वेषकोंने विस्तारसे दरसाई है। इतने दूर न जानेवाले सामान्य निरीक्षक भी पक्षियों और बन्दर जैसे प्राणियों में देख सकते हैं कि तोता, मैना, कौश्रा आदि पक्षी केवल अपनी संततिके ही नहीं बल्कि अपने सजातीय दलके संकट के समय भी उसके निवारणार्थ मरणांत प्रयत्न करते हैं और अपने दलका श्राश्रय किस तरह पसंद करते हैं। आप किसी बन्दरके बच्चे को पकड़िए, फिर देखिए कि केवल उसकी माँ ही नहीं, उस दल के छोटे-बड़े सभी बन्दर उसे बचानेका प्रयत्न करते हैं। इसी तरह पकड़ा जानेवाला बच्चा केवल अपनी माँकी ही नहीं अन्य बन्दरोंकी ओर भी बचावके लिए देखता है । पशु-पक्षियों की यह रोजमर्राकी घटना है तो अतिपरिचित और बहुत मामूली-सी, पर इसमें एक सत्य सूक्ष्मरूपसे निहित है। ___ वह सत्य यह है कि किसी प्राणधारीकी जिजीविषा उसके जीवनसे अलग नहीं हो सकती और जिजीविषाकी तृप्ति तभी हो सकती है, जब प्राणधारी अपने छोटे-बड़े दल में रहकर उसकी मदद लें और मदद करें। जिजीविषाके साथ अनिवार्य रूपसे संकलित इस सजातीय दलसे मदद लेनेके भाव में ही धर्मका वीज निहित है। अगर समुदायमें रहे बिना और उससे मदद लिए बिना जीवनधारी प्राणीकी जीवनेच्छा तृप्त होती, तो धर्मका प्रादुर्भाव संभव ही न था। इस दृष्टिसे देखनेपर कोई सन्देह नहीं रहता कि धर्मका बीज हमारी जिजीविषामें है और वह जीवन-विकासकी प्राथमिकसे प्राथमिक स्थिति में भी मौजूद है, चाहे वह अज्ञान या अव्यक्त अवस्था ही क्यों न हो। ___ हरिण जैसे कोमल स्वभावके ही नहीं बल्कि जंगली भैंसों तथा गैण्डों जैसे कठोर स्वभावके पशुओंमें भी देखा जाता है कि वे सब अपना-अपना दल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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