Book Title: Dharm Sadhna me Chetna kendro ka Mahattva
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf

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Page 5
________________ पंचम खण्ड / १४८ | अर्चनार्चन जबकि सचाई यह है कि चक्र अवस्थित तो होते हैं तेजस् शरीर (Electric Body) में और उनकी अभिव्यक्ति होती है, इस प्रौदारिक शरीर में । भौतिक शरीर में जो ज्ञान तंतुनों की उलझी हुई संघटना होती है, वह तो केवल 'निवत्ति अर्थात निष्पत्ति' है। यहाँ मुझे प्रभास चित्रकार का दृष्टान्त ध्यान में आता है। इस स्थिति को समझने में उपयोगी है वह दृष्टान्त । साकेत नगरी के राजा महाबल ने अपनी चित्रशाला को चित्रों से सुसज्जित करने के लिए दो चित्रकार नियुक्त किये-एक विमल और दूसरा प्रभास । दोनों को आमने-सामने की दो दीवारें दे दी गई हैं और बीच में परदा डाल दिया गया, जिससे कोई एक दूसरे की नकल न कर सके। इनमें विमल तो था चित्रकार और प्रभास था विचित्रकार । विचित्रकार इस दृष्टि से कि उसने कोई चित्र ही नहीं बनाया, सिर्फ दिवालों की घुटाई करके उन्हें दर्पण की तरह चमकीला बना दिया। आधुनिक भाषा में कहा जाय तो ऐसी चमकीली पालिश कर दी जिसमें सामने का चित्र हूबहू प्रतिविम्बित हो सके। विमल ने अपनी कला का प्रदर्शन किया, नयनाभिराम चित्र बनाये । जैसे ही परदा हटाया गया तो वे चित्र चमकीली दीवारों में प्रतिबिम्बित हो उठे। पालिश की चमक के कारण सौ गुनी चमक से जगमगाने लगे। अब राजा महाबल उस दीवार पर हाथ फिरा-फिराकर देख रहा है, पाखें गड़ा रहा है, निरीक्षण परीक्षण कर रहा है, किन्तु क्या उसे वे चित्र वहाँ मिल सकते हैं ? वहाँ हों तो मिलें ? वे चित्र वहाँ तो हैं ही नहीं। वे तो सामने की दीवार पर बने हुए हैं। बस, यही स्थिति, भौतिक आधार पर और भौतिक शरीर में चक्रस्थानों को खोजने वाले वैज्ञानिकों की है। वे भी चक्रों को केवल अभिव्यक्ति के स्थल में ढंढ रहे हैं, तब उन्हें वांछित परिणाम कैसे प्राप्त हो सकते हैं। यदि इसे एक सामान्य दृष्टान्त से समझना हो तो इस प्रकार भी समझा जा सकता है मान लीजिए, एक अमरूद का वृक्ष किसो गहरे सरोवर के किनारे खड़ा है। उस पर सुन्दर और पके फल लगे हैं। उनकी परछाई जल में गिर रही है। ऐसा मालम होता है, जैसे सरोवर के अन्दर अमरूद के फल हैं। अब यदि कोई शुक' उन फलों को खाने के लिए लालायित हो, सरोवर के पानी में चोंच मारे तो क्या वह फलों का स्वाद ले सकता है ? कभी नहीं। क्योंकि फल तो वहाँ हैं ही नहीं, परछाई मात्र है। बस यही स्थिति चक्रों की है। वे भी तैजस शरीर में हैं, सिर्फ उनकी अभिव्यक्ति ही भौतिक शरीर में हो रही है। योग, जूडो और शरीर-शास्त्र चक्रों की अवस्थिति के सम्बन्ध में इन तीन विचारधाराओं को समझ लेना भी आवश्यक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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