Book Title: Dhananjay Ki Kavya Chetna
Author(s): Bishanswarup Rustagi
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 2
________________ सन्धान-कवि धनञ्जय जैन-परम्परा के कवि हैं। जैन संस्कृत महाकाव्यों की परम्परा में नानार्थक काव्य-शैली के अन्तर्गत "द्विसन्धान-महाकाव्य' इनका सर्वप्रथम महाकाव्य है। इसका अपरनाम "राघवपाण्डवीय" है। इसमें कवि ने रामकथा तथा पाण्डवकथा को श्लेषादि अलंकारों द्वारा एक-साथ उपनिबद्ध किया है। परिणामतः जैन महाकाव्य परम्परा में "सन्धान-महाकाव्य" की नवीन विधा का प्रारम्भ हुआ। इसी से सन्धानकवि धनञ्जय इस विधा के आदि कवि बन गए। सातवीं-आठवीं शताब्दी के उपरान्त लोकप्रियता को प्राप्त कृत्रिम काव्य-मूल्यों और समसामयिक सामन्ती जीवन-पद्धत्ति की पृष्ठभूमि में धनञ्जय द्वारा द्विसन्धान महाकाव्य का प्रणयन हुआ। प्रस्तुत ग्रन्थ "सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना" समसामयिक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चेतना को उद्घाटित करने हेतु डॉ॰ बिशन स्वरूप रुस्तगी का एक सफल प्रयास है। यह ग्रन्थ आठ अध्यायों में विभक्त है* प्रथम अध्याय में सन्धान-महाकाव्यों के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य तथा उसकी काव्य परम्पराओं से सम्बद्ध विवेचन प्रस्तुत द्वितीय अध्याय में सन्धान-कवि धनञ्जय के काल, उसके व्यक्तिगत परिचय तथा उसकी कृतियों आदि का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है। तृतीय अध्याय में व्यर्थक सन्धान काव्य विधा की पृष्ठभूमि में द्विसन्धान-महाकाव्य के सन्धानत्व तथा उसकी कथावस्तु का विवेचन है। चतुर्थ अध्याय में संस्कृत काव्यशास्त्रीय महाकाव्य-लक्षणों की पृष्ठभूमि में आलोच्य महाकाव्य की शिल्प-वैधानिक विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। पंचम अध्याय में रस-परिपाक का विवेचन प्रस्तुत है। षष्ठ अध्याय अलंकार-विन्यास से सम्बद्ध है। सप्तम अध्याय में छन्द-योजना के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डाला गया हैं। अष्टम अध्याय को (क) राजनैतिक अवस्था, (ख) आर्थिक स्थिति तथा (ग) सामाजिक परिवेश-तीन भागों में विभक्त कर तत्कालीन सांस्कृतिक मूल्यों का परिशीलन किया गया है। अन्त में ग्रन्थ का उपसंहार करते हुए सन्दर्भ-ग्रन्थ-सूची तथा अकारादि क्रम से शब्द-सूची भी दी गई है।

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