Book Title: Deval Dharm Sutra me Aeshwaryo ka Vivaran
Author(s): Lallan Gopal
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf

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Page 1
________________ देवल धर्मसूत्र में ऐश्वर्यों का विवरण लल्लनजी गोपाल सम्प्रति केवल आपस्तम्ब, बौधायन, गौतम, वसिष्ठ, विष्णु और वैखानस के धर्मसूत्र ही मुद्रित और उपलब्ध हैं। किन्तु प्राचीनकाल में अन्य कई धर्मसूत्रों की रचना हुई थी, जो अपने पूर्णरूप में अब उपलब्ध नहीं हैं । कुमारिल ने तन्त्रवातिक' में शङ्खलिखित और हारीत के धर्मसूत्रों का उल्लेख किया है। वास्तव में धर्मसूत्रों अथवा उनके रचयिताओं की कोई प्रामाणिक सूची न होने के कारण हम कभी भी यह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकेंगे कि काल के प्रवाह के साथ धर्मसूत्रों की विधा में कितनी हानि हुई है। प्राचीन काल में देवल के नाम से एक धर्मसूत्र प्रचलित था, इसका हमारे पास निर्विवाद प्रमाण है ।प्रसिद्ध अद्वैतवेदान्तिन् शङ्कराचार्य ने देवल के धर्मसूत्र का स्पष्ट उल्लेख किया है । ३ इस उल्लेख से सिद्ध होता है कि यह ग्रन्थ शङ्कर के काल में उपलब्ध था । शङ्कर के अनुसार देवल ने अपने धर्मसूत्र में सांख्य के सिद्धान्त का ही प्रतिपादन किया है, जिसमें प्रधान को ही संसार का कारण कहा गया है। सांख्य-मत के प्रतिपादकों में इस ग्रन्थ का विशेष महत्त्व होने के कारण ही शङ्कर ने उसके खण्डन के लिए विशेष प्रयास किया। देवल धर्मसूत्र के अनेक उद्धरण मध्यकालीन भाष्यों और निबन्धों में उपलब्ध हैं। मूल देवल धर्मसूत्र के स्वरूप के विषय में हमारे विचार इन्हीं उद्धरणों पर आश्रित होंगे। भाष्यकारों और निबन्धकारों ने इस ग्रन्थ से किन अंशों को उद्धृत किया और किन को छोड़ दिया, इसके लिए उनके अपने कारण और तर्क रहे होंगे। प्राप्य उद्धरणों को सीमा के भीतर ही हम देवल धर्मसूत्र के विषयों और उनके सापेक्षिक महत्त्व की कल्पना कर सकते हैं । इन उद्धरणों से यह प्रतीत होता है कि मूल ग्रन्थ लघु आकार का नहीं था। अन्य विषयों के अतिरिक्त इसमें सांख्य और योग का विस्तार के साथ विवरण था। यह इस ग्रन्थ की प्रमुख विशेषता थी और इस दृष्टि से अन्य धर्मसूत्रों की तुलना में इसका महत्त्व था। इन दोनों दर्शनों के सिद्धान्त और व्यवहार पक्ष के अनेक विषयों पर देवल से लम्बे उद्धरण मध्यकालीन भाष्यों और निबन्धों में सुरक्षित हैं । गाहड़वालवंश के नरेश गोविन्द चन्द्र ( १११३-११५४ ई० ) के मन्त्री लक्ष्मीधर ने अपने निबन्ध ग्रन्थ कृत्यकल्पतरु के मोक्षकाण्ड में ऐश्वर्यों ( दैवी शक्तियों) पर देवल से एक लम्बा उद्धरण दिया है। मोक्षकाण्ड के अध्याय २२ में योगविभूतियों का विवरण है। इस अध्याय में १. तन्त्रवार्तिक ( कुमारिल ), पृ० १७९ । २. इस विषय पर हमारा लेख पं० बलदेव उपाध्याय अभिनन्दन ग्रन्थ में प्रकाशित है। ३. वेदान्तसूत्र, १.४.२८ पर आचार्य शङ्कर को टोका। ४. कृत्यकल्पतरु ( सं० के० वी० आर० ऐयांगर), पृ० २१६-१८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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