Book Title: Dev Shastra Aur Guru
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad

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Page 94
________________ नेमिचन्द्र 130 देव, शास्त्र और गुरु शास्त्रकार-आचार्य शास्त्र समय, परिचयादि गोम्मटसार ई. सन् १०वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध। अभयनंदि, (सिद्धान्तचक्रवर्ती) (जीव-काण्ड और वीरनंदि और इन्द्रनंदि गुरु थे। श्रवणबेलगोला कर्मकाण्ड), में विंध्यगिरि पर भगवान् गोम्मटेश्वर (चामुण्डराय त्रिलोकसार, का देवता) बाहुबलि की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक लब्धिसार, चामुण्डराय(गंगवंशी राजा राचमल्ल के प्रधानमंत्री क्षपणासार एवं सेनापति) आपके शिष्य थे। देशीयगण के आचार्य थे। धवला और जयधवला का सार क्रमश: गोम्मटसार और लब्धिसार में संग्रहीत है। सिद्धान्तचक्रवर्ती अपको उपाधि थी। नरेन्द्रसेन सिद्धान्तसारसंग्रह वि.सं. १२वीं शताब्दी। ये धर्मरत्नाकर के कर्ता जयसेन के वंशज थे। सिद्धान्तसारसंग्रह अमृतचन्द्र के तत्त्वार्थसार की शैली में लिखा गया ग्रन्थ है। नेमिचन्द्र मुनि लघुद्रव्यसंग्रह, वि.सं. 1125 के आसपास। बृहद्दव्यसंग्रह के (सिद्धान्तिदेव) बृहद्रव्यसंग्रह संस्कृत टीकाकार हैं ब्रह्मदेव। डा. दरबारीलाल (द्रव्यसंग्रह या कोठिया ने निम्न चार नेमिचन्द्र गिनाए हैंलघुपंचास्तिकाय) 1. नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती (गोम्मटसारकर्ता), 2. वसुनंदि सिद्धान्तिदेव के उपासकाध्ययन में उल्लिखित नेमिचन्द्र, 3. गोम्मटसार पर जीवतत्त्वप्रदीपिका संस्कृत टीका के कर्त्ता और 4. द्रव्यसंग्रहकार। सिंहनंदि आदि (ग) प्रबुद्धाचार्य जिनसेन प्रथम हरिवंश पुराण ई. सन् 783 / अपूर्वकाव्यप्रतिभा। गुणभद्र आदिपुराण ई.सन ९वीं शता. का अंतिम चरण। अपने 1. अन्य चर्चित सारस्वताचार्य-सिंहनन्दि (ई.सन् २री शता.। गंगराज वंश की स्थापना में सहायक। राजनीतिज्ञ और आगमवेत्ता), सुमतिदेव (सन्मतिटीकाकार, ८वीं. शता. के आसपास,), कुमारनंदि (वादन्यायकार, संभवतः वि. सं. ८वीं शता., विद्यानंद से पूर्ववर्ती), श्रीदत्त (जल्पनिर्णयकार, वि. सं. 4-5 शता., विद्यानंद के अनुसार 63 वादियों के विजेता), कुमारसेन गुरु (काष्ठासंघ संस्थापक, वि. सं. ८वीं शता.), वज्रसूरि (द्राविड़संघसंस्थापक, संभवतः देवनंदि पूज्यपाद के शिष्य, छठी शता. के लगभग), यशोभद्र (तार्किक, संभवतः वि. सं. छठी शता. के पूर्व), शान्त या शान्तिषेण (वक्रोक्तिपूर्ण प्रथम परिशिष्ट : प्रसिद्ध दि. जैन शास्त्रकार आचार्य और शास्त्र 131 शाखकार-आचार्य शास्त्र समय, परिचयादि (४३वे पर्व के गुरु जिनसेन द्वितीय के अधूरे आदिपुराण को चौधे पद्य के बाद पूरा किया। संभवतः ये सेनसंघ के आचार्य समाप्ति पर्यन्त), थे। दक्षिण में कर्नाटक था महाराष्ट्र इनकी उत्तरपुराण, साधनाभूमि थी। सरलता और सरसता इनकी आत्मानुशासन, रचनाओं में समाहित है। जिनदत्तचरितकाव्य शाकटायन स्त्रीमुक्ति, केवलिभुक्ति ई. सन् 1025 के पूर्व। अन्य रचनापाल्यकीर्ति अमोघवृत्ति सहित शाकटायन शब्दानुशासन (व्याकरण)। वादीभसिंह छत्रचूडामणि, ९वीं शता,। जैन संस्कृत गद्य साहित्यकार। गद्यचिन्तामणि 'स्याद्वादसिद्धि' इनकी रचना है या अजितसेन की है, इसमें विवाद है महावीराचार्य गणितसारसंग्रह, ई. ९वीं शता.। जैनगणितज्ञा इनकी एक रचना ज्योतिषपटल (अप्राप्त) भी है। बृहद् अनन्तवीर्य सिद्धिविनिश्चयटीका, ई.सन् 975-1025 / रविभद्र के शिष्य थे। ये प्रमाणसंग्रहभाष्य न्यायशास्त्र के पारंगत विद्वान थे। इनके नाम वाले (प्रमाणसंग्रहालङ्कार) कई विद्वान् हुए हैं। माणिक्यनन्दि परीक्षामुख ई. सन् ११वीं शता. प्रथम चरण। नंदीसंघ के प्रमुख आचार्य। आद्य जैनन्याय सूत्रकार। परीक्षामुख पर कई टीकायें हैं- प्रभाचन्द्रकृतप्रमेयकमलमर्तण्ड, लघु अनन्तवीर्यकृत प्रमेयरत्नमाला, भट्टारक चारुकीर्तिकृत प्रमेय रलमालालङ्कार, शान्तिवर्णिकृत प्रमेयकण्ठिका। प्रभाचन्द्र प्रमेयकमलमार्तण्ड ई. सन् ११वीं शता, / समय के विषय में मदभेद (परीक्षामुख टीका), है। कई प्रभाचन्द्र हुए हैं। अन्य रचनायें हैंरचना करने में समर्थ, संभवतः ७वीं शता.), विशेषवादि (जिनसेन के हरिवंशपुराण और पार्श्वनाथचरित में उल्लेख), श्रीपाल (वि. सं. ९वीं शता., वीरसेन स्वामी के शिष्य), काणभिक्षु (जिनसेन ने कथाग्रन्थकार के रूप में उल्लेख किया है), कनकनंदि सिद्धान्तचक्रवर्ती (विस्तरसत्त्व-त्रिभंगीकार, ई. सन् 10 वी शता.)।

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