Book Title: Dev Shastra Aur Guru
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad

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Page 97
________________ प्रथम परिशिष्ट : प्रसिद्ध दि. जैन शास्त्रकार आचार्य और शाख 137 शास्त्रकार-आचार्य शास्त्र समय, परिचयादि टीकाकार नेमिचन्द्र जीवतत्त्वप्रदीपिका ई. सन् 16 वीं शता.। महत्त्वपूर्ण टीका है। (गोम्मटसारटीका) मुनि महनदि पाहुडदोहा वि. सं. 16 वीं शता. उत्तरार्ध। नरेन्द्रसेन प्रमाणप्रमेय-कलिका ई. सन् 1730-1733 / 136 देव, शास्त्र और गुरु शास्त्रकार-आचार्य शास्त्र समय, परिचयादि पार्श्वदेव संगीत समयसार 12 वीं शताब्दि अन्तिम चरण। भास्करनंदि तत्त्वार्थसूत्र वृत्ति वि. सं. 16 वीं शता.। नवीन सिद्धान्तों की (सुखबोधाटीका), स्थापना की है। ध्यानस्तव ब्रह्मदेव बृहद्रव्यसंग्रहटीका, ई. १२वीं शता.। अन्य रचनायें- तत्त्वदीपक, परमार्थ-प्रकाशटीका प्रतिष्ठातिलक, ज्ञानदीपक, विवाहपटल, कथाकोष। रविचन्द्र आराधनासार- ई.१२-१३वीं शता.। इस नाम के अन्य आचार्य समुच्चय भी हैं। अभयचन्द्र कर्मप्रकृति ई. 13 वीं शता.। मुख्तार साहब इन्हें गोम्मटसार सिद्धान्तचक्रवर्ती जीवकाण्ड की मन्दप्रबोधिनी टीका का कर्ता भी मानते हैं। भट्टारक अभिनव न्यायदीपिका ई. सन् 1358-1418 / इस नाम के कई धर्मभूषण यति आचार्य हुए है। भट्टारक वर्द्धमान वरांगचरित ई. सन् 14 वीं शताब्दी। (प्रथम) भट्टारक शुभचन्द्र चन्द्रप्रभचरित, वि. सं. 1535-1620 / ज्ञान के सागर थे। पाण्डवपुराण इनके 31 ग्रन्थ हैं। संस्कृत और हिन्दी दोनों में करकण्डुचरित, आदि रचनायें हैं। यशस्तिलक चन्द्रिका, वि. सं. 16 वीं शता.। ये न केवल परम्परापोषक तत्त्वार्थवृत्ति (श्रुत- थे अपितु मौलिक सिद्धान्तों के संस्थापक भी थे। सागरीटीका) इनके 38 ग्रन्थ हैं। ब्रह्मनेमिदत्त आराधनाकथा मेश, वि. 16 वीं शताब्दी। इनके 12 ग्रन्थ हैं। नेमिनिर्वाण काव्य (ङ) अचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक कवि परमेष्ठी पुराण 9 वीं शताब्दी से पूर्व। (परमेश्वर) (त्रिषष्ठिशलाका) धनञ्जय नाममाला ई. सन् ८वीं शता.। समय-सम्बन्धी मतभेद है। (धनञ्जय-निघण्टु), कहा जाता है इनके पुत्र को सर्प ने डस लिया विषापहारस्तोत्र, था जिसका विष दूर करने के लिए विषापहार स्तोत्र द्विसन्धानमहाकाव्य लिखा। द्विसन्धान में राम और कृष्ण का एक साथ चित्रण है। 1. अन्य कवि और लेखक (संस्कृत के) अजितसेन (शृङ्गारमंजरी, अलंकार-चिन्तामणि), विजयवर्णी (शृङ्गारार्णव-चन्द्रिका), पद्मनाभ कायस्थ, ज्ञानकीर्ति, धर्मधर, गणभद्र-द्वितीय, श्रीधरसेन, नागदेव (मदनपराजय), पं. वामदेव (भावसंग्रह आदि), पं. मेधावी, रामचन्द्र- मुमुक्ष (पुण्यास्रवकथाकोश), वादिचन्द्र (ज्ञानसूर्योदयनाटक आदि), दोधय (भुजबलिचरित), पद्मसुन्दर (भविष्यदत्तचरित, रायमल्लाभ्युदय), पं. जिनदास (होलिकारेणुचरित), अरुणमणि (अजितपुराण), जगन्नाथ (श्वेताम्बर-पराजय आदि)। (अपभ्रंश के)- चतुर्मुख, स्वयम्भु(पउमचरिउ आदि), पुष्पदंत (महापुराण, णायकुमारचरिउ आदि), धनपाल (भविसयत्तकहा), धवल (हरिवंशपुराण), हरिषेण (धर्मपरीक्षा), वीर (जम्बुस्वामिचरिउ), श्रीचन्द्र, रइधू (37 रचनायें), तारणस्वामी (मालारोहण आदि 14 ग्रन्थ)। (हिन्दी के)- बनारसीदास (समयसारनाटक आदि), भूधरदास (पार्श्वपुराण, जिनशतक), द्यानतराय, आचार्यकल्प पं. टोडरमल (मोक्षमार्गप्रकाशक आदि 11 ग्रन्थ), तनसुखदास, पं. दौलतराम कासलीवाल, पं. जयचन्द्र छावड़ा, बुधजन, वृन्दावनदास आदि। इनके अतिरिक्त आदिपम्प पोन्न आदि कन्नड कवि, तिरुतक्कतेवर आदि तमिल कवि, जिनदास आदि मराठी कवि हैं। रत्ननंदि (भद्रबाहुचरित), श्रीभूषण (शान्तिनाथपुराण आदि), भट्टारक चन्द्रकीर्ति (पार्श्वनाथपुराण आदि 10 ग्रन्थ), ब्रह्म ज्ञानसागर (तेरह ग्रन्थ), सोमसेन (रामपुराण, शब्दरत्नप्रदीप), छत्रसेन (द्रौपदीहरण आदि), वर्द्धमान द्वितीय (दशभक्त्यादिमहाशास्त्र), गंगादास (श्रुतस्कन्ध कथा आदि), देवेन्द्रकीर्ति (दो पूजा ग्रन्थ), जिनसागर (आदित्यवत कथा आदि), सुरेन्द्रभूषण (ऋषिपंचमी कथा), महेन्द्रसेन (सीताहरण, बारहमासा), सुरेन्द्रकीर्ति (एकीभाव, कल्याणमन्दिर आदि), ललितकीर्ति भट्टारक (महापुराण की टीका आदि)।

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