Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 03
Author(s): P D Navathe
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 14
________________ Begins (Text) - fol. 16 7 प्रभवविरतिमध्य etc. as in No. 119 / A1879-80. Begins (Comm. ) - fol. 10 ॥ ॐ ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ यो देवो सिधिदाता त्रिभुवनसकलं सर्व्वमांगल्यहेतो- । र्यो देवो हस्तिरूपं करपरशुधरं मूषकं वाहनं स्यात् । यो देवोप्येकदंतो सकलगुणनिधिः विघ्नहर्त्ता समस्तं यो देवो नित्यनित्यं अपहरतु भयं पातु वो मौरिपुत्रः ॥ यः सृष्टिस्थितिसंहारः etc. as in No. 190/1883-84. Jyotiya Ends (Text) - fol. 1456 fol. 8a इति श्रीः श्रीपतिभट्टविरचितायां ज्योतिषरत्नमालायां पंडितमाकृतटीकायां संवत्सरप्रकरणं प्रथमं समाप्तं ॥ कृतकौतुकं मंगलचातुर्वपुर्मधुपर्काविधेपुरतास्त्वंवरः कलिताग्निसमक्षमवाप्यवधूसमुपैति शुभशुभमेवतः छ । Ends (Comm.) - fol. 1456 कृतकौतुकमंगला । चात्र वपुः कृतकौतुकेन मंगलेन तिलकेन चातुमानोक्षं । वपु शरीरं यस्य स मधुपर्कविधानात् । परतोनंतरं तु पुनः वरः परिणेताज्वलिता वैश्वानरपत्पक्षं अवाप्य प्राप्य कां वधूर्नारी । समुपौति संम्यक्प्रकारेणोपयाति किं शुभाशुभं पुन्यं पुन्यं एवं निश्वयेनाततस्तदनंतरं ॥ छ ॥ इति श्रीः श्रीपतिभटविरचितायां ज्योतिषरत्नमालायां वैजाकृतटीकायां विवादप्रकरण षोडसमं समासं ॥ १६ ॥ अथ वास्तव्यप्रकरणमारभ्यते ॥ छ ॥ • References - 1 आयुव्ययक्ष्यां शकचंद्रतारा वलानिशानादवर्गम्य संम्बन् । मायुर्धनारोग्ययशोभि • Mss. - Aufrecht's Catalogus Catalogorum :- i, 2130: ii, 44a. ********* ज्योतिषरत्नमाला with टीका No. 562 Extent – 63 leaves ; 15 lines to a page ; 40 letters to a line.. ६ Jyotiṣaratnamālā with Commentary 914 1886-92

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