Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 03
Author(s): P D Navathe
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 20
________________ Jyotisa Hxtent - 31 leaves ; 13-14 lines to a page. Description Country paper; Devanagari characters with EHTEIT'S; old in appearance; handwriting legible and uniform but not quite clear in some places; borders ruled in two double black lines with a thick reddish line between them ; red pigment used for marking; yellow pigment used for corroctions; blank spaces in the centre of folios%3 complete. Age-Samvat 1622. Author- Náracandra, a Jain author. Subject-Jyotisa. Begins — fol. 12 ॐ॥ श्रीसर्वज्ञाय नमः॥ श्रीमतं जिनं नत्वा नरचंद्रेण धीमता। सारमुध्रियते किंचि ज्योतिषः क्षीरनीरधेः ॥ १ . सरस्वतीं नमस्कृत्य यंत्रकोद्वारहिप्पनं । करिष्ये नरचंद्रस्य । मुग्धानां बोधहेतवे । १ etc. fol. 174 इति नारचंद्रटिप्पनके श्रीसागरचंद्रसूरिकृते सप्ततियंत्रका सूत्रसहित प्रथम प्रकीर्णकं । समाप्त छ। Ends - fol. 310 नारचंद्रसमुद्रस्य पारं ये प्राप्नुमिच्छुषः। गृहातांतत्तरीतुल्यं । यंत्रकोद्वारटिप्पनं । २५ इति नारचंद्रे रिणनके श्रीसागरचंद्रसूरिकृते द्वितीयं प्रकीर्णकं समास । उभयप्रकीर्ण सस्कसाईशत ॥ १५० यंत्रकाणि समाप्तानि ॥छ। पापाः पाणिग्रहे प्राप्ते। हीनवर्णास्तु गोपगाः सूर्ये वाऽस्तंगते लप्ने । यावच्छाम्येबरो रेजः॥१ कुलिक १ क्रांते साम्यं २ वमूतौं ३ षष्टा ४ाष्टमः पशशी। पंचदोषान परित्यज्य । ततो गोधूलिकं । स्मृतं ॥२॥ . समाष्टमे चंद्रजोवे । भौमे तथा । र्भार्गव चाष्टमे च। मूतौ च चंद्रो नियमाच्च मृत्यु ॥ गोधूलिक स्यात् ॥६, परिवजनीयं ॥३॥ गोधूलिकं लग्नं ॥ छ । . संवत् १६२२ वर्षे माघमासे । कृष्णपक्षे द्वादिसं तिथौ। गुरुवावरे ॥ षीमेलनगरे मुनिराजमेर लिषता ॥ ॥रि ॥ श्री ॥ श्री श्री श्री References – Mss. A – Aufrecht's Catalogus Catalogorum :- i, 2774 ...2

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