Book Title: Dada Guruo ke Prachin Chitra Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf View full book textPage 5
________________ मोटे बहुत से दादा साहब के प्राचीन चित्र पाए जाते हैं। इस पट्टिका के बांये और दाहिने भाग में चित्रित लखनऊ में भी दादा साहब के चित्र देखे स्मरण है। दृश्यों के दो खंड हैं। इन दोनों खण्डों में जिनदतसूरिजी प्राचीन चित्रकला के चित्रों का परिचय देने के पश्चात् की व्याख्यान-सभा का आलेखन है। इसके आर वाले उसी के अनुकरण में वर्तमान के यशस्वी और भारत-विश्रुत चित्र-खण्ड में मध्यमें श्री जिनदत्तसूरि विराजमान हैं और चित्रकार श्री इन्द्रदूगड़ का बनाया हुआ विशाल और कला- उनके सम्मुख पं० जिनर क्षित बैठे है। जिनरक्षित के पीछे पूर्ण चित्र कलकत्ता-दादावाड़ी में लगा हुआ है जिसमें बड़े दो श्रावक हैं एवं श्रीजिनदत्तसूरिजी के पृष्ठ भाग में एक दादासाहब के जीवनवृत्त से सम्बन्धित कई भाव चित्रित श्रावक और दो श्राविकाए बैठी हैं। नीचे वाले चित्रहैं । व्याख्यान वाचस्पति मुनि श्री कान्तिसागरजी ने पहले खण्ड में मध्य श्रीजिनदत्तसूरि और उनके सम्मुख श्रीगणभांदकजी में मित्ति-चित्र बनवाये थे और तत्पश्चात् 'श्री समुद्राचार्य और उनके पीछे एक मुनि और एक श्रावक बैठा जिन-गुरु-गुण-सचित्र पुष्पमाला' पुस्तक में इकरंगे और है। जिनदत्तसूरि के पृष्ठ भागमें दो श्रावक बैठे हैं । तिरंगे चित्रों का भी प्रकाशन करवाया है जिसमें चारों सूरिजी के सामने स्थापनाचार रखे हैं, जिनपर 'महावीर' दादा साहब के २४ तिरंगे एवं २ काष्ट फलक चित्र प्रकाशित अक्षर लिखे हुए हैं। हुए हैं। ___ इस चित्रावली से विदित होता है कि यह सचित्र गगिवर्य हेमेन्द्र नागरजी के पत्रानुसार सूरत में श्री जिन- काष्ठमट्टिका श्रीजिनदत्तसूरिजी के निजी संग्रह की किसी दत्तसूरि ज्ञानभण्डार में कतिपय चित्र लगे हैं जिनमें ताड़पत्रीय पुस्तक की है। किसी भक्त श्रावक ने उन्हें किसी १७४ १७ इंच के (१) क्षमाकल्याणोपाध्याय व मुन्ना बड़े और महत्वपूर्ण ग्रन्थ को लिखाकर भेंट किया था, जिसके ऊपर की यह एक सुन्दर चित्रालंकृत पटड़ी है । लाल जोहरी व (२) जिन लाभसूरिजी का चित्र दो ढाई सौ संभव है कि इसमें आलेखित स्त्री पुरुष इस ग्रन्थ को भेट वर्ष प्राचीन हैं । एक बड़े चित्र में बीच में जिनचन्द्रसूरिजी, करने वाले श्रावक परिवार के ही मख्य व्यक्ति हो। दाहिनी ओर अभयदेवसूरिजी, बांई तरफ जिनवल्लभसूरिजी हैं । दूसरे में वर्द्धमानसूरिजी (मध्य में), जिनेश्वरसूरिजी मारवाड़ के विक्रमपुर के श्रेष्ठी देवधर निर्मापित ( दाहिने ) और बुद्धि सागरसूरिजी (बांये) हैं। एक चित्र जिनालय में सूरिजी ने एक भव्य महावीर प्रभु-प्रतिमा की मणिधारीजी का है जिसमें बादशाह सामने खड़ा दिखाया प्रतिष्ठा की थी। संभव है कि इस चित्रपट्टिका में इसी गया है। चौथे दादा श्री जिनचन्द्रसूरिजी के चित्र में अकबर प्रतिष्ठा-प्रसंगका आलेखन हो । क्योंकि सूरिजी के समक्ष मिलन का भाव चित्रित है। ये चित्र ५५-६० वर्ष पुराने हैं स्थित स्थापनाचार्य पर "महावीर" नाम लिखा हुआ है। और श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी के उपदेश से बने हुए हैं। कदाचित् इसी देवधर ने इस पट्टिका के साथ वाले ग्रन्थ और भी दादासाहब व दूसरे खरतरगच्छाचार्यों के को लिखा कर सूरिजी को समर्पित किया हो और इस चित्र उपाश्रयों आदि में पर्याप्त पाये जाते हैं जिन्हें पट्टिका में उक्त प्रसंगके स्मारक-स्वरूप चित्राइन किया शोधपूर्वक प्रकाश में लाना चाहिए । गया हो। जैन सम्प्रदाय में ऐसे प्रसंगों के निमित्त पुस्त कादि लेखन व चित्रपट्टिकादि के आलेखन की प्रवृत्ति अति मनि जिनविजयजी के प्रकाशित जिनदत्तसरिजी के प्राचान काल से चला आ रहा है। चित्रमय काष्ठफलकके तीन ब्लॉक 'भारतीय विद्या'-निबन्ध हम इसे विक्रम की बारहवीं शती के अंतिम और संग्रह में प्रकाशित हुए हैं । इनमें से जिनदत्तसूरि सम्बन्धी दो तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ के चित्रालेखन की प्रतीक.. ब्लॉक यहां प्रकाशित कर रहे हैं। इनका विवरण मुनिजी निश्चित रूपसे मान सकते हैं, इतनी प्राचीन अन्य कोई ने इस प्रकार दिया है : सुन्दर चित्राकृति अद्यापि हमें उपलब्ध नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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