Book Title: Dada Guruo ke Prachin Chitra Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf View full book textPage 3
________________ [५१] के रास्ते में रहने वाले गणेश मुसब्बर ( चित्रकार ) को बंगाल में बुलाया गया और उसने बालूचर व कलकत्ता में लगभग पन्द्रह वर्ष रहकर सैकड़ों जैनचित्रों का निर्माण किया। वे चित्र कलासमृद्धि में अपूर्व और मूल्यवान हैं । यदि उन समस्त चित्रों का सांगोपांग वर्णन लिखा जाय तो सैकड़ों पेज हो सकते हैं पर हम यहां केवल दादासाहब आदि के चित्रों का ही संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं । १ श्री अभयदेवसूरिजी - यह चित्र ७३४१७ इंच का है । इस चित्र में दाहिनी ओर नगर का दृश्य है जिसके तीनों ओर परकोटा और दो दरवाजे दृष्टिगोचर होते हैं । नगर के तीन स्वर्णमय शिखर वाले जिनालयो पर ध्वजादण्ड सुशोभित है। सामने पौषधशाला में श्री अभयदेवसूरिजी महाराज विराजमान हैं जिनके समक्ष श्यामवर्णवाली शासनदेवी उपस्थित है जिसके सुनहरे जरी के वस्त्र व मुकुट अलंकारादि पहने हुए हैं। शासन देवी नौ कोकड़ी सुलझाने के लिए आचार्यश्री को दे रही है । बाहर अभयदेवसूरिजी महाराज अपने दश शिष्यों के साथ विहार करके जा रहे हैं । साथ में आठ श्रावक तथा दो बालक भी चल रहे हैं । सूरि महाराज एक पलाश वृक्ष के नीचे जयति हुअा स्तोत्र द्वारा प्रभु की स्तवना करते हैं। पास में ६ साधु बैठे हैं और सात श्रावक खड़े हैं । जंगल में जहां गाय का दूध भरता था, स्तंभन पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा प्रकट होती है । एक श्रावक के हाथ में प्रतिमा है । फिर सिंहासन पर विराजमान करके श्रावक लोग स्वर्णकलशों से अभिषेक करते हैं । दो श्रावक प्रभुको न्हवण कराते हैं, चार श्रावक कलश लिये खड़े हैं । एक श्रावक फिर प्रभु का न्हवण जल लाकर सूरिजी के ऊपर छींटता है जिससे रोग निवारण हो जाता है । पृष्ठभूमि में खजूर, ताड़, आम्र, अशोकादि के वृक्ष विद्यमान हैं । मैदान और टीलों पर कहीं-कहीं हरियाली छाई हुई है । चित्र परिचय में निम्नोक्त वाक्य लिखे हुए Jain Education International (१) १ शासन देवताने कोकड़ी ६ दोनी ( २ ) श्री अभयदेवसूरि ( ३ ) पोशाल ( २ ) अभयदेवसूरि ( ३ ) १ जयतिहुअण स्तवना करी श्री थंभणा पार्श्वनाथजी प्रगट भया जमीन से, णवण कराया ४ पखाल छींटता रोग गया रक्तपित्तीका । (२) श्री जिनदत्तसूरि, श्री जिनकुशलसूरि - यह चित्र ७५X१७ इंच का है जिसमें दोनों दादा गुरुत्रों के चित्रों में विभिन्न भाव हैं । चित्र के वाम पार्श्व में श्री जिनदत्तसूरिजी महाराज विराजमान हैं जिनके समक्ष ५२ वीर [१८] एवं पृष्ठभाग में ६४ योगिनी ( २४ ) अवस्थित हैं । गुरुदेवके आगे स्थापनाजी एवं हाथ में मुखवस्त्रिका है । दूसरा पंचनदी का भाव है जिनके तटपर पाँच मन्दिर बने हुए है । पाँचों पीर गुरुदेव के समक्ष करबद्ध खड़े हैं। तीसरा अजमेर के उपाश्रय का है जिसमें गुरुदेव अपने ६ शिष्यों के साथ प्रतिक्रमण कर रहें हैं और कड़कती हुई बिजली को पात्र के नीचे दबा देते हैं। चौथा भाव गुरुदेव के नगर प्रवेश का है, घोड़े के नीचे दबकर मरे हुए मुगलपुत्र को तीन मुसलमान उठाकर लाते हैं । वृक्ष के नीचे बैठे हुए गुरुदेव उसे मंत्रशक्ति से जिला देते हैं । पाँच मुसलमान करबद्ध खड़े हैं । गुरुदेव के पृष्ठ भाग में पाँच शिष्य बैठे हैं गुरुदेव के विहार में पीछे छत्रधारी व्यक्ति व नौ शिष्य दिखाये हैं, सामने १६ श्रावक चल रहे हैं जिनकी पगड़ी पर शिरपेच बँधे है, लम्बे श्वेत जामे पहिन कर कमरबंद व उत्तरासन लगाया हुआ है । पाँचवाँ भाव श्रीजितकुशलसूरिजी से सम्बन्धि मालूम देता है । नगर के मध्य में गुरुदेव उपाश्रय में प्रवचन कर रहे हैं । पाँच साधु सामने खड़े हैं, सात श्रावक बेडे हुए व्याख्यान सुन रहे हैं, भक्त की दुखभरी पुकार सुन कर डूबती हुई नौका को किनारे के दृश्य में हाथ के सहारे से तिरा देते हैं । चित्रकार ने चित्र परिचय रूप कुछ भी नहीं लिखा है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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