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आशीर्वचन
चेतना के दो स्तर हैं—सुप्त और जागृत । जब अन्तर्मन और ज्ञानकेन्द्र सुप्त होते हैं तब चेतना का नीचे की ओर अवतरण होता है। इस स्थिति में हमारी प्रतिभा, शक्ति और समृद्धि (आनन्द) के स्रोत बन्द रहते हैं। हम सब कुछ होकर भी नगण्य होने का अनुभव करते हैं। मन की अशान्ति, तनाव, भारानुभूति-ये सब इसी स्थिति में होते हैं।
जब अन्तर्मन और ज्ञानकेन्द्र जागृत होते हैं तब चेतना ऊर्ध्व की ओर आरोहण करती है । इस स्थिति में हमारी प्रतिभा, शक्ति और समृद्धि के स्रोत खुल जाते हैं। उनकी धारा जीवन को आप्लावित कर देती है। इस स्थिति में फलित होती हैं—मन की शान्ति, तनाव-मुक्ति, भारमुक्ति और जीवन की सार्थकता।
प्रस्तुत पुस्तक में चेतना के ऊ/रोहण के कुछ दिशा-संकेत हैं। उनकी पकड़ हमारे अस्तित्व की पकड़ होगी।
आचार्य तुलसी
राजलदेसर १६ अप्रैल, १९७२
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