Book Title: Chatushasthi evam Dwatrinshad Dalkamalbandh Parshwanath Stava Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ अनुसन्धान ५२ छत्तीसी, (१४) धर्म छत्तीसी, (१५) पूजा बत्तीसी (१६) उत्पत्ति बहुत्तरी, (१७) सार बावनी (१६८९ पाली), (१८) सीमन्धर बावनी, (१९) मोती कपासिया छन्द (१७८९ फलौदी), (२०) उपदेश सत्तरी, (१७वीं) (२१) आदिजिन पारणक स्तवन (१६९९), (२२) आदिजिन स्तवन (१७वीं), (२३) गौतमपृच्छा स्तवन (१६९९), (२४) जिनप्रतिमास्थापना स्तवन (१७वीं), (२५) जिनराजसूरि गीत (१७वीं), (२६) दशबोल सज्झाय (१७वीं), (२७) दश श्रावक गीत (१७वीं), (२८) धर्म विचार सज्झाय (१७वीं), (२९) नेमिनाथ बारहमासा (१७वीं), (३०) प्रवचन परीक्षा सजझाय (१७वीं), (३१) फलौदी पार्श्वनाथ स्तवन (१७वीं), (३२) बत्तीस दलकमलबंध पार्श्व स्तवन, (३३) मेघकुमार सज्झाय, (३४) रोहिणी स्तवन, (३५) लोकनालगभित चन्द्रप्रभ स्तवन (१६८७), (३६) वासुपूज्य रोहिणी स्तवन (१७२०), (३७) शत्रुञ्जय स्तवन, (३८) सतरह भेदी पूजा गर्भित शान्तिजिन स्तवन, (३९) स्याद्वाद सज्झाय आदि । (छोटी-छोटी कृतियों के लिए देखें खरतरगच्छ साहित्य कोश ।) प्रस्तुत कृति की रचना संस्कृत भाषा में चतुःषष्टिदलकमलबन्ध जैसलमेर पार्श्वनाथ स्तवः और द्वितीय कृति द्वात्रिंशद्लकमलबन्ध पार्श्वस्तव है। यह राजस्थान भाषा में रचित है और जेसलमेर मण्डन पार्श्वनाथ का स्तवन है । ये दोनों चित्रकाव्य खण्डित हैं और स्फुट पत्र जैसलमेर ज्ञान भण्डार में प्राप्त है । ये दोनों कृतिया प्रस्तुत की जा रही हैं : चतुःषष्टिदलकमलबन्ध पार्श्वनाथ स्तव परम मंगल राजित संचरं, रसिकलोकनतक्रमसुंदरं । मतिवितर्जित वि.......... ............................ ॥१॥ ................ विनिज्जितभास्करं । परमितेतरसौख्यगुणाकरं, रहितमावरणैः - संवरं ॥२॥ महदयं सदयं प्रतिवासरं, मेयसारं, मज्जत्सुरासुरनरव्रजदत्तपारं । नीतिप्रतीतिगुणरंजित-यत्यग्निमंसमितिगुप्तिदयात्म ।Page Navigation
1 2 3 4 5