Book Title: Chandonushasan
Author(s): Vijaylavanyasuri, Vijaysushilsuri
Publisher: Gyanopasak Samiti

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Page 11
________________ * प्रकाशकीय निवेदन छन्दशास्त्रमां विशिष्ट स्थान धरावतो एवो आ अनुपम ग्रंथ छे. तेनो प्रथम विभाग प्रकाशित करतां अमो अपूर्व आनंद अनुभवीए छोए. मूल आ ग्रंथना रचयिता कलिकालसर्वज्ञ पूज्य आचायप्रवर श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा छे. तेना ऊपर प्रद्योत नामनी विशद वृत्ति स्वर्गस्थ - शासनसम्राट् - सूरिचक्रचक्रवति तपोगच्छाधिपति भारतीयभव्यविभूति कदम्बगिरिप्रमुख प्राचीन अनेकतीर्थोद्धारक - अनेकभूपप्रतिबोधक - अद्वितीय - प्रतिभासम्पन्न - सर्वतंत्रस्वतंत्र - वचन सिद्ध बालब्रह्मचारी प०पू० आचार्य महाराजाधिराज श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वरजी म० श्रीना स्वर्गीय सुप्रसिद्धपट्टालंकार साहित्यसम्राट् - व्याकरणवाचस्पति शाखविशारद - कविरत्न साधिकसप्तलक्षश्लोकप्रमाणनूतनसंस्कृतसाहित्यसर्जक - परमशासनप्रभावक निरुपमप्रवचनकारक - बालब्रह्मचारी प० पू० आचार्यवर्य श्रीमद् विजयलावण्यसूरीश्वरजी म० श्रीए बनावेली आ ग्रंथमां आपवामां आवी छे, जे मूलग्रंथने विशदपरणे अद्भुत प्रकाश करनारी छे. 1 - · आ ग्रंथना सम्पादक अने संशोधक पण प्रद्योत टीकाकार महर्षिना प्रधान पट्टधर - शासनप्रभावक - शास्त्रविशारद - कविदिवाकरव्याकरणरत्न - देशना दक्ष - बालब्रह्मचारी प० पू० आ० श्रीमद् विजयदक्षसूरीश्वरजी म० श्रीना पट्टधर शासन

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