Book Title: Chajahad Gautriya Oswal Vansh ka Itihas
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 8
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्य - इतिहासपुत्र मं. गुणदत्त भार्या सोमलदे के पुत्र धर्मसिंह ने पुत्र समरथादि प्रिया चांपल दे। द्वितीय देपाल उसकी प्रिया दाडिम दे, तीसरा के परिवार सहित भार्या के पुण्यार्थ श्री नमिनाथबिंब बनवाकर महिराज जिसकी प्रिया महिगल दे थी। इनमें मंत्रीश्वर देपाल ट्टधर श्री जिनचंद्र सूरि से प्रतिष्ठा करवाई। दाडिम के तीन पुत्र १. उदयकर्ण, २. श्रीकर्ण, ३. सहस्त्रकिरण ७. (नाहर २४४७) सं. १६७३ (चैत्रादि) मितीजेठ सुदि था सहस्त्रकिरण को भायो सिरियाद। उसके प १५ सोमवार मल नक्षत्र में जैसलमेर नगर में राउल श्री कल्याण मंत्री दीदा सूर्यमल की भार्या मूलादे की कोख से उत्पन्न मंत्री जी के राज्य में खरतरवेगडगच्छ के श्री जिनेश्वरसरि के विजय हरिश्चंद्र मंत्रीश्वर विजयपाल थे। मंत्री दीदा की भार्या श्रा. सवीरदे। राज्य में छाजहड गोत्रीय मं. कलधरान्वये मं. वेगड पत्र मं. सरा पुत्र ३ हुए-१. मंत्रीश्वर हमीर, २. कर्मसिंह, ३. धर्मदास। हमीर तत्पुत्र मं. देवदत्त पुत्र मंत्री गुणदत्त पुत्र मं. सुरजन मं. चकमा, मंत्रीश्वर की भार्या चांपलदे उसके विजयी पत्र देवीदास मंत्री धरमसी, रत्ना, लखमसी मंत्री सरजन पत्र जीआ दस। जीआ विजयपाल की भार्या विमलादे, उसका पुत्र मंत्रीश्वर तेजपाल पुत्र मंत्री पंचाइण पुत्र मं. चांपसी म. उदयसिंह मं. ठाकरसी। मं. हुआ। तेजपाल की भार्या कनका दे प्रभृति समस्त परिवार के टोडरमल पुत्र सोनापाल सहित उपाश्रय बनवाया। सूत्रधार पांचा साथ सं. १६६३ मार्गशीर्ष बहुल ६ सं.१६६३ सोमवार पुष्य अबाणी ने निर्माण किया। नक्षत्र में ब्रह्मयोग में खरतरवेगड़गच्छ के श्री जिनेश्वर सूरि जिनशेखरसूरि पट्टे जिनधर्मसूरि-जिनचंद्रसूरि पट्टेजिनमेरूसूरि पट्टे ८. (नाहर २५०६) सं. १६७४ चैत्र से ७५ वर्षे मार्गशीर्ष श्री जिनगुण प्रभसूरि गुरु के स्तूप की प्रतिष्ठा श्री जिनेश्वर सूरि ने बदि के त्रुटित लेख में छाजहड़ काजल पुत्र उद्धरण पुत्र कुल धर की रावल भीमसेन के जेसलमेर राज्य में। श्री जिन गुणप्रभसूरि अजित पुत्र माधव... के शिष्य पं. मतिसागर ने पट्टिका लिखी मंत्री भीमा पुत्र मं. पदा ९. (नाहर २४७८) सं. १४६२ माघ बदि ८ शुक्रवार को पुत्र मं. माणिक ने १० देहरी को दिया। थंभ सिलावट अखा ३० ज्ञा. छाजहड़गोत्रीय सं. जइत कर्ण भार्या दुलहदे पुत्र लखमण शिवदास हेमाणी ने किया। जसा वधआणी सिलावट ने किया। ने माता पिता के श्रेयार्थ शांति जिन प्रतिमा बनवाकर पल्लिगच्छीय समस्त छोटे बड़े संघों का कल्याण हो। श्री शांतिसूरि से प्रतिष्ठित करवायी। छाजहड़गोत्र १०. (नाहर २५०५) जेसलमेर श्मशान भूमि - जेसलमेर के थंभप्रतिष्ठा कराने वालों के नामों की प्रशस्ति सं. १२१५ में मणिधारी दादा श्री जिनचन्द्र सूरिजी समियाणा लिखते हैं-- गढ़ (गढ़ सीवाणा) पधारे, वहाँ राठौड़ आस्थान के पुत्र धांधल तत्पुत्र रामदेव का पुत्र काजल रहता था। काजल ने सूरिजी से ऊकेश वंश के छाजहड़ गोत्रीय पहले क्षत्रिय राठौड़ कहा - "गुरुदेव! रसायन से स्वर्णसिद्धि की बात लोक में सुनते के थे। राजा आस्थान के धांधल आदि १३ पुत्र हुए। धांधल का हैं, क्या यह सत्य है ?" गुरुदेव ने कहा "हम लोग सावध क्रिया पुत्र ऊदिल उसका पुत्र रामदेव तत्पुत्र काजल वह संप्रति सेठ के क के त्यागी हैं, अत: धर्मक्रिया के अतिरिक्त आचरण वर्ण्य है। " गोद गया। उसने श्रावक धर्म स्वीकार किया। उसके अनुक्रम से काजल ने कहा एक बार मुझे दिखाइये, धर्मवृद्धि ही होगी। सूरिजी ऊधरण हुआ। उसका पुत्र कुलधर, कुलधर का पुत्र अजित ने कहा - "यदि तुम जैनधर्म स्वीकार करो तो मैं दिखा सकता अजितपुत्र सामंता उसका पुत्र हेमराज, पुत्र बादा तत्पुत्र माला हूँ।" काजल अपने पिता से पूछ कर जैन-श्रावक हो गया। मलयसिंह नामक, माला पुत्र जूठिल पुत्र कालू प्रधान। चौहान सूरिजी ने दीवाली की रात्रि में लक्ष्मी मंत्र से अभिमंत्रित वासक्षेप घड़सी राजा का राज्यमंत्रीश्वर था। उसने रायपुर नगर में जिनालय देते हुए कहा - यह चूर्ण जिस पर डालोगे वही सोना हो जाएगा। बनवाया। उसकी पत्नी शीलालंकारधारिणी कर्मादे हुई। उसके यह प्रभाव केवल आज रात्रि भर के लिए है। काजल जैनमंदिर, ५ पत्र थे-रादे, छाहड़, नेणा, सोनपाल, नोड राजा एव अरथू देवी के मंदिर और अपने घर के छज्जों पर वासक्षेप डालकर सो नामक बहिन थी। इनमें सोनपाल मंत्रीश्वर उसकी भार्या सं.,थाहरू गया। प्रातःकाल तीनों छज्जे स्वर्णमय देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। की पुत्री सहजलदे थी। उसने तीन पत्र रत्न जन्मे । मंत्री सतोपाल सभी लोग इस चमत्कार को देखकर आनन्दमग्न हो गए। काजल ridoramodrowonitoriawardwoodniwomidnirord ११०idniwidwoodword-60-6td-insub-id-id-doorsadne Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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