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छाजहड़गोत्रीय ओसवालवंश का इतिहास
भँवरलाल नाहटा....
मोसवाल, श्रीमाल, पोरवाड़ आदि जैन-जातियों का इतिहास आश्रय लेना चाहिए। क्योंकि अपनी गुरु यजमानी कायम करने
प्रायः अंधकाराच्छन्न है। यद्यपि कहा जाता है कि भगवान् के लिए जो मनगढंत संवादों की सृष्टि, भ्रांत धारणाएँ इतिहास में महावीर के ७० वर्ष के पश्चात् पार्श्वनाथ-संतानीय श्री रत्नप्रभसूरिजी घालमेल हो गई हैं, उनमें से तथ्यांश निकालना बड़ा कठिन हो ने ओसियाँ नगर में ओसवाल बनाए, पर ऐतिहासिक प्रमाणों का रहा है। ऐसी स्थिति में श्री सोहनलालजी भणशाली का प्रामाणिक अभाव हमें यह बात मानने को विवश नहीं कर सकता। पार्श्वनाथ शिलालेखी प्रयत्न हमें इतिवृत्त सत्यांश के निकट ले जाने में -परम्परा भगवान महावीर के शासन में विलीन होचुकी थी। सक्षम है। कुछ ज्ञान-भंडारों में प्राप्त कवित्त छंदादि भी पाए जाते जैनागमों में पाश्र्थापत्यों के उल्लेख केवल उनके पूर्व संबंध के हैं। भाटों की बहियों में उनके वंश-परम्परा में मिले हुए सत्यांशों द्योतक हो सकते हैं। वस्तुतः चैत्यवासी ढीले पासत्थे वर्ग की की सम्प्राप्ति के भी कथंचित् परवर्ती इतिवृत्त-संकलन में सहायक परम्परा, बारंबार वे ही बँधे-बँधाए नाम हमें उनकी प्रामाणिकता होने को नकारा नहीं जा सकता। में संदिग्ध ही प्रतीत होते हैं। प्राचीन शिलालेख, प्रतिमाओं के पर्वकाल में बडे-बडे विदान ग्रन्थकार होते हए भी उन्होंने अभिलेख, स्थविरावलियाँ, आगम-पंचांगी-टीका, चूर्णि, नियुक्ति, इस विषय की ग्रन्थ-रचना क्यों नहीं की? यदि पहले से इस भाष्य आदि में कहीं भी उन जाति के श्रावकों की, दीक्षित मुनि, परिपाटी को कायम रखा जाता तो हमें इतिहास तो आसानी से आचार्य वर्ग के नामों की गंध तक नहीं पायी जाती, जबकि मिल जाता पर एक उदात्त भावना का रहस्य जो पूर्वाचार्यों की मथुरा आदि के शिलालेख अन्य जाति के लोगों का अस्तित्व दीर्घदृष्टि में था उससे हम वंचित रह जाते। श्री अभयदेवसूरिजी ने प्रत्यक्ष बतलाते हैं।
स्वधर्मीकुलक में लिखा है कि एक नवकार मन्त्र को धारण ओसियाँ का मंदिर नौवीं शताब्ती से पूर्व का नहीं है।
नही
करन वा
करने वाला स्वधर्मी बन्धु हमारे सगे भाई से भी बढ़कर है। इस स्वर्णगिरि, जालौर, साँचोर, आदि के मंदिर, कक्कुक, बाउक के
भावना में अपना उत्पत्ति-इतिहास वरीयता और कनिष्ठता की।
भावना उत्पन्न कर देता अतः यह बात भी कथंचित् स्वीकार्य अभिलेखादि जो भी प्रमाण प्रस्तुत करें, हम विक्रमीय छठी
कही जा सकती है। शताब्दी से पूर्व इन जातियों का अस्तित्व प्रमाणित करने में अक्षम है। उपकेशगच्छचरित्रादि सभी ग्रन्थ तेरहवीं, चौदहवीं
अपने वंश का गौरव, पूर्वजों के कार्यकलाप आदि जानना शताब्दी के परवर्ती हैं। कुछ ताडपत्रीय ग्रन्थ प्रशस्तियां भी हमें आवश्यक है, अतः हमें प्रामाणिक साधनों द्वारा जितना भी हो परवर्ती काल की उत्पत्ति ही सचित करती हैं। ऐसी स्थिति में हमें सके प्रकाश में लाना अभीष्ट है। ओसवाल जाति में जिन-जिन द्विसहस्राब्दी से पूर्व की घटना मानने का मोह त्यागकर वास्तविक
गोत्रों का इतिवृत्त प्रचुर और प्रामाणिक उपलब्ध है, उनमें से
अपनी रुचि के अनुसार संग्रह कर प्रकाश में लाने का सत्प्रयत्न सतह पर आने के लिए प्रामाणिकता की ओर ध्यान देना चाहिए।
होना चाहिए। ऐसे गोत्रों में बोथरा-बच्छावत, नाहटा-बाफणा, भगवान महावीर के समय में हर जाति के लोग जैन होते थे,
रांका-सेठ, मालू, दूगड़, नाहर आदि अनेक इतिहास हाथ में लिए सर्वव्यापक जैनधर्म को तलवार के बल पर नष्ट किया गया,
जा सकते हैं। यहाँ राठौड़-राष्ट्रकूट वंश से उद्भूत छाजहड़वंश का दक्षिण भारत का इतिहास एवं शिल्प इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
इतिहास दिया जा रहा है। जैनाचार्यों ने हमें समाज-व्यवस्था दी जिससे आज हम उनके उपकारों से जैन हैं, अपने प्रयत्न से नहीं।
सर्वप्रथम आज से ठीक पाँच सौ वर्ष पूर्व लिखित सचित्र
स्वर्ण-रौप्याक्षरी संस्कृत के ४८ श्लोकों में लिखित छाजहड़ राय बहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा, श्री पूरणचंद नाहर वंश की प्रशस्ति जो खरतरगच्छ की वेगड़ शाखा से संबंधित है, आदि इतिहासविदों की राय मानकर हमें प्रामाणिक इतिहास का उसे यहाँ सानुवाद उद्धृत करता हूँ।
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासलगभग अर्द्धशताब्दी पूर्व यह सचित्र प्रति सूरत नगर के त्रयोदशमहीपालाः तत्पुत्रा: धांधलादयाः। श्री मोहन लाल जी महाराज के ज्ञान भंडार में थी। जब अहमदाबाद वंशो येषां धरापीठे वरा विस्तरितः श्रियः।।५।। . में साहित्यप्रदर्शनी हुई, तब वहाँ आई थी और उस समय प्रकाशित
उसके धांधल आदि तेरह पुत्र महीपाल/राजा पृथ्वीपीठ के हुए प्रशस्तिसंग्रह में यह प्रशस्ति प्रकाशित हुई थी। न मालूम कब
विस्तारक हुए। यह ग्रन्थ और प्रशस्ति वहाँ से निकलकर मद्रास में विक्रयार्थ
धांधलस्याङ्गजः श्रेष्ठः ऊदलाह्वोनरेश्वरः। आ गई।
तन्नंदनो रामदेवो रामदेव इव श्रिया।।६।। मैंने इस प्रशस्ति को आचार्य महाराज श्री विशालसेन सूरिजी की कृपा से बैंकलॉकर से मँगवाकर विले पारले में
धांधल का पुत्र ऊदल नामक श्रेष्ठ नरेश्वर हुआ, जिसका नकल की। इसमें एक पूरे पत्र में आचार्य महाराज का सुंदर चित्र
पुत्र रामदेव रामदेव की भाँति धनिक हुआ। देखा है, पूरी प्रति मैंने नहीं देखी।
तत्पुत्र प्रवरश्चासीत् ठाकुरात्सिंह नामकः ।
गुरो समीपतो येन प्राप्तं श्राद्धत्वमुज्ज्वलम् ।।७।। कल्पसूत्रप्रशस्ति
उसका प्रवर (बड़ा पुत्र) ठाकुरसिंह नामक हुआ, जिसने ।।ॐ।। नमो श्रीजिनचन्द्रसूरिगुरुभ्योनमः
गुरु महाराज के पास उज्ज्वल श्रावकत्व प्राप्त किया। श्रेयःसंपत्तिवल्लीविपुलजलधरं पार्श्वनाथं जिनेशं,
ब्रह्मनामा बभूवाथ पुण्यकर्मणि कर्मठः। नत्वा संसेव्यमानं सुरनरनिकरैर्भासुरैर्भक्तिमद्धिः।
तत्सुतः संप्रतिर्जज्ञे सत्त्यागैक प्रधानधीः।।८।। मक्तंदोषैरशेषैर्जिनवरवृषभं वारिदस्थायकायं,
पण्यकार्य करने में कर्मठ ब्रह्म नामक उसका पुत्र हुआ, कुर्वेहं पुस्तकेऽस्मिन् भविकजनमनप्रीतये सत्प्रशस्तिः ।।१।।
जो त्यागी और प्रधान बुद्धिवाला था। श्रेय और सम्पत्तिरूपी वल्ली के लिए विपुल जलधर के श्रीमखेडपरे रम्ये सदद्धरणनामकः सदृश पार्श्वनाथ भगवान को नमस्कार कर भक्तिमान् तेजस्वी व्यवहारी श्रियाहारी धनेन धनदोपमः ।।९।। देवों और मानववृन्द से पूज्यमान, मेघ की भाँति विशाल काया वाले, ऋषभनाथ जिनेश्वर को नमन कर भव्यजनों के मन को
श्रीखेड़ नामक सुंदर नगर में धनद के सदृश धनिक सद् - प्रीति देने वाली इस पुस्तक (कल्पसूत्र) की प्रशस्ति (की
__ (उत्तम)-उद्धरण श्रेष्ठ व्यापारी हुआ। रचना) करता हूँ।
चित्रकूटे पुरे रम्ये पार्श्वभवने योऽकारयद्वारम्। ऊकेशवंशे प्रवरो विभाति, सर्वेषु वंशेषु रमाप्रधानम्।
सौवर्णा वलभी जजे तस्माच्छाहड़ाभिधा ।।१०।। तस्मिन् सुगोत्रं प्रवरं प्रशस्यते नाम्ना महच्छज्जहड़ाभिधानम्।।२।। . इसने चित्तौड़ नगर में श्री पार्श्वनाथ के रम्य भवन में श्रेष्ठतम __ ओसवाल वंश सभी वंशों में महान् व धनाढ्यों में प्रधान
स्वर्णमय छज्जे बनवाए जिससे छाजहड़ (गोत्र) का नाम हुआ। है, उसमें प्रशस्त छाजहड़ नामक सुगोत्र है।
श्री शान्तिपुरे भवनं खेड़ापुर्यां येनात्र कारितम् । क्षत्रियवंशः पूर्वं विदितः श्रीराष्टकूट इति नाम्ना।
प्रतिष्ठा विहिता तत्र श्रीजिनपतिसूरिभिः ।।११।। श्री जयचन्द्रो राजा जातश्चतुरङ्गबलयुक्तः ।।३।।
इसी ने खेडनगर में संदर शान्तिनाथ भवन बनवाया जिसकी ___ पहले क्षत्रियों में सुविदित श्री राष्ट्रकूट (राठौड़) नामक प्रतिष्ठा श्री जिनपतिसूरि महाराज ने की। वंश में चतुरंगिणी सेनाबलयुक्त श्री जयचन्द्र राजा हुआ। तेषां वासं गृहीत्वाथाभवन् खरतरः स तु। तस्यान्वये प्रसिद्धः त्यागी भोगी सदाश्रियः।।
अनेकधर्मकर्माणि कृतवान्निजवित्ततः।।१२।। आस्थान स्थैर्ययुतः संजातो....थुधुर्यः।।४।।
उन गुरु महाराज से वासक्षेप ग्रहण कर वह खस्तर हो उनकी वंशपरंपरा में त्यागी, भोगी, लक्ष्मीसंपन्न आस्थानजी गया। उसने अपने वित्त द्वारा अनेक धर्मकार्य किए। प्रधान स्थिरता वाले हुए। G G AG Gram Gram Granton Gram Gramontina porterinonimnGronGGAGAGranGaminsansar
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- यतीन्द्रमरिरमारक ग्रन्थ - इतिहासतत्पुत्राऽथ कुलधर कुलभारधुरन्धरः
श्री मद्वेगडनासौ संजातः कुलमण्डनम्। प्रौढप्रतापसंयुक्तः शत्रूणां तपनोपमः।।१३।।
यस्यानुजः सिंगड़ाह्वः श्रीजिनेश्वरसूरिराट्।।२१।। उनका पुत्र कुलधर हुआ जो कुलभार वहन करने में धुरंधर, यह श्रीमद् वेगड़ नामक कुलमण्डन हुआ जिसका अनुज । प्रौढ़ प्रतापी और शत्रुओं के लिए तपनोपम था।
सिंगड़ नामक का था जो श्री जिनेश्वरसूरिराट् हुआ। श्रीजावालपुरे भिन्नमाले श्री वाग्भटे तथा
वील्हणदे नामिकास्या पूर्वपत्नी प्रशस्यते। प्रासादा कारिता तेन निजवित्तव्ययोद्वराः।।१४।।
भरतो भरमश्चापि भोजो भट्टाभिधः सुता।।२२।। श्री जावालपुर भीनमाल, बाड़मेर में उसने अपने
वील्हणदे नामक प्रथम पत्नी थी जिसके भरत, भरम, न्यायोपार्जित वित्त से प्रासाद बनवाए।
भोजा और भट्ट नामक पुत्र हुए। तत्सूनुरजितो जातः सामंतस्तु तदंगजः
परा कुतिगदेनाम्नी शीलालंकारधारिणी । हेमाभिधः श्रियायुक्तः सुनु/दाविधस्ततः।।१५।।
तत्कुक्षिपद्मिनो हंसौ पुत्रौ द्वौ महिमाद्भुतौ ।।२३।। उसका पुत्र अजित तत्पुत्र सामंत हुआ जिसका पुत्र हेमा
दूसरी कौतिगदे नामक शीलालंकारधारिणी पत्नी थी जिसके और उसका पुत्र बीदा नामक हुआ।
कोखरूप पद्मसरोवर से हंससदृश दो महिमाशाली पुत्र हुए। तत्पुत्रौ भुवने ख्यातौ मालामलयसिंहको।
आद्य सूराभिधो मंत्री प्रसिद्धो धरणीतले। मालापुत्रो जूठिलाह्वः कालू नामा तदंगजः।।१६।
दानी मानी कलाशाली वदान्यो राजपूजितः।।२४।। उसके दो पुत्र माला और मलयसिंह विश्वविख्यात हुए।
. प्रथम सरामंत्री पृथ्वी में प्रसिद्ध है जो दानी मानी कलाशाली
व राजमान्य है। माला का पुत्र जूठिल और उसका पुत्र कालू हुआ।
कलाकलापसंयुक्तः मंत्री भुवनपालकः। सूनुर्मलयसिंहस्य मंत्री झांझणनामकः सन्मोहणदेवधरः भादूभ्रातृविराजितः।।१७।।
द्वितीयस्त्वभवत्पुत्रो धनवान् धर्मकर्मकृत्।।२५।।
कलाकलाप संयुक्त मंत्री भुवनपाल दूसरा पुत्र है, जो । मलयसिंह का पुत्र झाँझण मंत्रीश्वर हुआ जो मोहन, देवधर
धर्मकार्य करने वाला तथा धनवान है। और भादू भाइयों से सुशोभित था।
श्री जिनधर्मसूरीणां पदस्थापनमादरात्। झांझणस्यसुतः श्रेष्ठः श्रीमत्सत्यपुरे वरे
येनाकारि स्वसंपत्या महेवलपुरोत्तमे।।२६।। चाह्वानभीमराजेन्द्रराज्यभारधुरन्धरः।।१८।।
जिसने श्री जिनधर्मसूरि का पदस्थापना-महोत्सव महेवा झांझण का पुत्र सत्यपुर (साचौर) में श्रेष्ठ था, जो चौहान
नामक उत्तम नगर में आदरपूर्वक स्वधन सम्पत्ति द्वारा किया। भीमनरेश्वर की राज्यधुरा का वाहक था।
भार्या भुवनपालस्य कर्णादेवी मनोहरा। शत्रजये महातीर्थे येन यात्रा कृता वरा।
तस्याश्चत्वारः सत्पुत्राः सुपुत्रीपंचममुत्तमम्।।२७।। श्रीसघं मेलयित्वा च स्ववित्तं सफलीकृतम्।।१९।।
भुवनपाल की भार्या कर्णादेवी मनोहरा थी,उसके चार इसने शत्रुजय महातीर्थ का संघ निकालकर तीर्थयात्रा
सुपुत्र और पाँचवीं उत्तम पुत्री हुई। कर अपने धन को सफल दिया।
प्रथमो धनदत्ताह्वः गांगदत्तस्तथापरः निजदानेन येनात्र कल्पवृक्षाःतिरस्कृताः
शिवनामा तृतीयस्तु तुर्यः संग्राम इत्यमी।।२८।। यशो यदीयं सर्वत्र विस्तीर्ण भूमिमण्डले।।२०।। दान के द्वारा जिसने कल्पवृक्ष को भी तिरष्कृत कर दिया
पहला धनदत्त, दूसरा गांगदत्त तीसरा शिव और चौथा
संग्राम है। था। उसकी यशकीर्ति भू-मंडल में विस्तृत हुई। droiddroivdiodoroordarodromotoriorsdaridroid [१०५-darsamirmanshmororanoramondroidroidrorarokarokare
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्ध - इतिहासतेषां मध्ये पुण्यात्मा गांगदत्तो गुणाधिकः।
पत्तामिधः सुपुण्यात्मा पाबू नाम्नीति तत्प्रिया। नाम्ना गेलमदेवी भार्या तस्य प्रजायतः।।२९।।
नेताभिधानः सत्पुत्रं प्रिया नवरंगदे इति ।।३७।। इनमें पुण्यात्मा गांगदत्त गुणों में विशिष्ट है, जिसकी भार्या पत्ता नामक पुण्यात्मा की पत्नी पाब नाम की है। उसके गेलम देवी हुई।
सुपुत्र नेता की प्रिया नवरंगदे हैं। तत्कुक्षिशुक्तिमुक्तायाः पुत्राः पञ्च गुणोज्जवला:।
तुर्यश्चतुर्थनामासौ भार्यारूपीति नामिका। राजसिंहः श्रियाशाली मंत्रीशो राजवल्लभः।।३०।।
चाचाभिधानो देसूरु लघुपुत्रद्वयं वरः।।३८।।
ग माया
उसकी कोख रूपी सीप में मोती के सदृश पाँच गणवान चौथा नामके चतुर्थ पुत्र की भार्या रूपी नाम की है। चाचा पुत्र हुए। राजसिंह मंत्रीश्वर राज्य में वल्लभ और क्रियाशाली था। नामक तथा देसूरु नामक दो श्रेष्ठ लघु पुत्र हैं। जसामिधानः राणाह्वः मंत्री दूदाभिधस्तथा।
प्रथमा पुत्रिका येठी, रंगी नाम्नी द्वितीयका। महीकर्ण इतिख्याताः सर्वे सर्वत्र भूतले।।३१।।
चंगी नाम्नी तृतीया तु, पुत्रीतृतयमुत्तमम् ।।३९।। जसा, राणा, मंत्री दूदा एवं महीकर्ण ये सभी पृथ्वी तल में पहली पुत्री जेठी, दूसरी रंगी, तीसरी चंगी, तीन श्रेष्ठ पुत्रियाँ प्रसिद्ध हुए। तन्मध्यमंत्रीवर्यवस्तु राजसिंहो विशेषतः
तेनेदं राजसिंहेन परिवारयुतेन च। त्यागी भोगी यशस्वी च श्रीमान् कुलविभूषणम्।।३२।। सौवर्णाक्षरै श्रेष्ठं श्रीकल्पागमपुस्तकम्।।४०।।
__इनमें मंत्रीश्वर राजसिंह विशेषत: त्यागी, भोगी, यशश्वी व उस राजसिंह ने सपरिवार यह कल्पागम की श्रेष्ठ पस्तक कुलभूषण श्रीमान् था।
स्वर्णाक्षरों में (लिखवाई)। पदस्थापना कर्मादिपुण्यकार्याण्यनेकशः।
श्रीमत् खरतरगच्छे श्रीजिनदत्तसूरयः। कृतानीह पुनःकर्ता सम्पत्तेरनुमानतः।।३३।।
तेषामनुक्रमे जात श्रीजिनकुशलनामकः ।।४१।। इसने अपनी सम्पत्ति के अनुसार पदस्थापनोत्सवादि पुण्य . श्री खरतरगच्छ में जिनदत्तसूरि जी हुए। उनकी परंपरा में कार्य अनेक बार किए।
अनुक्रम से श्रीजिनकुशल नामक (सूरि) हुए। भार्या राजलदेवीति सतीकुलमत्तिलका।
श्रीजिनपद्मसूरीन्द्रो जिनलब्धिस्ततः प्रभुः। चम्बगोत्रीयभोजाह्वनन्दिनीगुणबंधुरा।।३४।।
श्रीजिनचन्द्रसूरीशस्तत्पट्टोद्धरणः प्रभुः।।४२।। उसकी भार्या राजलदेवी चम्बगोत्रीय भोजशाह की पुत्री श्री जिनपद्मसूरि, श्री जिनलब्धिसूरि के पट्टप्रभाकर श्री । गुणविशिष्टा, सतीकुलतिलका थी।
जिनचन्द्रसूरि हुए। तस्याःकुक्षौ सुरत्नानि रत्नभूमौ यथास्फुटम्।
श्री जिनेश्वरसूरीन्द्रो विख्यातो जगतीतले। पुत्रा रत्नान्यजायन्त तन्नामानि यथाक्रमम्।।३५।।
तत्पट्टे प्रगटश्चासीत् श्री जिनशेखरसूरिराट् ।।४३।। उसकी रत्नगर्भा कोख से पुत्ररत्न जन्मे जिनके नाम क्रमशः श्री जिनेश्वरसूरि जगत्प्रसिद्ध हुए, उनके पट्टपर श्री कहते हैं।
जिनशेखरसूरिराज हुए। आद्य सत्ताभिधो मंत्री सौंदर्यादिगुणान्वितः
तत्पट्टाभरणं श्रीमान् श्रीजिनधर्मुनीश्वरः। सक्तादेवी प्रिया तस्य विद्यते गुणसंयुता।।३६।।
तस्याणुर्जिनचन्द्राख्यसूरिस्तस्योपदेशेन।।४४।। पहला सत्ता नामक मंत्री गुणशाली था उसकी प्रिया सक्ता उनके पट्ट पर श्री जिनधर्मसूरीश्वर, फिर शिष्याणु श्री। देवी बड़ी गुणवती है।
जिनचन्द्रसूरि हुए, जिनके उपदेश से - AMENDMENGmbinasimamiana podpanner Gaman Santana Gabon Gambia
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-यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ इतिहासश्रीमविक्रमतोषट्वेदेषु ()शशि संख्यया।
से प्रसिद्ध थे। जैसलमेरनरेश गणदेव, जैत्रसिंह, समियाणा के वत्सरेआश्विने मासे लिखापितमिदं महत् ।।४५।।
राजा समरसिंह और शीतलदेव आप ही के परम भक्त थे। श्री विक्रमादित्य के संवत् १५४६ में आश्विन मास में यह
दिल्ली सम्राट् कुतुबुद्दीन को आपने अपने सद्गुणों द्वारा चमत्कृत
किया था। आपने अपने जीवन में शासन-प्रभावना के अनेक महान् (कल्पसूत्र) लिखवाया।
कार्य दीक्षा, प्रतिष्ठा, संघयात्रा, पदवी-प्रदान आदि अपने शासन सौवर्णे (र) जतश्चापिऽक्षरैर्युक्तं चित्रश्रेणिविराजितम्।
-काल में किए थे। जिसके लिए युगप्रधानाचार्य-गुर्वावली देखनी शुद्धसूत्रार्थसंयुक्तं पुस्तकं जयतादिदम्।।४६।।
चाहिए। सं. १३४३ वैशाख सुदि १० के दिन जावालिपुर में सूरि स्वर्ण और रजताक्षर युक्त चित्रश्रेणि से विराजित शुद्धसूत्रार्थ पद प्राप्त किया और सं. १३७६ मिती आषाढ़ सुदि ९ को - संयुक्त यह पुस्तक जयवंत हो।
कोसवाणा में स्वर्गवासी हुए। पुण्यवृद्धयै समृद्ध्यैच वाच्यमानं सदाभवेत्
प्रकटप्रभावी दादाश्री जिनकुशलसूरि मंत्रीशराजसिंहस्य श्रीकल्पागमपुस्तकम्।।४७।।
कलिकालकेवली श्री जिनचन्द्रसूरि के पट्ट पर उनके भतीजे मंत्रीश्वर राजसिंह से लिखाया गया, सदा वाच्य मान यह कशलकीर्ति जो मंत्रीश्वर जेसल (जिल्हागर) की पत्नी जयतश्री कल्पागम ग्रन्थ पुण्यवृद्धिकारक एवं समृद्धिकारक हो।
के पुत्र थे, विराजमान हुए। इनकी दीक्षा सं. १३४६/७ में तथा यावद्धरा वरो मेरुश्चन्द्रसूर्यो ध्रुवस्तथा
सूरिपद सं. १३७७ में पाटण में श्री राजेन्द्रचन्द्राचार्य द्वारा मंत्री श्रीकल्पपुस्तकं तावद्वाच्यमानं तु नंदतात्।।४८।।
कर्मचन्द्र के पूर्वज तेजपाल रुद्रपाल द्वारा पट्ट महोत्सव सम्पन्न जहाँ तक पृथ्वी, श्रेष्ठ मेरु पर्वत व चन्द्र सूर्य और ध्रुव हैं, हुआ। आपके द्वारा दीक्षा, प्रतिष्ठा, संघयात्रादि बड़े-बड़े कार्य यह कल्पसत्र ग्रन्थ बांचा जाता हआ आनंद दे।
प्रचुर परिणाम में सम्पन्न हुए। शत्रुञ्जय की प्राचीन खरतरवसही
का अद्वितीय कलापूर्ण जिनालय आपके द्वारा प्रतिष्ठित है। सिंध ।।इति कल्पपुस्तकप्रशस्तिः ।।शुभंभवतु ।।श्री छहः।।
प्रांत में विचर कर धर्मप्रभावना करते हुए सं. १३८९ मिती संवत् १५४७ वर्षे आसो सुदि १० दिनवा. क्षमामूर्ति गणि
फाल्गुन बदि ५ या १५ को देरावर में स्वर्गवास हुआ। आप उद्यमेन लिखितं जो. बडूआकेन । मं. राजसिंह कल्पपुस्तकं।
तीसरे दादा साहब नाम से प्रकट प्रभावी हैं । सारे भारत में शुभं भवतु।
आपके चरण व मूर्तियाँ सैकड़ों दादावाडियों और जिनालयों में (यह १०० पत्रमय ६० के लगभग चित्रों वाला कल्पसूत्र प्रतिष्ठित हैं। आप छोटे दादाजी के नाम से प्रसिद्ध हैं और भक्तजनों श्री विशालसेन सूरिजी ने मद्रास में चालीस हजार में प्राप्त किया का मनोवांछित पूर्ण करने में कल्पवृक्ष के तुल्य प्रकटप्रभावी । था। प्रशस्ति के चार पत्र दो वर्ष बाद ग्यारह हजार में लिए।) हैं। सैकड़ों स्तवन-स्तोत्र व पूजाएँ अहर्निश गीयमान हैं।
छाजहड़ गोत्र के दीक्षित आचार्य श्री जिनपद्मसूरि कलिकाल-केवली श्री जिनचन्द्रसूरि
ये छाजहड़गोत्रीय अम्बदेव के पुत्र थे। सं. १३८४ माघ
सुदि ५ को दादा श्री जिनकुशलसूरि द्वारा दीक्षित हुए, पद्ममूर्ति खरतरगच्छ में श्री जिनप्रबोधसूरि के पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरि
नाम प्रसिद्ध हुआ। ये बाल्यकाल में ही सरस्वती की कृपा से जी महाराज गढ़ सीवाणा (समियाणा) के मंत्री देवराज के पत्र
बड़े विद्वान् हो गए। तृशृंगम नरेश रामदेव की सभा में अपनी थे। आपकी माता का नाम कोमल देवी था। आपका जन्म सं.
प्रतिभा से सभी विद्वानों को चमत्कृत किया। सं. १३९३ तक १३२४ मिती मार्गशीर्ष सुदि ४ को हुआ। सं. १३३२ मिती जेठ ।
की तीर्थयात्रा, दीक्षा आदि के वृतान्त गुर्वावली में हैं। सं. १४०० सदि ३ का श्री जिनप्रबोधसूरि स दाक्षित हुए। आपका नाम में आपका स्वर्गवास हआ। आपके पद पर आषाढ बदि १ को क्षेमकीर्ति रखा गया। आपका जन्मनाम खेमराय था। आप बड़े
श्री जिनलब्धिसूरि विराजित हुए। विद्वान् और प्रभावक आचार्य थे। आप कलिकाल-केवली विरुद् సారంగురంగురంగురువారం సాయరు రంగురంగురువారం
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-यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासश्री जिनचन्द्रसूरि
ये शक्तिपुर (जोधपुर) में सं. १४३० में अनशनपूर्वक
स्वर्ग पधारे। वहाँ स्तूप बनवाया जो बड़ा चमत्कारी है। सं. श्री जिनलब्धिसूरि के पट्टधर श्री जिनचंद्रसूरि सं. १४०६
१४२५ और १४२७ में प्रतिष्ठाएँ कराई थीं। माघ सुदि १० को बैठे। मारवाड़ के कुसुमाण (कोसवाणा) गाँव के मंत्री केल्हा छाजहड़ की पत्नी सरस्वती के पुत्र थे। आपका जिनशेखरसूरि नाम पातालकुमार तथा दीक्षा नाम यशोभद्र हुआ। सं. १३८१
सं. १४५० में आचार्यपद प्राप्त कर प्रभावक और प्रतापी वै.ब. ६ को पाटण में प्रतिष्ठा के समय बड़ी दीक्षा हुई। सं.
बने। महेवा के राठौड़ जगमाल पर गुजरात के बादशाह की फौज १४१४ मिती आषाढ़ बदि १३ को स्तम्भतीर्थ में स्वर्गवासी हुए।
आने पर अभिमंत्रित सरसों और चावल द्वारा घोड़े और सवार श्री जिनभद्रसूरि
पैदा कर युद्ध में विजयी बनाया। बीबी ने कहाये देउलपर मेवाड के छाजहड धीणिग की पत्नी खेतल पग पग नेता पाड़िया, पग पग पाडी ढाल। देवी के सुपुत्र थे। इनका जन्म नाम रामणकुमार था। ये बड़े बीबी पूछे खान ने जग केता जगमाल।। विद्वान और प्रभावक आचार्य थे। सं. १४७५ मिती माघ सुदि १५ बादशाह को गुरु के पास लाने पर आन मना के छोड़ को श्री जिनराजसूरि जी के पाट पर विराजे। इन्होंने ७ स्थानों में दिया। सं. १४८० में महेवा में स्वर्गवासी हुए। ज्ञानभंडार स्थापित किए व अनेक जिनालयों, प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। जैसलमेरनरेश वैरिसिंह और त्र्यंबकदास आदि
श्रीजिनधर्मसूरि राजागण आपके भक्त थे। श्री भावप्रभाचार्य और श्री कीर्तिरत्नसूरि आप सं. १४८० मिती ज्येष्ठ सुदि १०, गुरुवार को श्री । को आपने आचार्यपद दिया। चालीस वर्ष के आचार्य काल में जिनेश्वरसूरि के पाट पर बैठे। आपने अनेक जगह प्रतिष्ठाएँ आपने बड़ी शासन-सेवा की। सं. १५१४ मार्गशीर्ष बदि ९ में कराईं, ग्रामानुग्राम विचरे, तीर्थयात्राएँ की। जयानंदसूरिजी को कुंभलमेर में आपका स्वर्गवास हुआ।
आचार्य पद दिया। सूराचंद के निकट रायपुर में महावीर जिनालय
की सं. १५०९ में प्रतिष्ठा की। राणा घड़सी को प्रतिबोध देकर श्रीजिनेश्वरसूरि
श्रावक बनाया। राणा ने घड़सीसर व कालूमुहता ने कालूसर आप खरतर गच्छ की वेगड़ शाखा के प्रथम आचार्य थे। कराया। महेवा में भी वणवीर ऊदा ने महोत्सव किया। रावलजी वेगड़ शाखा में भट्टारक पद छाजहड़गोत्रीय को ही दिया जाता वंदनार्थ आए। पट्टावली में बिहार का विस्तृत वर्णन है। सं. था. ये छाजहड झांझण की धर्मपत्नी झबक देवी के पत्र थे। १५१२ में मंत्री समर सरदार ने प्रतिष्ठा करवाई। मंत्री जेसंघ और आपने छह मास पर्यंत बाकला और एक लोटा जल की तपश्चर्या उसकी भायो जमना देने अपने पुत्र देदा को समर्पित किया। द्वारा कराही देवी को प्रसन्न किया था। सं. १४०९ में स्वर्णगिरि
सं.१५१३ में जेसलमेर पधारे, रावल देवकरण सन्मुख आए। पर महावीर जिनालय और सं. १४११ में श्रीमाल नगर में प्रतिष्ठा
मंत्री गुणदत्त ने बिम्ब प्रतिष्ठा कराई। रावलजी ने नया उपाश्रय
बनवाया। देदा को दीक्षा दी, दयाधर्म नाम प्रसिद्ध किया। जेसलमेर कराई। सं. १४१४ में आचार्य पद प्राप्त किया। पाटण में खान
में पानी बरसाकर अकाल मिटाया। का मनोरथ पूर्ण किया। राजनगर के बादशाह महमूद वेगड़ा को बोध दिया। बादशाह ने समारोहपूर्वक पदोत्सव किया। आपके
. १५२३ में मंत्री गुणदत्त मं. राजसिंह ने आषाढ़ में नंदि भ्राता ने ५०० घोड़ों का दान दिया और एक करोड़ द्रव्य व्यय
महोत्सव पूर्वक जयानंदसूरि से आचार्य पद दिलाकर जिनचंद्रसूरि
को पट्टधर किया। श्रावण में जिनशेखर सूरि स्वर्गवासी हुए। सं किया। बादशाह ने 'वेगड़' विरुद् दिया तब से छाजहड़ वेगाड़ा भी कहलाए। बादशाह ने कहा-"मैं भी बेगड तम भी बेगड,
१५२५ में आषाढ़ सुदि १० को स्तूप-प्रतिष्ठा हुई। बेगड़ गुरु गच्छ नाम। सेवक गच्छ नायक सही बेगड़, अविचल पामो ठाम"।
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास - श्री जिनचन्द्रसूरि
को संधारा कर १५ दिन की संलेखना पूर्ण कर १० वर्ष ५
माह ५ दिन का आयुष्य पूर्णकर स्वर्गवासी हुए। आप बड़े आप मंत्री कुलधर के वंशज थे। दीक्षा का वर्णन ऊपर
प्रभावक आचार्य थे। आ गया है। आपके मारवाड़ कच्छ, गुजरात देश में विचरने एवं तीर्थयात्रा करने का पट्टावली में उल्लेख है। समियाणा छाजहड़गोत्र के लेख (अभिलेख) (गढ़सीवाणा) के राणा देवकरण स्वागतार्थ आए। श्री जयरत्नसूरि
(नाहर २००८) सं. १४६४ वै. ब.८ शनिवार उपवेश छा. ने आचार्य पद दिया, वन्ना गुणराज ने महोत्सव किया। जयरत्नसूरि गोत्रीय जठिल वंशीय मंत्री निणा भा. नामलदे पत्र में सीहा भा का दश सभलाकर जाधपुर, तिमरा, सातलमर हात हुए जसलमर सरमदे पत्र मं. समधर भा. सक्तादे. पु. सदारंग कीका सहित पधारे। काल मंत्री के वंशज मंत्री सीहा के पुत्र मं. समधर, श्रेयांसनाथ प्रतिमा खरतरगच्छीय श्री जिनचंद्रसरि पट्टे श्री समशेरसिंह ने प्रवेशोत्सव किया। गणधर वसही की भरतप्रतिमा जिनमेरूसरि से प्रतिष्ठा कराई। सीहा-समधर ने बनवाई थी, प्रतिष्ठा की। श्री महिमा मंदिर को,
२. (नाहर २१५९) सं. १५१३ माघ सुदि ३, सोमवार को अपने पाट पर स्थापित कर श्री जिन मेरुसूरि नाम प्रसिद्ध किया।
उपकेश ज्ञातीय छाजहड़गोत्रीय मं. झूठा। ल सुत महं कालू भा. पौ १५५९ सं. ब. १० को स्वर्गवासी हुए।
कर्मादे के पुत्र म. नोडने स्वपुत्र श्रेयांसनाथ बिंब कराके श्री जिनमेरुसूरि
खरतरगच्छीय जयशेखर सूरि ने प्रतिष्ठा की। छाजहड़गोत्रीय समरथ साह की पत्नी मूला देवी की कोख
३. (नाहर २१६९) सं. १५१३ मिती माघ सुदि ३ शुक्रवार से आपका जन्म हुआ। दीक्षा का नाम महिमामंदिर था। ये राजस्थान,
उपकेशज्ञातीय छाजहड़गोत्र के मंत्री देवदत्त भार्या रयणादे के गुजरात और सिंध में विचरे। जयसिंह सूरि को आचार्य पद व
पुत्र मं. गुणदत्त भार्या सातलदे सहित धर्मनाथ बिंब बनवाकर
खरतरगच्छ के आचार्य जिनशेखर सूरि पट्टे भ. श्री जिनधर्मसूरि भावशेखर, देवकलोल, देवसुंदर, क्षमासुंदर को उपाध्याय पद एवं
से प्रतिष्ठा करवाई। ज्ञानसुंदर, क्षमामूर्ति, ज्ञानसमुद्र को वाचक पद दिया। विहारक्षेत्र व जीवनी का वर्णन पड़ावली में है।
... ४. (नाहर २३६८) सं. १५८१ के माघ बदि ६ बुध को
उपकेशवंशीय छाजहड़ गोत्रीय मंत्री कालू भार्या कर्मादे पुत्र म. श्री जिनगुणप्रभसूरि
रादे छाहड़ा नयणा सोना नोडा ने पितृ मातृ श्रेयार्थ श्री सुमतिनाथ वेगड़ गच्छ पट्टावली में इनकी जीवनी विस्तार से दी गई बिंब बनवाके खरतरगच्छीय श्री जिन हंससूरि से प्रतिष्ठा कराई। है एवं गुणप्रभसूरि-प्रबंध भी उपलब्ध है। ये छाजहड़गोत्रीय जूठिल
५. (नाहर २४०१) सं. १५३६ मिती फाल्गुन सुदि ५ कलशृंगार नगराज नागलदे के पुत्ररत्न थ। त्रिपुरा देवी के संकेत भौमवार को उपकेशवंश के छाजहदगोत्रीय मंत्री कलधर संतानीय से इन्हें दीक्षा दी गई। स. १५६५ मार्गशीष चतुर्थी गुरुवार को मं जढिल पत्र मं काल भार्या कर्मा दे प. नयणा भा. नामलदे जन्म, सं. १५७५ में दीक्षा व सं १५८२ में जोधपुर में फाल्गुन सुदि
के प्र.मंत्री सीहा की भार्या चोपड़ा सा.सवा के पुत्र सं. जिनदत्त ४ को पट्टाभिषेक हुआ। जोधपुर के गंगेवराव, जेसलमेर के रावल,
भा..लखाई की पुत्री श्राविका अपूर्व नामक ने पुत्र समधर, इनके भक्त थे। ये बड़े प्रभावक थे। अनेक चमत्कारों का वर्णन ।
समरा, संदू के साथ स्वपुण्यार्थ श्री आदिदेव के प्रथम पुत्र भरत पाया जाता है। अकबर-प्रतिबोधक श्री जिनचंद्रसूरि (चौथे दादा
चक्रवर्ती की कायोत्सर्गमय प्रतिमा बनवाई। श्री खरतरगच्छ के साहब) को इन्होंने ही सं. १६१२ में सूरिपद दिया था, रावल
श्री जिनदत्तसूरि श्री जिनकुशलसूरि संतानीय श्री जिनचन्द्रसूरि, मालदेव ने पट्टाभिषेकोत्सव किया। मंत्री राजसिंह के संघ
पं. जिनेश्वरसूरि शाखा के जिनशेखसूरि के पट्टधर श्री जिनधर्मसूरि सहित तीर्थ यात्राएं की। दुष्काल के समय वर्षा के लिए श्री धरणन्द्रादि का आह्वान कर वर्षा कराई। रावल लूण करण ने
पट्टे पूज्य श्रीजिनचन्द्रसूरि ने प्रतिष्ठा की (श्राविना सूरमदे कारित) मोतियों से वधाया अनेक चमत्कारपूर्ण जीवनी के लिए पट्टावली ६. (नाहर २४३७) सं. १४३२ फाल्गुन सुदि ३ रविवार देखनी चाहिए। सं. १६५५ वैशाख बदि ८.को तिविहार ग्यारस को उपकेश वंश के छाजहड़गोत्रीय सं. वेगडा श्रेयार्थ देवदत्त
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्य - इतिहासपुत्र मं. गुणदत्त भार्या सोमलदे के पुत्र धर्मसिंह ने पुत्र समरथादि प्रिया चांपल दे। द्वितीय देपाल उसकी प्रिया दाडिम दे, तीसरा के परिवार सहित भार्या के पुण्यार्थ श्री नमिनाथबिंब बनवाकर महिराज जिसकी प्रिया महिगल दे थी। इनमें मंत्रीश्वर देपाल
ट्टधर श्री जिनचंद्र सूरि से प्रतिष्ठा करवाई। दाडिम के तीन पुत्र १. उदयकर्ण, २. श्रीकर्ण, ३. सहस्त्रकिरण ७. (नाहर २४४७) सं. १६७३ (चैत्रादि) मितीजेठ सुदि था सहस्त्रकिरण को भायो सिरियाद। उसके प १५ सोमवार मल नक्षत्र में जैसलमेर नगर में राउल श्री कल्याण मंत्री दीदा सूर्यमल की भार्या मूलादे की कोख से उत्पन्न मंत्री जी के राज्य में खरतरवेगडगच्छ के श्री जिनेश्वरसरि के विजय हरिश्चंद्र मंत्रीश्वर विजयपाल थे। मंत्री दीदा की भार्या श्रा. सवीरदे। राज्य में छाजहड गोत्रीय मं. कलधरान्वये मं. वेगड पत्र मं. सरा पुत्र ३ हुए-१. मंत्रीश्वर हमीर, २. कर्मसिंह, ३. धर्मदास। हमीर तत्पुत्र मं. देवदत्त पुत्र मंत्री गुणदत्त पुत्र मं. सुरजन मं. चकमा,
मंत्रीश्वर की भार्या चांपलदे उसके विजयी पत्र देवीदास मंत्री धरमसी, रत्ना, लखमसी मंत्री सरजन पत्र जीआ दस। जीआ विजयपाल की भार्या विमलादे, उसका पुत्र मंत्रीश्वर तेजपाल पुत्र मंत्री पंचाइण पुत्र मं. चांपसी म. उदयसिंह मं. ठाकरसी। मं. हुआ। तेजपाल की भार्या कनका दे प्रभृति समस्त परिवार के टोडरमल पुत्र सोनापाल सहित उपाश्रय बनवाया। सूत्रधार पांचा साथ सं. १६६३ मार्गशीर्ष बहुल ६ सं.१६६३ सोमवार पुष्य अबाणी ने निर्माण किया।
नक्षत्र में ब्रह्मयोग में खरतरवेगड़गच्छ के श्री जिनेश्वर सूरि
जिनशेखरसूरि पट्टे जिनधर्मसूरि-जिनचंद्रसूरि पट्टेजिनमेरूसूरि पट्टे ८. (नाहर २५०६) सं. १६७४ चैत्र से ७५ वर्षे मार्गशीर्ष
श्री जिनगुण प्रभसूरि गुरु के स्तूप की प्रतिष्ठा श्री जिनेश्वर सूरि ने बदि के त्रुटित लेख में छाजहड़ काजल पुत्र उद्धरण पुत्र कुल धर
की रावल भीमसेन के जेसलमेर राज्य में। श्री जिन गुणप्रभसूरि अजित पुत्र माधव...
के शिष्य पं. मतिसागर ने पट्टिका लिखी मंत्री भीमा पुत्र मं. पदा ९. (नाहर २४७८) सं. १४६२ माघ बदि ८ शुक्रवार को पुत्र मं. माणिक ने १० देहरी को दिया। थंभ सिलावट अखा ३० ज्ञा. छाजहड़गोत्रीय सं. जइत कर्ण भार्या दुलहदे पुत्र लखमण
शिवदास हेमाणी ने किया। जसा वधआणी सिलावट ने किया। ने माता पिता के श्रेयार्थ शांति जिन प्रतिमा बनवाकर पल्लिगच्छीय समस्त छोटे बड़े संघों का कल्याण हो। श्री शांतिसूरि से प्रतिष्ठित करवायी।
छाजहड़गोत्र १०. (नाहर २५०५) जेसलमेर श्मशान भूमि - जेसलमेर के थंभप्रतिष्ठा कराने वालों के नामों की प्रशस्ति
सं. १२१५ में मणिधारी दादा श्री जिनचन्द्र सूरिजी समियाणा लिखते हैं--
गढ़ (गढ़ सीवाणा) पधारे, वहाँ राठौड़ आस्थान के पुत्र धांधल
तत्पुत्र रामदेव का पुत्र काजल रहता था। काजल ने सूरिजी से ऊकेश वंश के छाजहड़ गोत्रीय पहले क्षत्रिय राठौड़
कहा - "गुरुदेव! रसायन से स्वर्णसिद्धि की बात लोक में सुनते के थे। राजा आस्थान के धांधल आदि १३ पुत्र हुए। धांधल का
हैं, क्या यह सत्य है ?" गुरुदेव ने कहा "हम लोग सावध क्रिया पुत्र ऊदिल उसका पुत्र रामदेव तत्पुत्र काजल वह संप्रति सेठ के
क के त्यागी हैं, अत: धर्मक्रिया के अतिरिक्त आचरण वर्ण्य है। " गोद गया। उसने श्रावक धर्म स्वीकार किया। उसके अनुक्रम से
काजल ने कहा एक बार मुझे दिखाइये, धर्मवृद्धि ही होगी। सूरिजी ऊधरण हुआ। उसका पुत्र कुलधर, कुलधर का पुत्र अजित
ने कहा - "यदि तुम जैनधर्म स्वीकार करो तो मैं दिखा सकता अजितपुत्र सामंता उसका पुत्र हेमराज, पुत्र बादा तत्पुत्र माला
हूँ।" काजल अपने पिता से पूछ कर जैन-श्रावक हो गया। मलयसिंह नामक, माला पुत्र जूठिल पुत्र कालू प्रधान। चौहान
सूरिजी ने दीवाली की रात्रि में लक्ष्मी मंत्र से अभिमंत्रित वासक्षेप घड़सी राजा का राज्यमंत्रीश्वर था। उसने रायपुर नगर में जिनालय
देते हुए कहा - यह चूर्ण जिस पर डालोगे वही सोना हो जाएगा। बनवाया। उसकी पत्नी शीलालंकारधारिणी कर्मादे हुई। उसके
यह प्रभाव केवल आज रात्रि भर के लिए है। काजल जैनमंदिर, ५ पत्र थे-रादे, छाहड़, नेणा, सोनपाल, नोड राजा एव अरथू देवी के मंदिर और अपने घर के छज्जों पर वासक्षेप डालकर सो नामक बहिन थी। इनमें सोनपाल मंत्रीश्वर उसकी भार्या सं.,थाहरू
गया। प्रातःकाल तीनों छज्जे स्वर्णमय देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। की पुत्री सहजलदे थी। उसने तीन पत्र रत्न जन्मे । मंत्री सतोपाल
सभी लोग इस चमत्कार को देखकर आनन्दमग्न हो गए। काजल
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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासने गुरु महाराज से प्रतिबोध पाकर सम्यक्त्वसहित बारह व्रत पाटण पीरात मांझिसो तो सारोजगजाने कोलै पल्लीवाल सो तो पाइली मुझारजू।। स्वीकार किए। गुरु महाराज ने स्वर्णमय छाजों के प्रादुर्भाव से ताके पीछे खेड़वीचि वेगड़ विरुद धर्यो सर्यो मकसूद खरतरे सिरदारजू। छाजहड़ गोत्र की स्थापना की। कलश दंडचढ़ाया वेगड़ विरुद पाया धराया तातेगच्छ चौरासीवे वेगडसिंगार जू।।४।। पहिला छाजड़ कोला वरडीया पल्लीवालउवा का गुरु पल्लीवाल पल्ली शुभ थान जू। उद्धरण छाजहड़ बीजा वेगड़ प्रसिद्ध खेड़ में हुआ समृद्ध सातवीस देहरा कराया सुप्रधान जू। एक बार श्री जिनपतिसूरिजी ने अजमेर-चातुर्मास में रामदेव सोवन कलशदंड मंडपमंड अखंड पातसाहीसनाथ मेदनीमंडानजू खेड पल्ली सोनगिरि गूजर जंगलधर गौरी गृह एने थानवेगड़े दीवान जू।।४।। आदि के समक्ष प्रसंगवश खेड़निवासी उद्धरण शाह मंत्री की प्रशंसा की। रामदेव उद्धरण से आकर मिला। उसने सेठ रामदेव को बहुत श्री जिनेश्वरसूरि-गीत में ही सम्मानित किया। उसने मंत्री की पत्नी को जिनालय जाते समय तंवेगड विरुदेवडो.छाजहडाकल छात्र हो. छाबभर के साड़ियां आदि ले जाते देखा तो आश्चर्यपूर्वक नौकर से गच्छ खरतर नो राजियो, तूसींगड़ वड गात्र हो...३ इसका कारण ज्ञात किया कि स्वधर्मी बहिनों को भेंट करने के लिए परतो पूर्योखान नोअणहिल वाडइ मांहि हो ये प्रतिदिन ले जाती हैं। राम देव उद्धरण के घर का आचार देखकर महाजन बंद मूकावियो, मेल्यो संघ उच्छाहि हो...६ प्रसन्न हुआ। एक बार उद्धरण ने नागपुर में मंदिर-निर्माण कराया आराधी आणंदसूवाराही विपुराय हो था। प्रतिष्ठा के लिए बुलाए आचार्य के न पहँचने पर मंत्री पत्नी जो धरणेंद्र पिण परगट कियो, प्रगटीअति महिमाय हो....५ खरतरों की पुत्री थी, के कथन से चैत्यवालिया के पास प्रतिष्ठान राजनगरनइ पागुरया, प्रतिबोध्या महमद हो। कराके सकुटुम्ब मंत्री खरतरगच्छीय श्रावक हो गया। पदढवणो परगट कियो, दुःख दुरजन गया रद हो...७ सी गडसींग वधारिया, अति ऊंचा असमान हो ऊपर सं.१२१५ में मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी से छाजहड़ धीगड भाई पांचसई,घोड़ादीधा दान हो...८ गोत्र उत्पन्न हुआ. लिखा है जब कि यहाँ उद्धरण छाजहड़ के द्वारा सवा कोटि धन खरचीयो. हरख्यो महमद साह हो खरतरगच्छीय होने का उल्लेख है। इस विषय की एक प्रसिद्ध विरुद दियो वेगड तणो, परगट थयो जग माह हो 9 (हे.पै.का.से.पृ. 314) गाथा उद्धृत की जाती है-- 'बारह सौ पणयाले विक्कमे वच्छरे वइक्कंते श्री क्षेमराज उपाध्याय गीतसार उद्धरण केड पमुहा छाजहडा खरतरा जाया।' छाजहड़गोत्रीय लीलासाह की पत्नी लीलादेवी के पुत्र थे 1516 में उद्धरण ने खेड़ नगर में जिनपति सूरि से प्रतिष्ठा कराई। गच्छ नायक के श्री जिनचंद्रसूरि जी से दीक्षा ली। वा. सोमध्वज के जिसका ऊपर कल्पसूत्रप्रशस्ति में वर्णन है। शिष्य हुए। गुरुपरंपरा :-जिन कुशल-विनयप्रभ- विजयतिलक-क्षेमकीर्ति क्षेमहंस-सोमध्वजशि. आपके तीन शिष्य थे, जिनमें प्रमोदमाणिक्य शि. वेगड़ शाखा के जिनसमुद्रसूरि-रचित महाराजा अनूपसिंह जयशोम के शि. गुणविनय हुए। क्षेमराज की कृतियाँ-- जौर राठौड़ वंशावली संबंधी काव्य में छाजहड़-गोत्र संबंधी प्राप्त पद्य-- 1 उपदेशसप्ततिका (सं. 1547 हिसार, श्रीमाल पपर वोदा आदि) .. कुमर स्वरूप देखी काजलज्यों नेत्र रेखी छाजड़े में सुविशेषी काजल देनाम जू। 2. इक्षुकार चौपई गा. 50 आणि के सेठ को दीनो, लहिणो सोदूर कीन्हों, दोहू को रह्यो अक्रीनोआवेनिज धाम जू।।। 3. श्रावक विधि चौपई गा 70, सं. 1546 बरहड़ीयां का गोत छाजड़े ते छाजड़ोत ऐसे गोत छाजड़ को भयो तिण ठाम जू। 4. पार्श्वनाथ रास ना. 25 वदत समुंद महाराजश्री अनूपसिंह जी कोकाको करें काम वाको सरें कामज॥३८ 5. सीमंधरस्तवन 6. पार्श्वनाथ 108 नाम काजल के वेर उद्धरण जूकिए उद्धार सातवीस चैत्य खेड़ वीचि गुरु वेण जू। 7. वरकाणा स्त. एवं स्तवन सज्झादि उपलब्ध हैं। श्रीजिनपति सूरि प्रतिष्ठा करी पडूर मांड्यो विषवाद भूर वरडीये तेण जू।। श्री जिनलाभ सूरिजी महाराज की पदस्थापना कच्छ के मांडवी बंदर जीत्योखरतरे सूर वेगड़ पडूर हारयो गुरु वरडीये कोले भये मैणजू। में छाजहड़गोत्रीय शाह भोजराज कारित नंदी महोत्सवपूर्वक हुई थी। वेगड़ कोले भाई छाजड़ दोनूं कहाई वृद्ध वंत हो सहाई जोलूंजिन जैन जू।।३९।। छाजड़ में घालि दीनौ ताहूँ पै छाजड़ भये असल वरडीया तें छाजड़ कुमार जू। आचार्य शाखा के (65) जिनचंद्रसूरि का सं.११७४६ मार्गशीर्ष सुदि 12 को लूण करणसर में छाजहड़ रतनसी जोधाणी ने पदोत्सव किया था। andidabrandardwondondoniyorderGovindvdroidnidi111Hidndroidndirdabrdwordwondiwondiniromidroombinirdabudanda
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________________ -- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासक्षत्रिय वंश राठौड़ राजा जयचंद वंशज आस्थान जी धांधल आदि 13 पुत्र ऊदल रामदेव ठाकुरसिंह - जैन बना ब्रह्म उद्धरण (खेड़पुर में हुआ, चित्तौड़ में पार्श्वभवः बनवाये, सोने के छज्जे करवाये जिसके छाज हड़ गोत्र हुआ। खेड़ में शान्तिनाथ जिनालय बनवाये श्री जिनपतिसूरि से प्रतिष्ठा कराके खरतक श्रावक हुआ। कुलधर - इसने जावालपुर भिन्नमाल, बाहड़मेर में जिनालय बनवाये। अजित सामंत बीदा माला मलयांसह जूठिल झांझण मंत्री कालू (मार्या कर्मा दे) मोहण देवधर भाहू गत्यपुर के राजा भीम का राज्यधुरा वाहक हुआ। शत्रुजय का संघ निकाला। सींगड़ - जिनेश्वर सूरि हुए छाहड़ नेणा मं. सोनपाल नोड़ राजा अरघू (पुत्री) (थाहरू पुत्री सहजबद्दे) पडूनी 2 सतोपाल (चांपल दे) म. देपाल (दाडिम दे) महिराज (महिगल दे) दवाल्हण दे 2 कैरतिग दे उदयकर्ण श्री कर्ण सहसकिरण (सिरीया दे) भरत भरम भोज भट्ट १.सूरा मंत्री 2. भवनपाल - महेवा __(दानी, मानी, कलाविद, राजमान्य) (मार्या कण्णादेवी) म. सूर्यमल ( मूलादे) दीदा (सवीर दे) १.घनदत्त ३.शिव ४.संग्रल २.गांगदत्त (मार्या गेलम देनी) धर्मदास 3. राणा 4. दूदा 5. यहीकण १.राजसिंह 2. जसा (चंजभोजा पुत्री राजलदे) म. हरीश्चन्द्र विजमाल हमीरकर्मसिंह (विमला दे) (चांपल दे) तेजपाल देवीदास (कनकादे) (सपरिवार ने जिन गुणप्रभसूरि स्तूप पाहुका) यह उसी के आधार पर 3. १.सत्ता २.पत्ता (शक्तादने) पानू | 4. चौथा चाचा देसरू (मार्यारुणी) पुत्री 3 (1 जेसी 2 रंगी 3 चंगी) नेता (नवरंग दे) यहां केवल कल्प सूत्र प्रशस्ति और गुणप्रसूरि स्तूप के आधार से अपनी "जेसलमेर के कलापूर्ण मंदिर'' पुस्तक के यहां वंश वृक्ष है। नाहर जी के लेख संग्रह के प्रतिमा लेखों में और भी बहुत नाम आये हैं। तथा अन्य लेख संग्रहों विस्तृत वंशवृक्ष तैयार हो सकता है। nidrodaridriddaridrsdrsansaridroidnid 112/drridindiansarswaminidiosaridrioritoria