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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासलगभग अर्द्धशताब्दी पूर्व यह सचित्र प्रति सूरत नगर के त्रयोदशमहीपालाः तत्पुत्रा: धांधलादयाः। श्री मोहन लाल जी महाराज के ज्ञान भंडार में थी। जब अहमदाबाद वंशो येषां धरापीठे वरा विस्तरितः श्रियः।।५।। . में साहित्यप्रदर्शनी हुई, तब वहाँ आई थी और उस समय प्रकाशित उसके धांधल आदि तेरह पुत्र महीपाल/राजा पृथ्वीपीठ के हुए प्रशस्तिसंग्रह में यह प्रशस्ति प्रकाशित हुई थी। न मालूम कब विस्तारक हुए। यह ग्रन्थ और प्रशस्ति वहाँ से निकलकर मद्रास में विक्रयार्थ धांधलस्याङ्गजः श्रेष्ठः ऊदलाह्वोनरेश्वरः। आ गई। तन्नंदनो रामदेवो रामदेव इव श्रिया।।६।। मैंने इस प्रशस्ति को आचार्य महाराज श्री विशालसेन सूरिजी की कृपा से बैंकलॉकर से मँगवाकर विले पारले में धांधल का पुत्र ऊदल नामक श्रेष्ठ नरेश्वर हुआ, जिसका नकल की। इसमें एक पूरे पत्र में आचार्य महाराज का सुंदर चित्र पुत्र रामदेव रामदेव की भाँति धनिक हुआ। देखा है, पूरी प्रति मैंने नहीं देखी। तत्पुत्र प्रवरश्चासीत् ठाकुरात्सिंह नामकः । गुरो समीपतो येन प्राप्तं श्राद्धत्वमुज्ज्वलम् ।।७।। कल्पसूत्रप्रशस्ति उसका प्रवर (बड़ा पुत्र) ठाकुरसिंह नामक हुआ, जिसने ।।ॐ।। नमो श्रीजिनचन्द्रसूरिगुरुभ्योनमः गुरु महाराज के पास उज्ज्वल श्रावकत्व प्राप्त किया। श्रेयःसंपत्तिवल्लीविपुलजलधरं पार्श्वनाथं जिनेशं, ब्रह्मनामा बभूवाथ पुण्यकर्मणि कर्मठः। नत्वा संसेव्यमानं सुरनरनिकरैर्भासुरैर्भक्तिमद्धिः। तत्सुतः संप्रतिर्जज्ञे सत्त्यागैक प्रधानधीः।।८।। मक्तंदोषैरशेषैर्जिनवरवृषभं वारिदस्थायकायं, पण्यकार्य करने में कर्मठ ब्रह्म नामक उसका पुत्र हुआ, कुर्वेहं पुस्तकेऽस्मिन् भविकजनमनप्रीतये सत्प्रशस्तिः ।।१।। जो त्यागी और प्रधान बुद्धिवाला था। श्रेय और सम्पत्तिरूपी वल्ली के लिए विपुल जलधर के श्रीमखेडपरे रम्ये सदद्धरणनामकः सदृश पार्श्वनाथ भगवान को नमस्कार कर भक्तिमान् तेजस्वी व्यवहारी श्रियाहारी धनेन धनदोपमः ।।९।। देवों और मानववृन्द से पूज्यमान, मेघ की भाँति विशाल काया वाले, ऋषभनाथ जिनेश्वर को नमन कर भव्यजनों के मन को श्रीखेड़ नामक सुंदर नगर में धनद के सदृश धनिक सद् - प्रीति देने वाली इस पुस्तक (कल्पसूत्र) की प्रशस्ति (की __ (उत्तम)-उद्धरण श्रेष्ठ व्यापारी हुआ। रचना) करता हूँ। चित्रकूटे पुरे रम्ये पार्श्वभवने योऽकारयद्वारम्। ऊकेशवंशे प्रवरो विभाति, सर्वेषु वंशेषु रमाप्रधानम्। सौवर्णा वलभी जजे तस्माच्छाहड़ाभिधा ।।१०।। तस्मिन् सुगोत्रं प्रवरं प्रशस्यते नाम्ना महच्छज्जहड़ाभिधानम्।।२।। . इसने चित्तौड़ नगर में श्री पार्श्वनाथ के रम्य भवन में श्रेष्ठतम __ ओसवाल वंश सभी वंशों में महान् व धनाढ्यों में प्रधान स्वर्णमय छज्जे बनवाए जिससे छाजहड़ (गोत्र) का नाम हुआ। है, उसमें प्रशस्त छाजहड़ नामक सुगोत्र है। श्री शान्तिपुरे भवनं खेड़ापुर्यां येनात्र कारितम् । क्षत्रियवंशः पूर्वं विदितः श्रीराष्टकूट इति नाम्ना। प्रतिष्ठा विहिता तत्र श्रीजिनपतिसूरिभिः ।।११।। श्री जयचन्द्रो राजा जातश्चतुरङ्गबलयुक्तः ।।३।। इसी ने खेडनगर में संदर शान्तिनाथ भवन बनवाया जिसकी ___ पहले क्षत्रियों में सुविदित श्री राष्ट्रकूट (राठौड़) नामक प्रतिष्ठा श्री जिनपतिसूरि महाराज ने की। वंश में चतुरंगिणी सेनाबलयुक्त श्री जयचन्द्र राजा हुआ। तेषां वासं गृहीत्वाथाभवन् खरतरः स तु। तस्यान्वये प्रसिद्धः त्यागी भोगी सदाश्रियः।। अनेकधर्मकर्माणि कृतवान्निजवित्ततः।।१२।। आस्थान स्थैर्ययुतः संजातो....थुधुर्यः।।४।। उन गुरु महाराज से वासक्षेप ग्रहण कर वह खस्तर हो उनकी वंशपरंपरा में त्यागी, भोगी, लक्ष्मीसंपन्न आस्थानजी गया। उसने अपने वित्त द्वारा अनेक धर्मकार्य किए। प्रधान स्थिरता वाले हुए। G G AG Gram Gram Granton Gram Gramontina porterinonimnGronGGAGAGranGaminsansar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210493
Book TitleChajahad Gautriya Oswal Vansh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year1999
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & History
File Size2 MB
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