Book Title: Chajahad Gautriya Oswal Vansh ka Itihas Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 6
________________ -यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासश्री जिनचन्द्रसूरि ये शक्तिपुर (जोधपुर) में सं. १४३० में अनशनपूर्वक स्वर्ग पधारे। वहाँ स्तूप बनवाया जो बड़ा चमत्कारी है। सं. श्री जिनलब्धिसूरि के पट्टधर श्री जिनचंद्रसूरि सं. १४०६ १४२५ और १४२७ में प्रतिष्ठाएँ कराई थीं। माघ सुदि १० को बैठे। मारवाड़ के कुसुमाण (कोसवाणा) गाँव के मंत्री केल्हा छाजहड़ की पत्नी सरस्वती के पुत्र थे। आपका जिनशेखरसूरि नाम पातालकुमार तथा दीक्षा नाम यशोभद्र हुआ। सं. १३८१ सं. १४५० में आचार्यपद प्राप्त कर प्रभावक और प्रतापी वै.ब. ६ को पाटण में प्रतिष्ठा के समय बड़ी दीक्षा हुई। सं. बने। महेवा के राठौड़ जगमाल पर गुजरात के बादशाह की फौज १४१४ मिती आषाढ़ बदि १३ को स्तम्भतीर्थ में स्वर्गवासी हुए। आने पर अभिमंत्रित सरसों और चावल द्वारा घोड़े और सवार श्री जिनभद्रसूरि पैदा कर युद्ध में विजयी बनाया। बीबी ने कहाये देउलपर मेवाड के छाजहड धीणिग की पत्नी खेतल पग पग नेता पाड़िया, पग पग पाडी ढाल। देवी के सुपुत्र थे। इनका जन्म नाम रामणकुमार था। ये बड़े बीबी पूछे खान ने जग केता जगमाल।। विद्वान और प्रभावक आचार्य थे। सं. १४७५ मिती माघ सुदि १५ बादशाह को गुरु के पास लाने पर आन मना के छोड़ को श्री जिनराजसूरि जी के पाट पर विराजे। इन्होंने ७ स्थानों में दिया। सं. १४८० में महेवा में स्वर्गवासी हुए। ज्ञानभंडार स्थापित किए व अनेक जिनालयों, प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। जैसलमेरनरेश वैरिसिंह और त्र्यंबकदास आदि श्रीजिनधर्मसूरि राजागण आपके भक्त थे। श्री भावप्रभाचार्य और श्री कीर्तिरत्नसूरि आप सं. १४८० मिती ज्येष्ठ सुदि १०, गुरुवार को श्री । को आपने आचार्यपद दिया। चालीस वर्ष के आचार्य काल में जिनेश्वरसूरि के पाट पर बैठे। आपने अनेक जगह प्रतिष्ठाएँ आपने बड़ी शासन-सेवा की। सं. १५१४ मार्गशीर्ष बदि ९ में कराईं, ग्रामानुग्राम विचरे, तीर्थयात्राएँ की। जयानंदसूरिजी को कुंभलमेर में आपका स्वर्गवास हुआ। आचार्य पद दिया। सूराचंद के निकट रायपुर में महावीर जिनालय की सं. १५०९ में प्रतिष्ठा की। राणा घड़सी को प्रतिबोध देकर श्रीजिनेश्वरसूरि श्रावक बनाया। राणा ने घड़सीसर व कालूमुहता ने कालूसर आप खरतर गच्छ की वेगड़ शाखा के प्रथम आचार्य थे। कराया। महेवा में भी वणवीर ऊदा ने महोत्सव किया। रावलजी वेगड़ शाखा में भट्टारक पद छाजहड़गोत्रीय को ही दिया जाता वंदनार्थ आए। पट्टावली में बिहार का विस्तृत वर्णन है। सं. था. ये छाजहड झांझण की धर्मपत्नी झबक देवी के पत्र थे। १५१२ में मंत्री समर सरदार ने प्रतिष्ठा करवाई। मंत्री जेसंघ और आपने छह मास पर्यंत बाकला और एक लोटा जल की तपश्चर्या उसकी भायो जमना देने अपने पुत्र देदा को समर्पित किया। द्वारा कराही देवी को प्रसन्न किया था। सं. १४०९ में स्वर्णगिरि सं.१५१३ में जेसलमेर पधारे, रावल देवकरण सन्मुख आए। पर महावीर जिनालय और सं. १४११ में श्रीमाल नगर में प्रतिष्ठा मंत्री गुणदत्त ने बिम्ब प्रतिष्ठा कराई। रावलजी ने नया उपाश्रय बनवाया। देदा को दीक्षा दी, दयाधर्म नाम प्रसिद्ध किया। जेसलमेर कराई। सं. १४१४ में आचार्य पद प्राप्त किया। पाटण में खान में पानी बरसाकर अकाल मिटाया। का मनोरथ पूर्ण किया। राजनगर के बादशाह महमूद वेगड़ा को बोध दिया। बादशाह ने समारोहपूर्वक पदोत्सव किया। आपके . १५२३ में मंत्री गुणदत्त मं. राजसिंह ने आषाढ़ में नंदि भ्राता ने ५०० घोड़ों का दान दिया और एक करोड़ द्रव्य व्यय महोत्सव पूर्वक जयानंदसूरि से आचार्य पद दिलाकर जिनचंद्रसूरि को पट्टधर किया। श्रावण में जिनशेखर सूरि स्वर्गवासी हुए। सं किया। बादशाह ने 'वेगड़' विरुद् दिया तब से छाजहड़ वेगाड़ा भी कहलाए। बादशाह ने कहा-"मैं भी बेगड तम भी बेगड, १५२५ में आषाढ़ सुदि १० को स्तूप-प्रतिष्ठा हुई। बेगड़ गुरु गच्छ नाम। सेवक गच्छ नायक सही बेगड़, अविचल पामो ठाम"। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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