Book Title: Buddhinidhan Abhaykumar Diwakar Chitrakatha 006 Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 27
________________ बुद्धि निधान अभय कुमार वापसी में सुन्दरी दैत्य के पास पहुंची। अब सुन्दरी चोरों के पास पहुँची तो उसकी तुम जैसी सत्यनिष्ठ स्त्री का | सत्यनिष्ठा देखकर चोरों का भी मन बदलने लगा वह बोलेभक्षण करना घोर पाप है। लो भाई! तुम निर्भीक होकर जाओ। मैं आ गयी हूँ। तुम जैसी सच्ची और वचन का पालन करने वाली स्त्री के आभूषण हम नहीं ले सकते। आज से तुम हमारी बहन हो। NER सुन्दरी ने वापस घर पहुँचकर अपने पति को || कहानी समाप्त करके अभय ने मातंगों से पूछासारी घटना सुना दी। आप लोगों ने कहानी ध्यान से सुनी? अब मुझे बताओ इनमें से (प्रिये ! तुम्हारी सच्चाई और कौन श्रेष्ठ है? सुन्दरी, उसका | निर्भीकता की विजय हुई। मैं | पति, दैत्य, माली, या चोर? तुम्हारी स्पष्टवादिता से बहुत प्रसन्न हूँ। www.jainelibrary.org Jain Education International For Privat 25 Personal Use OnlyPage Navigation
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