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( ए६ )
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॥ ५ ॥ काल दोपसें छात्र मिलें । आगम पैंतालीस ॥ ताको मुनि विवरण करे । माने विसवावीस ॥ ६ ॥ ढाल ॥ जगत गुरु त्रिशला नंदन जी एदेशी || आचारांग पहिलो कह्यो जी । मुनि आचार विचार || सुय गमांग दूजो जी | पापंमी निरधार ॥ जगत गुरु जाखे वीर जिनंद ॥ १ ॥ दस गण गणांग में जी। समवायांग संख्यात ॥ सहस बत्तीस जात प्रश्ननो जी | जगवई अंग विज्ञात || जग० ॥ २ ॥ धर्म कथा ज्ञाता जी जी । दस श्रावक व्रतधार ॥ दसा उपासक सातमो जी । अंग कह्यो निरधार ॥ जग० ॥ ३ ॥ अंतगम केवली जे थया जी । वरणन अष्टम अंग || पंचानुत्तर जे गया जी । ऋणुत्तरोवाई चंग ॥ जग० ॥ ४ ॥ अंगुष्टादिक प्रश्नो जी । प्रश्न व्याकरण नाम | सुख दुखना फल जाषिया जी | सूत्र विपाके ताम ॥ जग० ॥ ५ ॥ अढार सहस आचा रांगमें जी । पदसंख्या परिमाण || वर्ण संख्याते पद हुवे जी । गए 5गुण सब जाए || जग० || ६ || जववाई उपांग में जी । कोशिक रूप || वर्णन नगरी यदिदे जी । सांजल नविजन चूप ॥ जग० ॥ 9 ॥ सूरियन पूजा करी जी । जिन प्रतिमा नवरंग ॥ द्रव्य जाव चिहुं जेद सूं जी । राय प्रश्नी चित चंग ॥ ज० ॥ ८ ॥ जीवतो निगम सही जी । विजय देव प्रस्ताव || जीवानिगम तीजो कह्यो जी सुरकृत बहु विध जाव || जग० ॥ ए ॥ पन्ना में जाए ज्यो जी । जीवा जीव विचार ॥ जंबु दीपनी वर्णना जी । नाम थकी गुण धार ॥ ज० ॥ १० ॥ सूरचंद्र विग्रह गती. जी । पन्नत्ती बिहुं जाए ||
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