Book Title: Bruhat Stavanavali
Author(s): Prachin Pustakoddhar Fund
Publisher: Prachin Pustakoddhar Fund

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Page 323
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०६) सुंदर ॥ बहुत्तर सहस अंतेउरी, सुख जोगवे नित्यमेव हो सुंदर तम् ॥ ४ ॥ रूप कुरूप कालो घणो, हरिकेशी चंमाल हो सुंदर ॥ सुरनर कोमी सेवा करै, ते में कीधी चाल हो सुंदर ॥ तप० ५॥ विष्णुकुमर लवधे कियु, लाख योजननो रूप हो सुंदर ॥ श्रीसंघ केरे कारणे, ए मुक शक्ति अनूप हो सुंदर ॥ त ६॥ अष्टापद गौतम चढ्या, वांद्या जिन चोवीस हो सुंदर ॥ तापस पिण प्रतिवूऊव्यो, तिण मुक अधिक जगीस हो सुंदर ॥ त०७॥ चौद सहस अणगारमां, श्रीधन्नो अणगार हो सुंदर ॥ वीर जिणंद वखाणीयो, ए पण मुज अधिकार हो सुंदर ॥ त० ॥ ७॥ कृष्ण नरेसर आगलै, मुक्करकारक एह हो सुंदर ॥ ढंढण नेम प्रसंसीयो, मुफ महिमा सवि तेह हो सुंदर ॥ तम् ॥ ए॥ नंदिषेण वोहरण गयो, गणिका कीधो हास हो सुंदर ॥ वृष्टि करी सोवनतणी, में तसु पूरी आस हो सुंदर ॥ त० ॥ १० ॥ श्म बलजा प्रमुख बहू, तास्या तपसी जीव हो सुंदर ॥ समयसुंदर प्रन्नु वीरजी, पहिलो मुफ प्रस्ताव हो सुंदर ॥ त ॥११॥ ॥ दूहा ॥ जाव कहै तप तूं किसुंबेड्युं करै कषाय ॥ पूर्वकोमी जो तप तपै, क्षणमां खैरूं थाय ॥१॥ खंधक आचारज प्रते, ते बाट्यो सवि लेश ॥ अशुल नियाणो तूं करें, दमा नही लवलेश ॥॥छीपायन शपि दूहव्या, सांब प्रद्युम्न सनाह ॥ तें तप क्रोध करी तिहां किधो धारिका दाह ॥ ३ ॥ दान शील तप सांजलो, म करो र गुमान ॥ लोक सहूको साख दे, धर्मे लाव प्रधान ॥४॥आप नपूंसक For Private And Personal Use Only

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