Book Title: Bruhad Gaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 5
________________ दो शब्द निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से अस्तित्व में आये प्राचीन गच्छों बृहद्गच्छ या वडगच्छ भी एक है । इस गच्छ की मान्यतानुसार चन्द्रकुल के आचार्य उद्योतनसूरि ने अर्बुदगिरि की तलहटी में स्थित धर्माण ( वरमाण) सन्निवेश में वटवृक्ष के नीचे श्री सर्वदेव सहित आठ मुनिजनों को एक साथ आचार्य पद प्रदान किया, जिससे उनकी शिष्य-संतति बडगच्छीय कहलायी । वटवृक्ष की भांति इस गच्छ की अनेक शाखायेंप्रशाखायें हुईं, अतः इसका एक नाम बृहद्गच्छ भी प्रचलित हुआ । इस गच्छ में सर्वदेवसूरि, देवसूरि 'विहारुक', नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम', उद्योतनसूरि 'द्वितीय', आम्रदेवसूरि ‘प्रथम’, देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, वादिदेवसूरि, चन्द्रप्रभसूरि (पूर्णिमागच्छ के आदि पुरुष ), शांतिसूरि (पिप्पलगच्छ के प्रवर्तक), प्रसिद्ध ग्रन्थकार हरिभद्रसूरि, सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रज्ञाचक्षु रामचन्द्रसूरि, उनके शिष्य जयमंगलसूरि, सोमचन्द्रसूरि, ज्ञानकलशमुनि, हेमचन्द्रसूरि, सोमप्रभसूरि, मुहम्मद तुगलक के उत्तराधिकारी फिरोज तुगलक द्वारा सम्मानित विद्याकर गणि, यन्त्रराज के रचनाकार महेन्द्रसूरि ( इनका भी सम्मान फिरोज तुगलक द्वारा किया गया था), उनके शिष्य मलयचन्द्र, वाचक विनयरत्न, भावदेवसूरि, विभिन्न कृतियों के रचनाकार मुनि मालदेव आदि कई प्रभावक और विद्वान् मुनिजन हो चुके हैं । इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में सलेख जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १९८३ से वि० सं० १६५८ तक अविच्छिन्न रूप से जुडी हुई हैं । स्थानकवासी परम्परा के उद्भव और विकास के फलस्वरूप खरतरगच्छ, तपागच्छ और अंचलगच्छ को छोड़कर प्रायः सभी गच्छों के प्रभाव में तीव्रगति से ह्रास होने लगा। बृहद्गच्छ भी इस प्रभाव से अछूता न रहा । यद्यपि आज यह गच्छ अस्तित्त्व में नहीं है, तथापि इससे उद्भूत नागपुरीयतपागच्छ आज पार्श्वचन्द्रगच्छ के रूप विद्यमान है । तपागच्छ, अंचलगच्छ और खरतरगच्छ की विभिन्न शाखाओं के इतिहास के पश्चात् बृहद्गच्छ के इतिहास के लेखन की स्वतः प्रेरणा प्राप्त हुई और स्वनामधन्य प्रो० एम०ए० ढांकी, महोपाध्याय विनयसागर और प्रो० सागरमलजी जैन से समय-समय पर इस सम्बन्ध में दिशानिर्देश प्राप्त होता रहा । प्रस्तुत पुस्तक के प्रथम अध्याय में इस गच्छ के इतिहास के स्त्रोत सामग्री की चर्चा की गयी है । द्वितीय अध्याय मे इस गच्छ के प्राचीन इतिहास का संक्षिप्त विवरण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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