Book Title: Bhojan Vichitti Author(s): Samaypragnashreeji Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ १३२ अनुसन्धान ४९ अमुक नख मोटा केम राखवामां आवे छे, तेनुं कारण कदाच आ वातमां जडे छे. ए चोखा ओरनारी स्त्री उत्तम होय, तो तेने ओसाववावाळी स्त्री सुघड होय फूड नहीं. अने सुजाण - रसोईनी कलाभां पारंगत स्त्री ते चोखाने (सीझे एटले) ऊतारे. आवा चोखाना भात पीरसाया छे. ए पछी आवे छे दाळ. विविध जातनी दाळनां नामो आपणी रुचिने उद्दीप्त करो मूके खरी. दाळ पछी अनेक प्रकारनां घी पीरसातां होय छे, सुगन्धी घी सदा आदेय - खावा लायक होय ज, पण नाक पण (तेनी सुगन्धीने) पीतुं ज रहे छे. अपोषण पते एटले रोटली-पोळीनो वारो आवे छे."फूकनी मारी फलसै जाई, एकवीसनो एक कोलीउ थाई" आ वाक्यमां ए पोळी केवी पातळी - बारीक अने सुंवाळी होय तेनो अंदाज मळी रहे छे. रोटली साथ जोईए शाक. अहीं शाकनां अनेक अनेक नामो आलेख्यां छे. एमां 'मुंठ कचराना' क्या शाकनुं नाम छे ते समजातुं नथी. 'धपुंगारीया' ए कई क्रियानुं सूचन करतो शब्द हशे, ते खबर नथी. शाक साथे ज भाजी पण अनेकविध पीरसाय छे. आ कोई जैन धर्मने लगता उत्सव - जमणनुं वर्णन नथी, तेथी आमां मूळानी भाजी के सूरणनी वात होय तो उछळी पडवा जेवुं नथी. हवे आवे छे अथाणां, अने ते पछी विविध प्रकारनां वडां पीरसातां जोवा मळे छे. छेल्ले त्यां मरचुं पण पीरसाय छे. एवं मरचुं के मोंमां घाले के चमचम थाय, पण तुरत ज गळे ऊतरी जाय. भोजननी उत्तमता माटे प्रयोजेल एक वाक्य तो जबरुं लख्युं छे के "घणुं सुं वखाणीइ ? देवता पणि खावाने टलवलै !" ओ पछी 'पलेव' पीरसाय छे. पलेवनो अर्थ खबर नथी पडती. कदाच 'धाणी' होय तो होय. पांच जातनी तो पलेव पीरसाय छे ! मुखशुद्धि माटे हशे कदाच. ते पछी पीवानां पाणी मूकायां छे. पाणीथी मुखशुद्धि थतां तरत प्रथम दहीं अने पछी छाशनां धोळ तथा करबा रजू थाय छे. अहीं 'छछनालायै' शब्द छे तेमां समजण पडी नथी. छछ ए छाछ - छाशनुं सूचन करतो शब्द हशे ? आ पछी कोगळा (चलु) करवा माटे पाणी अपाय छे ते पण केटली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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