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अज्ञातकर्तृक भोजनविच्छित्ति:
सं. साध्वी समयप्रज्ञाश्री
जूनी गुजराती भाषामां भोजन विधिनुं वर्णन करती आ एक रसिक रचना अत्रे आपवामां आवी छे. 'भोजनविच्छित्ति' नामे आ रचना कर्ता के लेखक अज्ञातप्राय छे.
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भोजनमण्डपना वर्णनथी शरु थती आ रचनामां क्रमशः भोजनोचित वासण-बाजठ वगेरेनुं, पीरसवा आवनारी स्त्रीओनुं मजेदार वर्णन थयेल छे. भोजनना थाल वगेरे गंगोदकथी परवाळेला होय छे; गंदा, एंठा के मेला नहि. धोवानुं पाणी पण गंगाजळ, गमे ते पाणी नहि. पीरसनारी स्त्रीओ पण १६ शणगार सजेली, वळी लघुलाघवी अर्थात् सामाने खबर पडे ते पहेलां पीरसी पीरसीने आगळ चाली जनारी एवी स्फूर्ति धरावती ते स्त्रीओ छे. ते पाछी उदार होय, आपवामां खुश थती होय, तेमनो हाथ 'दोलती' - शुकनवंतो होय; ए हाथे लेवुं गमे अने ते भारे होंशीली तेथी धसमसती - दोडी दोडी आवे पीरसवा माटे. पीरसवानो क्रम पण समजवा जेवो छे : सौ पहेलां फलहल कहेतां फळो अने मेवा पीरसवामां आवे छे. फळो, अने ते करतांय मेवानां द्रव्योनां नामो वांचतां ज मों पहोळं थई जाय !
ते पछी आवे पकवान्ननो वारो. विविध पक्वान्ननां नामो वांचतां तो मोंमा पाणी ज छूटे ! परंतु लाडूनां नामो अने प्रकारनुं वैविध्य तो वांचीने ज तृप्त करी मूके छे.
ते पछी 'शालि' एटले चोखा (पात) पीरसाय छे. 'जे जीमीइं विचालि' एटले भोजनमध्यमां ते समये भात लेवानी प्रथा होवी जोईए. चोखाना पण केवा केटला प्रकारो देखाडेल छे ! केटलांक नामो तो साव नवां ज लागे.
ए चोखानी चोक्खाईनी वात पण मजा पडे तेवी छे. जुओ - तेने खांडे छे नबळी स्त्री, अर्थात् घरमां बेठां बेठां घरडी स्त्रीए ते खांड्या हशे तेने छडवानुं काम सबळी कहेतां सशक्त बाईओ करे छे. तेने शोधनारीनो हाथ हळवो होय, तो वीणे तेना नख मोटा-सारा होय, जेथी कांकरा वगेर तरत वीणी लेवाय. स्त्रीना
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अमुक नख मोटा केम राखवामां आवे छे, तेनुं कारण कदाच आ वातमां जडे छे. ए चोखा ओरनारी स्त्री उत्तम होय, तो तेने ओसाववावाळी स्त्री सुघड होय फूड नहीं. अने सुजाण - रसोईनी कलाभां पारंगत स्त्री ते चोखाने (सीझे एटले) ऊतारे. आवा चोखाना भात पीरसाया छे.
ए पछी आवे छे दाळ. विविध जातनी दाळनां नामो आपणी रुचिने उद्दीप्त करो मूके खरी. दाळ पछी अनेक प्रकारनां घी पीरसातां होय छे, सुगन्धी घी सदा आदेय - खावा लायक होय ज, पण नाक पण (तेनी सुगन्धीने) पीतुं ज रहे छे.
अपोषण पते एटले रोटली-पोळीनो वारो आवे छे."फूकनी मारी फलसै जाई, एकवीसनो एक कोलीउ थाई"
आ वाक्यमां ए पोळी केवी पातळी - बारीक अने सुंवाळी होय तेनो अंदाज मळी रहे छे.
रोटली साथ जोईए शाक. अहीं शाकनां अनेक अनेक नामो आलेख्यां छे. एमां 'मुंठ कचराना' क्या शाकनुं नाम छे ते समजातुं नथी. 'धपुंगारीया' ए कई क्रियानुं सूचन करतो शब्द हशे, ते खबर नथी. शाक साथे ज भाजी पण अनेकविध पीरसाय छे. आ कोई जैन धर्मने लगता उत्सव - जमणनुं वर्णन नथी, तेथी आमां मूळानी भाजी के सूरणनी वात होय तो उछळी पडवा जेवुं नथी.
हवे आवे छे अथाणां, अने ते पछी विविध प्रकारनां वडां पीरसातां जोवा मळे छे. छेल्ले त्यां मरचुं पण पीरसाय छे. एवं मरचुं के मोंमां घाले के चमचम थाय, पण तुरत ज गळे ऊतरी जाय. भोजननी उत्तमता माटे प्रयोजेल एक वाक्य तो जबरुं लख्युं छे के "घणुं सुं वखाणीइ ? देवता पणि खावाने टलवलै !" ओ पछी 'पलेव' पीरसाय छे. पलेवनो अर्थ खबर नथी पडती. कदाच 'धाणी' होय तो होय. पांच जातनी तो पलेव पीरसाय छे ! मुखशुद्धि माटे हशे कदाच. ते पछी पीवानां पाणी मूकायां छे. पाणीथी मुखशुद्धि थतां तरत प्रथम दहीं अने पछी छाशनां धोळ तथा करबा रजू थाय छे. अहीं 'छछनालायै' शब्द छे तेमां समजण पडी नथी. छछ ए छाछ - छाशनुं सूचन करतो शब्द हशे ?
आ पछी कोगळा (चलु) करवा माटे पाणी अपाय छे ते पण केटली
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जातनां छे ! अने ते विधि पत्या पछी आवे छे 'मूंछण' आनो अर्थ प्रतना हांसियामां तेना लेखके ज लखे ल छे : 'मुखवासः' ते सोपारी प्रमुख मुखवास, अने छल्ले पानबीडां आपीने भोजनक्रिया पूरी कराय छे.
ए पछी पधारेल महेमानोने पहेरामणीमां भातभातनां वस्त्रो अर्पण थाय छे. केसर-चन्दननां छांटणां करीने तेल-अत्तरनां विलेपन लगावाय छे ए पछी ३२ जातिनां घरेणां (ग्रहणा) उपहाररूपे अपाय, तेना केटलांक नामो आपेल छे. आ रीते कुटुम्बनुं सामीवच्छल (जमण) कर्या बाद छेल्ले विविध जातिनां पुष्पो तथा फूलनी माळाओ संघवा तथा पहेरवा अपाय छे. छेक छल्ले (विदाय वेळाए) हाथमां फळ आपे छे अने शीख (रूपिया) पण आपे छे. आम भोजनविधि पूरो थाय छे.
पूज्य श्रीए बेत्रण वर्ष अगाऊ थोडांक छूटक पानां शीखवा तथा लखवा माटे आपेला. तेमां ३ पानांनी आ प्रतनी झेरोक्स पण हती. आ प्रत उपर कच्छमांडवीना खरतरगच्छना ज्ञानभण्डारनो नम्बर तथा सिक्को छे, तेथी आवृं शिक्षण आपनारुं ज्ञान वधारनारुं कार्य करवा माटे आ प्रत आपनार पूज्यश्रीनी अने मांडवीना ज्ञानभण्डारनी हुं हमेशां ऋणी रहीश. भूलचूक थई होय तो सुधारी लेवा विनंति करूं छु.
थोडाक अजाण्या शब्दोनी नोंध रमणीरक
रमणीय आंडणी
बाजोठ (?) काटकी
काट नी तितरइ
तेटलामां प्रीसणहारी
पीरसनारी लघलाघवी
लघुलाघवी - चपलता फलहल
फळ - मेवो वगेरे प्रीसइ
पीरसे छे. सखरा करणा
फलजाति पूगे - पहोंचे
पूजै
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कोडि
सिलेमी
गिरी
परिघल
निबली
हलवइ
काबली चिण
सुरहा
मुंठकचरा
सरघू
धुपंगारीया
सोआ
वथूया
सिना
पलेव
छछनाला
पांडल पाणी
पांभडी
अटाणं
चोवा
गहणा
कोड - मनोरथ सुलेमानी (?)
गर- गर्भ
भरपूर
नबळी
हळवे
काबुली चणा
सुरभि-सुगन्धी
सरगवो
धूप- अंगारिया अर्थात् सगडीमां बळीने
भडथुं थयेल (?)
सूवा (नी भाजी)
वत्थुला (भाजी) भीना (?)
पाटलानी सुगन्धवाळं (?)
पामरी - पीताम्बरी
चूवो
घरेणां
अत्र पुनः ग्रन्थान्तराणुसारेण भोजनविच्छित्त (त्ति) प्राहः मांड्यो उत्तंग तोरण मांडवउं, तुरत बैसवानो नवो जे रमणीक आंगणो, ते तो नील रतनतणो । सखरा मांड्या आसण, तिहां बैसता किसी विमासण आगइ मूंकी सोनानी आंडणी, ते किम जाइये छांडणी ।
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ऊपरि सोनानी थाल, अत्यंत घणुं विसाल विचमै चउसठि वाटकी लिगार नही जाति काटकी । गंगोदक दीधा थाल कचोला नै हाथ पवित्र कीधा सगली पांति बैठी तितरइ प्रीसणहारी पइठी ।
ते कहवी
सोल शृंगार सज्या बीजा काम तज्या हाथनी रूडी, बिहुं बांहे खलकै चूडी । लघलाघवी कला मन कीधा मोकला चित्तनी उदार, अति घणुं दातार । दोलती हाथ, परमेसर देजो तेहनो साथ धसमसती आवी सगलारै मन भावी ।
तो पहिलुं फलहल प्रीसइं, ते कहेवो- सगलारां हीया हींसइ । पाका आंबानी कांतली, ते बूराखांडसुं भरी अनै पातली
पाका केला, ते वली खांडसुं कीधा भेला ।
सखरा करणा ते वली पीलावरणा
नीली नारंगी रंगइ दीसता सुरंगी । नीली रायण ते पिण प्रीसी भायण दाडिमनी कली खातां पूजे रली । निमजा नै अखोड खातां पूर्जें कोडि द्राख अनै बिदाम केई कागदी केई स्याम |
सिलेमी खारिक अनै खजूर, ते पिण प्रीस्या भरपूर नालेरनी गिरी मालवी गुंदसुं भरी ।
नीबूं खाट्टा अनै मीठा एहवा तो किहांई न दीठा चारोली नै पिसता लोक जिमैं हसता ।
वले सेलडी अनै सदाफल तेपिण प्रोस्या परिघल हिवै पकवान आण ते केहवा वखाणै ।
सतपुडा खाजा तुरत कीधा ताजा सदला नै साजा मोटा जाणै प्रसादना छाजा ।
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पछै प्रीस्या लाडू जाणे नान्हा गाडू कुण कुण ते नाम जिमतां मन रहै ठाम । ते केहेवा लाडू ? - मोतीया लाडू, दालिया लाडू सेवेइया लाडू, कीटीया, – तिलरा०, मगरीया लाडू, झगरीया लाडू, सिंहकेसरीया लाडू, चूरमाना लाडू । वली बीजा आण्या पकवान, जीमतां वाधई मुखनो वान कुण कुण जाति, नवी नवी भांति । दहीवडां गुंदवडी, फीणा सफरासोट माहे नही कांइ खोट पातली सेव, प्रीसी रुडी टेव । तत्ता उभा(ना?) घेवर तल्यां गुंद, कुंडलाकृत जलेबी, सीरा लापसी । मीठो मगद्द, आछो माल निगद्द खांडनो चूरमो साकरनो चूरमो। पछई प्रीसी साली, जे जीमीई विचालि ते कुण कुण जात खातां उपजै उमेद । सुगंधसालि, सुवर्णसालि, धउली साल, कलम साल, पीली साल, सुध सालि, कौमुदी साल, कलमसालि, कुकण सालि, देवजीरी साल, रायभोग साल, नीली सालि । वली साठी चोखा, अखंड चोखा, एवा चोखा जाणवानिबलीयै खाड्या. सबली स्त्रीय छड्या, हलवई हाथै सोध्या, नखवती स्त्रीइ वीण्या, उत्तमस्त्रीयै ओर्या, सुघड स्त्रीयै, ओसायासुजांण स्त्रीयै उतार्या, एहवा अणीयाला चो० (चोखा) सुगंध सरस फरहरा कूर प्रीस्या । वली हिवइ दालि आवै । ते केहवी?मंडोवरा मगनी दालि, काबली चिणरी दालि, गुजराती तूअरनी दालि, उड़दनी दालि, झालिरनी दालि. मटनी. मरनी मगरनी
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वरण पीली परिणामै सीयली ।
वली परिबल घी प्रीस्या । पणि ते केहवा घी ?आजना ताव्या घी, गायना घी, मजीठवरणीया घी, सुरहा घी नाक पीयै घी सदा आदेय घी एहवा घी प्रीस्या ।
हिवइ पोली प्रीसी । पणि ते केहवी पोली ?आछी पातली पोली, घी मांहें झबोली, फूकनी मारी फलसै जाई
एकवीसनो एक कोलीउ थाई ।
हिवै साक आवै । पणि ते केहवा साक ?नीली छमकाई डोडीना साक, टींडोराना साक, टीडसीना साक, चीभडाना०, कोलाना०, कारेलाना साक, कंकोडाना०, करमदाना० कालिंगडाना०, केलाना०, आरीयाना०, तूरीयाना०, मुंठकचराना०, खरबूजाना ०, मतीराना०, मोगरीना०, नींबूयाना०, आबोलिना०, वाल्होरना, चउराफली ०, गवारफलीना०, सरघूनी फली, सांगरी, काचरी, कयरना०, आवलाना०, फोगना०, नीलीपीपरना०, राईना खाटा साक, मीठा साक, खारा साक, तल्या०, वघारीया०, धुपंगारीया, छमकाया०, एहवा साक जांणवा । वली प्रीस भाजी ते उपरी सहू को हुई राजी ते कुणकुण जात ? सरसवनी भाजी, सोआनी भाजी, मूलानी० वधूयानी ०, चिणानी०, चंदलेवा०, मेथीनी० एहवी अनेक प्रकारनी भाजी जांणवी | हिवर अथाणा प्रीसे ।। पिण ते कहेवा 2मिरा अथाणा, नान्हा केरना०, बांसना०.
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पर्वती राईना । एहवा अनेक प्रकारना अथाना जाणवा । हिवै वडानो साक आवै। ते केहवा वडा ?मरिचाला वडा, तल्या वडा, कोरा वडा, कांजी वडा, घोलवडा, मगनी दालिना वडा, उडदनी दालिना वडा. घणै तैलै सिना. घणै घोलै भेला। मरिचांनी घणी चिमित्कार, अत्यंत घणुं सुकमाल पिण केहवा ? हाथइ लीघा उछलई, मुहडामांहि घाल्यां तुरत गलै । घणुं सुं वखाणीइं ? देवता पाणि खावानै टलवलै ।। हिवई पलेव आवै । पिण ते केहवी पलेव? चोखानी पलेव, ज्वारनी पलेव, बाजरीनी पलेव, हलदिया पलेव, सबडिकीया पलेव । हिवै विचई पीवाना पाणी । ते केहवा पांणी ?-- साकरना पाणी, द्राखना पाणी, गंगाना पाणी, ताढा हीम सीतल पांणी ।। एहवा पांणी जाणवा। हिवे उपरि छछनालायै दही आवई । ते केहवा वखाणै ?- गाइना दही, भइसना दही, सथूरा दही, काठा जमाव्या दही, मधुरा दही । हिवइ दहीना घोल आंण । ते केहवा ? सजीराला घोल, सलूणा घोल, जाडा घोल, तेहना भर्या कचोला, चोखा सेती जीमतां थया रंगरोल । वली सखरा करबा, भरी आण्या गरबा मांहि राई, जीमतां ढील नही काई । उपरि जीरा लूणरो प्रतिवास करणहारी पणि खास । हिवै चलु करिवाना पाणी आवै । पांडल पाणी, केवडाव(वा)सित पांणी, कथाना पाणी, कपूरवासित पांणी, चंदनवासित पांणी, एलचीवासित पाणी, गंगोदक पाणी, एहवा पांणीसुं चलू कराव्या ।
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हिवइ मूंछण' आवै । ते पिण केहवा मूंछण ?वांकडी सोपानी फाल, चिवल सोपारीनी फाल, वली तीखा लवंग, जावंत्री, जायफल, एलची,
पाका पान ।
नागरवेलना पान, घणां आदरनैं मांन, घणां गीत नें ग्यान, घणां तान नै मांन ।
पछै भला ग्यांन, घणां तान नै मांन । पछै भला वस्त्र पहिराव्या । ते कुण कुण ? - देवदूष्यवस्त्र रत्नकंबल पांभडी खीरोदक अटाणं खासा मुलमुल भैरव सालु अधोत्तरी नरमा थिरमा सेल्हा कपूरधूलि महाअमूल कसबी मुखमल चीणी मसंजर बुलबुलचसमा
कथीपा पाटू टसरिया सणिया नवतारी कुंजर
प्रमुख वस्त्र पंचरंग पहिराव्या ।
वली केसरीया छाटणां कीधा । भला वीलेपण कीधा ।
बावन्ना - चंदन, अरगजा एहवा अनेक चोवा
पांचेल (?) केवडेल, मोगरेल, एहवा अनेक तेल पिण सरिरै लगाया ।
वली बत्रीस जातिना ग्रहणा ते पिण आप्या ।
पुरुष अथवा स्त्रीयांदिकना ग्रहणा आप्या ते कहे छै ।
हवे ग्रहणा वखाणें । ते कुण कुण ?
मुगट १. कुंडल २. तिलक ३. हार ४. दोरा ५. बीरबल ६. प्रमुख अंगद बैहरखा ७. नवग्रही ८. मुंद्रडी ९. कणदोरा १०. हाथपगना कडला ११. सांकली १२. पणुंचीया १३. मादलीया १४. प्रमुख एहवा ग्रहना आध्या । एहवी कुटंब सामीभक्तिवच्छिल कीधी । वली अनेक प्रकारना फूल तेहनी माला करी
१. 'मुखवास' इति टि. प्रतौ ।
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________________ 140 अनुसन्धान 49 पहीराव्या ते जाणवा / ते फूल केहवामोगरो जवाद पोईसडा प्रमुख डीले लगाड्या / हवै फूलमाला दियें - जाई, जुई, कुंद, मचकुंद, केवडो, चांपा, मरूवो, मोगरो, दामणो, केतकी, मालती, प्रमुखना फूलनी माला पैरावी, फल हाथमां दीईधा / / सीख दीधी // संपूर्णः / / C/o. प्रभागिरिदर्शन धर्मशाला तलेटी रोड, पालीताणा