Book Title: Bhikshunyayakarnika
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 279
________________ २४६ भिक्षुन्यायकर्णिका इसका उदाहरण है – चार्वाकदर्शन। केवल वर्तमान पर्याय का स्वीकार करने वाले तथा द्रव्य का सर्वथा अपलाप करने वाले विचार को ऋजुसूत्रनयाभास कहा जाता है, इसका उदाहरण है ... बौद्धदर्शन। काल आदि के भेद से अर्थभेद को ही मान्य करने वाले विचार को शब्दनयाभास कहा जाता है, इसका उदाहरण है - वैयाकरण। पर्याय के भेद से अर्थ-भेद को ही मान्य करने वाले विचार को समभिरूढ़नयाभास कहा जाता है। क्रिया में अपरिणत वस्तु शब्द का वाच्य होता ही नहीं इस अभिप्राय को एवंभूतनयाभास कहा जाता है। न्या. प्र.क. द्रव्यार्थिकाभासः- द्रव्यपर्यायात्मकेवस्तुनिपर्यायस्य निरासं कुर्वन् यो विचार: केवलं द्रव्यस्य ग्राहको भवति अर्थात् द्रव्यमात्रमेवगृह्णाति स द्रव्यार्थिकाभासः कथ्यते। ख. पर्यायार्थिकाभासः - यत्र द्रव्यमुपेक्ष्य पर्यायमात्रं गृह्यते स विचार: पर्यायार्थिकाभासः। नैगमाभासः - धर्मद्वयादीनामैकान्तिकपार्थक्याभिसन्धि गमाभासः। इदमत्र बोध्यम् – द्रव्यपर्यायात्मकं वस्तु भवति । ग. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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