Book Title: Bhavana Sataka
Author(s): A S Gopani, Dharmshila Mahasati, Girishkumar P Shah Pandit
Publisher: Labhubhai P Mehta

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Page 122
________________ - - - ॥ परिशिष्टम् ॥ (१) मैत्री - भावना राग -- आशावरी । ताल - त्रिताल । मैत्र्या भूमिरतीव रम्या । भव्यजनैरेव गम्या ॥ मैत्र्या० ॥ ध्रुवपदम् ॥ भातृभगिनीसुतजायाभिः । स्वजनैः सम्बन्धिवर्गः ॥ समानधमैतिजनैश्च । क्रमशो मैत्री कार्या ॥ मैव्या० ॥१॥ कालेऽतीते भवेत्प्रवृद्धो यथा च मैत्रीप्रवाहः ॥ ग्रामजना ये जानपदा वा। मैच्या तेऽन्तर्भाव्याः ॥ मैश्या० ॥२॥ गवादयस्तियश्चः सर्वे । विकलेन्द्रियास्त्रयोऽपि ॥ भूताः सचा ये जगति स्युः । सर्वे मैत्र्या ग्राह्याः ॥ मैया० ॥३॥ 101 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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