Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रके रक्खे गये हैं, किन्तु अनेक शब्द ऐसे भी मिलते हैं जिनमें रूपान्तर नहीं गा और वे अपने उसी मूल रूप में है जो रूप उनका उनकी भाषा में प्रचलित अर्थात् वे अपने शुद्ध तत्सम रूप में ही हैं । ___ इनके अतिरिक्त हिन्दी-साहित्य में कहीं कहीं कुछ ठेठ प्रान्तीय या ग्राम्य इ-विशेष भी प्रयुक्त किये गये हैं। हिन्दी भाषा का शब्द-कोश इसीलिये विध बालियों तथा भाषाओं के शब्द-रत्नों का अनुपम आगार है। हिन्दी भाषा का विकास मुख्यतया दो प्रधान कारणों ( या आन्दोलनों) हुआ है। प्रथमतः धार्मिक आन्दोलन (कृष्णा-राम-भक्ति, संत-ज्ञान या निर्माण द और सूफी मत सम्बन्धी प्रेमात्मक वेदान्ताभासवाद ) से ब्रज भाषा, अवधी गा अन्य प्रान्तीय बालियों का विकास-प्रकाश हुआ, फिर राष्ट्रीय तथा आर्य पाज के अान्दोलनों के कारण खड़ी बाली का विकास हुश्रा। मुसलमानों प्रभाव से हिन्दी का एक नया रूप उर्दू के नाम से ( जिस पर, फारसी और रबी का प्रभाव पड़ा है ) निखर और बिखर गया है । अब इधर कुछ समय हिन्दी (साहित्यिक शुद्ध खड़ी बाली ) और उर्दू (फ़ारसी-प्रभावित श्चिमीय हिन्दी ) को मिला कर हिन्दुस्तानी के नाम से एक नया रूप और रूस पड़ा है। संस्कृत के आधार पर विकसित (उससे सर्वथा प्रभावित होकर) काट साहित्यिक हिन्दी या खड़ी बोली अपना एक विशेष रूप और स्थान बती है । हिन्दी पर प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं की भी छाप पड़ी हुई है। । अतएव प्राचीन और अर्वाचीन हिन्दी के लिये वही कोश उपादय हो सकता है जिसमें उपर्युक्त सभी बालियों तथा भाषाओं के वे सब शब्द संग्रहीत 'हां जो हिन्दी-संसार में सर्वथा व्यापक और प्रचलित हैं। इसी विचार को लक्ष्य रख कर प्रस्तुत कोश का संग्रह किया गया है। बहुत से शब्द तो ऐसे भी हैं जनका उपयोग केवल काव्य-भाषा में ही होता है, गद्य या बोलचाल में उनका योग नहीं किया जाता, ऐसे शब्द भी इसमें संकलित किये गये हैं। .. इस समय हिन्दी-संसार में कई सुन्दर कोश विद्यमान हैं, ऐसी दशा में इस काश की क्या आवश्यकता थी, इस सम्बन्ध में निवेदन है कि अन्यान्य कोशों में लोगों और विशेषतया स्कूलों और कालेजों के विद्यार्थियों को कुछ कमी प्रतीत हुई और एक ऐसे साधारण कोश की आवश्यकता तथा माँग हुई जो जन-साधारण तथा विशेषतया विद्यार्थियों के लिये उपयोगी हो। स्वर्गीय श्री लाला रामनारायण जी बुकसेलर ने यह मांग और आवश्यकता मेरे सामने रख एक काश तैय्यार करने को कहा लाला जी ने कोशों के प्रकाशन द्वारा भाषा, साहित्य और विद्यार्थी-वृन्द तथा जन-साधारण का बड़ा हित किया है । उन्होंने (अँग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, उर्दू के ) कई सुन्दर, सरल, सुबाध और सस्ते काश प्रकाशित किये हैं। मैंने भी यह गुरुतर कार्य उठा लिया। केवल इस सहारे से For Private and Personal Use Only

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