Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( 4 ) ८ - विशेष विशेष शब्दों से सम्बन्ध रखने वाले प्राचीन, अर्वाचीन तथा, ग्रामीण मुहावरे, प्रयोग, तथा विशेषार्थ-व्यंजक नये वाक्यांश भी दे दिये गये हैं । ह - फ़ारसी, अरबी, तथा अँग्रेजी आदि अन्य भाषाओं के सुप्रचलित शब्द तथा उनके देशज रूप भी यथा-स्थान समझाये गये हैं । १० – उच्चारान्तर तथा रूपान्तर के साथ मूल शब्दों पर प्रकाश डाला गया है ( यथा - जोग, योग, योग्य ) ११ - शब्दार्थ देने में काव्य-कला-कौतुक से निकलने वाले प्रर्थान्तर विशेष भी यथा स्थान सूचित किये गये हैं । १२ - पद-भंगतादि चातुर्य से प्रर्थान्तर करने की ओर भी यथा स्थान यथेष्ट संकेत किये गये हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३ – स्थान स्थान पर विशेष विशेष शब्दों से सम्बन्ध रखने वाली लोकोक्तियाँ भी दे दी गई हैं । १४ - काकु (उच्चारान्तर) व्यंजना, ध्वनि आदि के कारण शब्दों में होने वाले अर्थान्तरों या तात्पर्यान्तरों पर भी प्रकाश डाला गया है । इस प्रकार इस कोश को उपयोगी और उपादेय बनाने का यथेष्ट प्रयत्न किया गया है। फिर भी सम्भव है कि इसमें कतिपय त्रुटियाँ और अशुद्धियाँ रह गई हों, जिनका संशोधन और निराकरण अग्रिम संस्करण में हो सकेगा । इनके लिये, मुझे आशा है सहृदय पाठक तथा उदार विद्वान मुझे और इस गुरुतर कार्य को देखते हुये मुझे क्षमा करेंगे और उनके सम्बन्ध में अपनी कृपामयी सम्मति देकर अनुगृहीत करेंगे । अंत में मैं उन सभी कविवरों, सुयोग्य लेखकों, (ग्रंथकारों या कोशकारों) के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकाशित करता हूँ और अपने को उनका आभारी मानता हूँ, जिनके अमर ग्रंथ-रत्नों से मुझे अमूल्य सहायता मिली है । आशा है यह ग्रंथ जनसाधारण तथा विशेषतया विद्यार्थियों के लिये उपयुक्त और उपादेय हो सकेगा । तथास्तु हिन्दी - विभाग प्रयाग - विश्व - विद्यालय ता० ५-१२-३६ ग्रंथ को देखते हुए इसका मूल्य बहुत कम है, कारण यह है कि यह श्री० लाला जी को भेंट है, और सर्व साधारण में इसे व्यापक करना ही अभीष्ट है । श्री लाला जी की भी यही इच्छा थी । तथास्तु विद्वज्जन कृपाकांक्षी रामशङ्कर शुक्ल 'रसाल' एम० ए० संपादक For Private and Personal Use Only

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