Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

Previous | Next

Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २ ) समाज से परित्यक्त होकर भाषा कोश से वहिष्कृत या च्युत भी किये जा चुके हैं। हाँ प्रत्युपयोगी कुछ प्राचीन शब्द अब तक बच रहे हैं और प्राचीन ग्रंश् या कोशादि में छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार अनेक नवनिर्मित तथा नव-प्रचलि शब्द कोषों में लाये जा रहे हैं और बहुत से ऐसे नवोदित शब्द कोशान्तर्गत भी चुके हैं, फिर भी बहुत से ऐसे नवजात शब्द है जो अभी पूर्णतया प्रचा प्रस्तार नहीं प्राप्त कर सके, और इसी से कोशों में भी वे स्थान नहीं पा सके: इस प्रकार कहा जा सकता है कि कोश में भी सदैव रूपान्तर तथा परिवर्तन होर रहता है, उसमें भी संशोधन, संबर्धन तथा परिमार्जन होता जाता है । कोम इसीलिये सर्वथा पूर्ण नहीं हो सकता या नहीं हो पाता । सदैव उसमें परिवर्त और परिवर्धन का होना ( या किया जाना ) अनिवार्य ठहरता है । शब्द-विनिर्मित भाषा की सहायता से मनोगत सुन्दर, समीचीनत संचयनीय विचारों या भावों की संरक्षित या संचित निधि का नाम साहित्य है । साहित्य की भाषा तथा उसके आकार-प्रकार तथा रीति-नीति साधार बोली (जिसका प्रयोग सर्वसाधारण के बोलचाल में होता है ) तथा उसक रीति-नीति से बहुत कुछ भिन्न और पृथक रहती है। कारण यह है कि साहित् की रचना इस विचार - विशेष से की जाती है कि वह न केवल वर्तमान दे. समाज के ही लिये हो वरन् वह स्थायी होकर अग्रिम समाज के लिये उपयोगी हो सके, उसमें स्वाभाषिकता तथा व्यापकता की मात्रा अधिक प्रवल होती है । इसलिये उसकी भाषा का आकार-प्रकार भी विशेषत पूर्ण रक्खा जाता और रहता है । जन-साधारण की भाषा और उस शब्दों से उसे बहुत कुछ परे रखा जाता है, उसमें बोली के समान इसीलि प्रान्तीयतादि की अनीप्सित कठिनाइयाँ नहीं आने दी जातीं। वह सर्वथ सुसंस्कृत, परिष्कृत तथा परिमार्जित रहती है । इसीलिये उसका शब्द-कोश भ उत्कृष्ट और संस्कृत रहता है । हिन्दी-साहित्य के सम्बन्ध में यह नियम पूर्णत घटित नहीं होता, क्योंकि उसका निर्माण जनसाधारण की बोली या भाषा ही द्वारा किया गया है। हिन्दी के तीन मुख्य रूपों का प्रयोग इसमें हुआ अर्थात् ब्रजभाषा ( जो व्रजप्रान्त की बोली से विकसित हुई है ) अवध (जो अवध प्रान्त की बोली से विकसित की गई है ) तथा खड़ी बोली (जिसे पश्चिमीय हिन्दी का विकसित रूप कह सकते हैं ), इनके अतिरिक्त हिन्दीसाहित्य में हिन्दी की अन्य प्रान्तीय बोलियों (जैसे- बुंदेलखंडी, आदि) फ़ारसी, अरबी तथा अंग्रेजी यदि विदेशीय भाषाओं के भी शब्द और प्रयोग सम्पर्क - प्रभाव से आ गये हैं । अन्य भाषाओं के ऐसे शब्द प्रायः दो रूपों में मिलते हैं, प्रथम तो उन्हें ऐसा रूप दे दिया गया है कि वे अन्य भाषा के शब्द न र कर देशी शब्द से ही जान पड़ते हैं, अर्थात् वे शब्द देशज रूप में रूपान्तरित -* For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 1921