Book Title: Bharatiya Sanskruti aur Jain Dharm Sadhna
Author(s): Damodar Shastri
Publisher: Z_Bhanvarlal_Nahta_Abhinandan_Granth_012041.pdf

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________________ इस संस्कृति के लोग भौतिक कामनाओं की पूर्ति के लिए देव-शक्तियों पर आश्रित रहने वाले थे, इनके द्वारा यज्ञ में पशुबलि दी जाती थी, इनका जीवन संघर्षमय व अ-सुरक्षा भावना से ग्रस्त था। दैनिक जीवन में और शत्रुओं के प्रति व्यवहार में वे पूर्णतः अहिंसक नहीं कहे जा सकते। कहीं कहीं तो इनकी क्रूरता के उदाहरण भी दृष्टिगोचर होते हैं। ठीक इसके विपरीत, देश में पर्यटनशील व्रात्य लोगों की परम्परा विद्यमान थी, जो व्रतनिष्ठ एवं अहिंसा भारतीय संस्कृति और जैन धर्म के आराधक थे, जिनका विश्वास आत्म-कल्याण व आत्म-शुद्धि में था। यह परम्परा भी, बहुत सम्भवतः धर्म-साधना सिन्धु घाटी की सभ्यता के निर्माताओं की तरह, श्रमण संस्कृति की अनुयायी थी। -डॉ० दामोदर शास्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, दिल्ली देवों और असुरों के मध्य हुआ संघर्ष भी एक प्रकार से दो संस्कृतियों या जातियों के मध्य था । विद्वानों का अनुमान है कि असुर राजा प्रायः अहिंसक जेन संस्कृति आर्य सभ्यता के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो एक ' से सम्बद्ध थे। यह बात और है कि विद्वष के कारण तथ्य प्रकट होता है कि वैचारिक प्रतिद्वंद्विता की स्थिति 'असुर' शब्द को 'हिंसक' का पर्यायवाची बना दिया प्राचीन काल से है। भारत भूमि दो प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी गया। विष्णपुराण के अनुसार असुर लोग आहेत धर्म विचार-धाराओं या संस्कृतियों की संगम-स्थली रही है। के अनुयायी थे । उनका अहिंसा में पूर्ण विश्वास ये संस्कृतियां हैं-वैदिक संस्कृति और श्रमण ( जैन ) था। यज्ञ व पशुबलि में उनकी अनास्था थी।४ श्राद्ध संस्कृति । व कर्मकाण्ड के वे विरोधी थे।५ महाभारत में असुर हड़प्पा व मोहन-जो-दड़ो की सभ्यता के अवशेषों से राजा बलि अपने मुख से आत्म-साधना का जो वर्णन यह सिद्ध हो गया है कि इस सभ्यता के निर्माता लोग करता है वह जैन धर्म के सर्वथा अनुकूल है । ६ जैन धर्म के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के अनुयायी तथा यौगिक ध्यानादि क्रियाओं द्वारा आत्म-साधना के उपासक जैन संस्कृति के तीर्थंकरों की परम्परा ने भारतीय थे। इस संस्कृति के समानान्तर दूसरी संस्कृति थी- समाज को समय-समय पर जो सद्ज्ञान दिया, उसका वैदिक संस्कृति । वेद में स्थान-स्थान पर वैदिक देवताओं प्रभाव यह हुआ है कि वैदिक संस्कृति में भी अहिंसा धर्म के प्रति की गई प्रार्थनाओं से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि को बहुमान मिलता गया। वीतराग धर्म के प्रति वैदिक । द्र० अथर्व वेद, २/५/३ । २ द्र० विष्ण पुराण, ३/१७-१८ ; देवी भागवत ४/१३/५४-५७; मत्स्य पुराण, २४/४३-४६; पद्म पुराण (सृष्टि खण्ड), १३/१७०-४१३ । ३ विष्णु पु०, ३/१८/२६ । ४ विष्णु पु०, ३/१८/२७-२८ । ५ विष्णु पु०, ३/१८/२६-३० । ६ महाभारत ( शान्ति पर्व ), २२७ अ० (गीता प्रेस)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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