Book Title: Bharatiya Darshan ke Samanya Siddhant
Author(s): Vijay Muni
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ भारतीय दर्शन के सामान्य सिद्धान्त २३३ PO रहती है, उसे दूर करने के लिए ही भारतीय-दार्शनिकों ने त्याग और वैराग्य की बात कही है। यह दुःखवादी विचारधारा बौद्ध-दर्शन में अतिरेकवादी बन गई है। इसे किसी अंश में स्वीकार करना ही होगा। जैन-दर्शन भी इस दुःखवादी परम्परा में सम्मिलित रहा है। सांख्य-दर्शन के प्रारम्भ में ही इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि तीन प्रकार के दुःख से व्याकुल यह आत्मा सुख और शान्ति की खोज करना चाहता है। इस प्रकार भारतीय-दर्शनों में दुःखवादी विचारधारा रही है, इस सत्य से इन्कार नहीं किया जा सकता । एक मात्र सुख का अनुसन्धान ही उसका मुख्य उद्देश्य रहा है। भारतीय दर्शनों में आत्मवाद भारत के सभी दर्शन आत्मा के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। न्याय और वैशेषिक आत्मा को एक अविनश्वर और नित्य पदार्थ मानते हैं । इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख और ज्ञान को उसके विशेष गुण मानते हैं । आत्मा ज्ञाता- कर्ता और भोक्ता है। ज्ञान, अनुभूति और संकल्प आत्मा के धर्म हैं । चैतन्य आत्मा का स्वरूप है। मीमांसा-दर्शन का भी मत यही है । मीमांसा-दर्शन आत्मा को नित्य और विभु मानता है। और चैतन्य को उसका आगन्तुक धर्म मानता है। स्वप्न रहित निद्रा तथा मोक्ष की अवस्था में आत्मा चैतन्य गुण से रहित होता है। सांख्य-दर्शन में पुरुष को नित्य, विभु और चैतन्य स्वरूप माना गया है । इस दर्शन के अनुसार चैतन्य आत्मा का आगन्तुक धर्म नहीं है । पुरुष अकर्ता है, वह सुख-दुःख की अनुभूतियों से रहित है । बुद्धि कर्ता है, और सुख तथा दुःख के गुणों से युक्त है। बुद्धि प्रकृति का परिणाम है और प्रकृति निरन्तर क्रियाशील है। इसके विपरीत पुरुष शुद्ध चैतन्य स्वरूप है। __ अद्वैत वेदान्त आत्मा को विशुद्ध सत्, चित् और आनन्द स्वरूप मानता है । सांख्य अनेक पुरुषों को मानता है, लेकिन ईश्वर को नहीं मानता । अद्वैत केवल एक ही आत्मा को सत्य मानता है। चार्वाक-दर्शन आत्मा की सत्ता को नहीं मानता। वह चैतन्य विशिष्ट शरीर को ही आत्मा कहता है। बौद्ध-दर्शन आत्मा को ज्ञान, अनुभूति और संकल्पों की एक क्षण में परिवर्तन होने वाली सन्तान मानता है। इसके विपरीत जैन-दर्शन आत्मा को नित्य, अजर और अमर स्वीकार करता है। ज्ञान आत्मा का विशिष्ट गुण है । गुण और गुणी में कथंचित् भेद और कथंचित् अभेद रहता है । जैन-दर्शन मानता है कि आत्मा स्वभावतः अनन्त-ज्ञान, अनन्त-दर्शन, अनन्त-सुख और अनन्त-शक्ति से युक्त है। इस दृष्टि से प्रत्येक भारतीय-दर्शन आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है, और उसकी अपने ढंग से व्याख्या करता है। भारतीय-दर्शनों में कर्मवाद कर्मवाद यह मारतीय-दर्शन का एक विशिष्ट सिद्धान्त माना जाता है। भारत के प्रत्येक दर्शन की शाखा ने इस कर्मवाद के सिद्धान्त पर भी गम्भीर विचार किया है। जीवन में जो सुख और दुःख की अनुभूति होती है, उसका कोई आधार अवश्य होना चाहिए। इसका आधार एक मात्र कर्मवाद ही हो सकता है। इस संसार में जो विचित्रता और विविधता का दर्शन होता है, उसका आधार प्रत्येक व्यक्ति का अपना कर्म ही होता है। कर्मवाद के सम्बन्ध में जितना गंभीर और विस्तृत विवेचन जैन-परम्परा के ग्रंथों में उपलब्ध है, उतना अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। एक चार्वाकदर्शन को छोड़कर शेष सभी भारतीय-दर्शन कर्मवाद के नियम में आस्था एवं विश्वास रखते हैं। २ aamanardanamananews MAAma MASUAAJA HI समाचार्यप्रवरआन प्राआनन्द आधाआडन्दा अन्य www NNAwnoarnewmarnew Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10