Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 02
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
९० ૨૫
२२ ૧૪
जीव
૧૦૭ ૧૦૧ ૧૨
૧૩ ૧૧
प्रयो
११०
१७
घट
૨૨
૨૮ १२९
पुंडरीकने पुंडरीक रागद्वेष तो दूर रागद्वेष दूरे आत्म जे सिद्धाचल वंदता ते सिद्धाचल वंदतां पच्चिशी
वत्रीशी
प्रेयर्या बाहिरंग
बहिरंग प्रमदा पतिव्रता धर्मो, प्रमदा पतिव्रताना धर्मों घट वात चात
वात वातमा अपमानजे
अपमानजो वृतने
व्रतने सदभाव
सदभाव दवे मनिा
मानी विरा
वित्त आत्म
जीव वारी
वारो अगत्मा
जगत्मा चावा
ध्यावा सररिका
सरीखा जवि
जीव धारवा
धारवाने ढोर छे
दोर छे जग
१४६ १४९
१५४ १५९
१४
१६१ १६१
१२ १९
१७७ १७८
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 330