Book Title: Bhagwan Mahavir Ne Ganga Mahanadi Kyo Par Ki
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 3
________________ था कि यह पुल भारत में ही नहीं, एशिया भर में सबसे बड़ा पुल होगा। गंगा के सम्बन्ध में इस प्रकार विस्तार से लिखने का मेरा तात्पर्य यही है कि गंगा के विराट रूप से अपरिचित दूरस्थ व्यक्ति भी कल्पना कर सके कि गंगा क्या है? वह कितनी लम्बी-चौड़ी है? उसकी जलराशि कितनी विशाल है? नहरों के निकल जाने पर आज की क्षीण स्थिति में भी जब गंगा का यह विराट रूप है तो उस प्राचीन युग में तो उसकी विराटता वास्तव में ही बहुत महान् रही होगी। अतएव प्राचीन आचार्यों ने जो उसे महार्णव और समुद्ररूपिणी कहा है, वह ठीक ही कहा है। गंगा की चर्चा मूल प्रश्न की ओर अब चर्चा मूल प्रश्न पर आती है। भगवान् महावीर ने दीक्षित होने के बाद गंगा को कितनी ही बार उत्तर से दक्षिण में और दक्षिण से उत्तर में पार किया है। कितनी ही बार वे वैशाली आदि उत्तरी बिहार प्रदेश से गंगा पार कर राजगृह आदि दक्षिणी बिहार में आए और कितनी ही बार राजगृह आदि दक्षिणी बिहार प्रदेश से गंगा पार कर वैशाली आदि उत्तरी बिहार प्रदेश में गए। आज के बिहार प्रांत से कितनी ही बार आज के उत्तरप्रदेश में ओर उत्तरप्रदेश से बिहार प्रांत में पधारे। भगवान् महावीर ने वैशाली और वाणिज्य ग्राम में 12 वर्षावास (चौमास) किए हैं। और चौदह वर्षावास राजगृह और नालन्दा में किए हैं। बिहार प्रान्त का मानचित्र लेकर कोई भी देख सकता है-वैशाली - वाणिज्य ग्राम (मुजफ्फरपुर) और राजगृह-नालन्दा (पटना) के बीच गंगा बह रही है, जो बिहार को उत्तर और दक्षिण दो भागों में विभक्त करती है। गंगा को पार किए बिना भगवान् वैशाली से राजगृह और राजगृह से वैशाली नहीं आ जा सकते थे। भगवान् महावीर का साधनाकाल और गंगा दीक्षा लेने के बाद छद्मस्थ-साधनाकाल में भी भगवान् महावीर ने गंगा को कितनी बार पार किया है। गंगा पार करते समय की वह घटना तो जैनग्रन्थों में सुप्रसिद्ध ही है, जबकि भगवान् सुरभिपुर और राजगृह के बीच नौका द्वारा गंगा को पार कर रहे थे, और एक भीषण तूफान में नौका उलझ गई थी, डूबने लगी थी। आचार्य भद्रबाहु स्वामी की सर्वाधिक प्राचीन रचना आवश्यक नियुक्ति में तथा जिनदास महत्तर की आवश्यक चूर्णि में आज भी यह उल्लेख उपलब्ध है।।6 यह घटना दीक्षा से दूसरे वर्ष की है। भगवान् महावीर ने गंगा नदी क्यों पार की? 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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