Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
4 | भगवान् महावीर ने गंगा महानदी क्यों पार की?
भारतवर्ष की नदियों में गंगा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, गुजराती एवं बंगला आदि प्रान्तीय भाषाओं का भारतीय साहित्य, गंगा की गौरवगाथाओं से भरा पड़ा है। गंगा देवनदी है।
प्राचीन भारतीयों का विश्वास था कि गंगा देवताओं की नदी है। जैनाचार्य भी गंगा को देवताधिष्ठित नदी मानते हैं। गंगा का विशाल आकार एवं विराट रूप ही उसकी देवत्व-प्रसिद्धि में मुख्य हेतु है। प्राचीन काल का भारतीय चिन्तन ही कुछ ऐसा था कि हर विराट और विशालकाय प्राकृतिक पदार्थ उनकी दृष्टि में देव अथवा देवाधिष्ठित हो जाता था। हिमालय आदि उत्तुंगपर्वतों तथा महासागरों के देवत्व का रहस्य इसी भावना में निहित है। गंगा महार्णव और समुद्ररूपिणी
अतएव गंगा एक सामान्य नदी नहीं, अपितु महानदी है। जैनागम गंगा को 'महार्णव' भी कहते हैं। 'महार्णव' का अर्थ है-महासागर। स्थानांग सूत्र के टीकाकार आचार्य अभयदेव ने इसलिए मूल के 'महार्णव' शब्द को उपमावाचक मानकर अर्थ किया है कि विशाल जलराशि के कारण वह महार्णव अर्थात् महासमुद्र जैसी है-"महार्णव इव या बहूदकत्वात्।" जैनाचार्यों ने ही नहीं, वैदिक परम्परा के पुराणों में भी गंगा को 'समुद्ररूपिणी" कहा है। गंगा की सहायक नदियाँ
वैदिक परम्परा गंगा में नौ सौ (900) नदियों का मिलना मानती है।' जैन परम्परा की दृष्टि से चौदह हजार (14000) नदियाँ गंगा में मिलती हैं।' उक्त नदियों में यमुना, सरयु, कोशी और मही आदि वे नदियाँ भी हैं, जो स्वयं भी आगम साहित्य में महार्णव और महानदी : के नाम से सुप्रसिद्ध है।
51
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राचीन युग में गंगा के प्रवाह की विस्तीर्णता
हजारों नदियों का प्रवाह गंगा में मिलता है, अतः गंगा का प्रवाह चौड़ाई में बहुत विशाल हो गया है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार समुद्र में प्रवेश करते समय गंगा का पाट साढ़े बासठ योजन का चौड़ा है। और गंगा की गहराई एक कोस - अधिक एक योजन की है। यह ठीक है कि उक्त कथन के अतिवादी शब्दों पर कुछ प्रश्न एवं तर्क खड़े हो सकते हैं, किन्तु इस पर से इतना तो निश्चित रूप से प्रमाणित होता है कि गंगा का प्रवाह प्राचीनकाल में बहुत ही विशाल रहा है। इसीलिए उसे महार्णव और समुद्ररूपिणी जैसे नामों से अभिहित किया गया है। प्राचीन काल में न तो गंगा में से ही कोई नहरें निकाली गई थीं
और न यमुना, सरयु, गंडकी, शोण आदि उसकी सहायक नदियों से ही। अतः गंगा के विशाल प्रवाह की तत्कालीन विस्तीर्णता की सहज ही कल्पना की जा सकती है। समवायांग सूत्र के अनुसार तो गंगा हिमालय (चुल्लहिमवंत) से प्रवाहित होते ही कुछ अधिक 24 कोस का विस्तार ले चुकी थी।' उक्त अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णनों पर से और कुछ नहीं तो इतना तो सिद्ध हो ही जाता है कि भगवान् महावीर के युग में गंगा का प्रवाह एक विशाल एवं विराट् प्रवाह माना जाता था। इसीलिए आचार्य शीलांक ने भगवान् महावीर द्वारा नौका से गंगा पार करने का वर्णन करते हुए, गंगा को दुस्तर, अगाध और अणोरपार कहा है।12 गंगा आज के युग में
भगवान् महावीर के युग से अढाई हजार वर्ष जितना लम्बा काल बीतने पर आज भी गंगा की विराटता सुप्रसिद्ध हैं आज गंगा में से विशाल नहरें निकल चुकी हैं। यमुना, गोमती, सरय और शोण आदि गंगा की सहायक नदियों में से भी अनेकानेक विराट नहरें सिंचाई के काम में आ रही हैं। फिर भी गंगा अपनी विराटता को बनाए हुए है। वर्तमानकालीन वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार गंगा 1,557 मील के लम्बे मार्ग के बाद बंगसागर में गिरती है। यमुना, गोमती, सरयू, रामगंगा, गंडकी, कोशी और ब्रह्मपुत्र आदि अनेक सुप्रसिद्ध संयुक्त नदियों को साथ लेकर, वर्षाकालीन बाढ़ में, गंगा महानदी 18,00,000 घनफुट पानी का प्रस्राव प्रतिसेकेण्ड करती है।
अभी कुछ मास पूर्व पटना में, प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने, गंगा के पुल का शिलान्यास किया है। हिन्दुस्तान आदि दैनिक पत्रों में उन दिनों लिखा गया
.52 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
था कि यह पुल भारत में ही नहीं, एशिया भर में सबसे बड़ा पुल होगा।
गंगा के सम्बन्ध में इस प्रकार विस्तार से लिखने का मेरा तात्पर्य यही है कि गंगा के विराट रूप से अपरिचित दूरस्थ व्यक्ति भी कल्पना कर सके कि गंगा क्या है? वह कितनी लम्बी-चौड़ी है? उसकी जलराशि कितनी विशाल है? नहरों के निकल जाने पर आज की क्षीण स्थिति में भी जब गंगा का यह विराट रूप है तो उस प्राचीन युग में तो उसकी विराटता वास्तव में ही बहुत महान् रही होगी। अतएव प्राचीन आचार्यों ने जो उसे महार्णव और समुद्ररूपिणी कहा है, वह ठीक ही कहा है। गंगा की चर्चा मूल प्रश्न की ओर
अब चर्चा मूल प्रश्न पर आती है। भगवान् महावीर ने दीक्षित होने के बाद गंगा को कितनी ही बार उत्तर से दक्षिण में और दक्षिण से उत्तर में पार किया है। कितनी ही बार वे वैशाली आदि उत्तरी बिहार प्रदेश से गंगा पार कर राजगृह आदि दक्षिणी बिहार में आए और कितनी ही बार राजगृह आदि दक्षिणी बिहार प्रदेश से गंगा पार कर वैशाली आदि उत्तरी बिहार प्रदेश में गए। आज के बिहार प्रांत से कितनी ही बार आज के उत्तरप्रदेश में ओर उत्तरप्रदेश से बिहार प्रांत में पधारे। भगवान् महावीर ने वैशाली और वाणिज्य ग्राम में 12 वर्षावास (चौमास) किए हैं। और चौदह वर्षावास राजगृह और नालन्दा में किए हैं। बिहार प्रान्त का मानचित्र लेकर कोई भी देख सकता है-वैशाली - वाणिज्य ग्राम (मुजफ्फरपुर) और राजगृह-नालन्दा (पटना) के बीच गंगा बह रही है, जो बिहार को उत्तर और दक्षिण दो भागों में विभक्त करती है। गंगा को पार किए बिना भगवान् वैशाली से राजगृह और राजगृह से वैशाली नहीं आ जा सकते थे। भगवान् महावीर का साधनाकाल और गंगा
दीक्षा लेने के बाद छद्मस्थ-साधनाकाल में भी भगवान् महावीर ने गंगा को कितनी बार पार किया है। गंगा पार करते समय की वह घटना तो जैनग्रन्थों में सुप्रसिद्ध ही है, जबकि भगवान् सुरभिपुर और राजगृह के बीच नौका द्वारा गंगा को पार कर रहे थे, और एक भीषण तूफान में नौका उलझ गई थी, डूबने लगी थी। आचार्य भद्रबाहु स्वामी की सर्वाधिक प्राचीन रचना आवश्यक नियुक्ति में तथा जिनदास महत्तर की आवश्यक चूर्णि में आज भी यह उल्लेख उपलब्ध है।।6 यह घटना दीक्षा से दूसरे वर्ष की है।
भगवान् महावीर ने गंगा नदी क्यों पार की? 53
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
उत्तरी बिहार की गंडकी नदी भी एक विशाल जल-बहुल नदी है, जो नेपाल से निकलती है, और वैशाली के पास से होकर पटना के सम्मुख गंगा में मिलती है। वैशाली से वाराणसी लौटते हुए लेखक को भी गंडक नदी नौका से पार करनी पड़ी थी। भगवान् महावीर के जीवन की एक घटना है कि भगवान् ने वैशाली के पास नौका द्वारा जब गंडकी को पार किया तो नाविक ने उतराई का पैसा न मिलने पर भगवान् को वहीं रोक लिया था। उसी समय शंखराज का भानजा 'चित्रकुमार' राजदूत बनकर कहीं जा रहा था, उसने भगवान् को छुड़ाया।”
भगवान् महावीर ने 10 वाँ वर्षावास श्रावस्ती में किया था। वर्षावास के अनन्तर सानुलट्ठिय, दृढभूमि, नालुका, सुभोगं, सुच्छेत्ता, मलय, हत्थिसीस, तोसलि, मोसलि, सिद्धार्थपुर आदि नगरों में विहार करते हुए पुनः श्रावस्ती आए और श्रावस्ती से कौशाम्बी, वाराणसी,राजगृह, मिथिला आदि नगरों में भ्रमण कर ग्यारहवाँ वर्षावास वैशाली में किया। पाठक देख सकते हैं-उक्त विहार यात्रा में भगवान् ने बिहार और उत्तरप्रदेश की कितनी ही छोटी-बड़ी नदियाँ पार की हैं और गंगा महानदी को तो इस एक ही वर्ष में दो बार पार किया। एक बार तो श्रावस्ती से कौशाम्बी और वाराणसी आते हुए, क्योंकि ये दोनों नगर श्रावस्ती से गंगा के इस पार दक्षिणी उत्तरप्रदेश में हैं। दूसरी बार कौशाम्बी, वाराणसी, राजगृह से वर्षावास के लिए वैशाली को जाते हुए, चूँकि वैशाली गंगा के उस पार उत्तरी बिहार में है। केवल ज्ञान के बाद गंगा-संतरण
और भी कितने ही वर्णन हैं इस प्रकार गंगा आदि नदियों को पार करने के। परन्तु हम साधनाकाल की इन घटनाओं का अधिक विस्तार नहीं देना चाहते। भगवान् महावीर की, केवल ज्ञान के बाद की विहार चर्या, अधिक महत्त्वपूर्ण है। वह एकमात्र धर्म प्रचार की दृष्टि से ही की गई थी, अतः उसका प्रस्तुत लेख के उद्देश्य के साथ मौलिक सम्बन्ध है। विस्तार से तो नहीं, संक्षेप में ही, केवलज्ञानोत्तर तीर्थंकर दशा में गंगा और अन्य नदियों को पार करने के प्रसंग इस प्रकार हैं:1. भगवान महावीर का 13 वाँ वर्षावास राजगह में था। वर्षावास के बाद
गंगा-नदी पार कर विदेह देश में गए और 14 वाँ चौमास वैशाली में किया। 2. वैशाली का चौमास पूर्ण होने के बाद गंगा पार कर वत्सदेश की राजधानी
कौशाम्बी में आए। वहाँ से फिर गंगा पार कर श्रावस्ती आदि होते हुए 15
54 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
वाँ चौमास, विदेह देश के वाणिज्य ग्राम में किया। इस वर्ष में दो बार गगा
महानदी पार की। 3. वाणिज्य ग्राम के बाद 16 वाँ चौमास राजगृह में किया। यहाँ भी वाणिज्य
ग्राम और राजगृह के बीच में गंगा पार की। 4. राजगृह से चम्पा गए। ओर वहाँ से सिन्धु देश की लम्बी विहार यात्रा की।
पुनः लौटकर विदेह के वाणिज्य ग्राम में 17 वाँ चौमास किया। इस विहार यात्रा में भी अनेक छोटी-मोटी नदियाँ और गंगा महानदी पार की। 5. वाणिज्य ग्राम का चौमास पूर्ण कर आलभिका, वाराणसी, आदि क्षेत्रों में विहार करते हुए 18 वाँ चौमास राजगृह में किया। यहाँ भी भगवान् ने विदेह
से मगध आदि प्रदेशों में विचरण करने के लिए बीच में गंगा नदी पार की। 6. भगवान् का 19 वाँ चौमास भी राजगृह में था। वहाँ से आलभिका आदि
नगरों में विहार करने के बाद वत्सदेश की राजधानी कौशाम्बी में शतानिक नरेश की रानी मृगावती को दीक्षा दी और वहाँ से लौटकर विदेह देश की वैशाली नगरी में 20 वाँ चौमास किया। यहाँ भी दक्षिणी बिहार से उत्तरी बिहार में जाते हुए गंगा पार की। 7. वैशाली का चौमास समाप्त कर गंगा पार की और उत्तर प्रदेश के अहिच्छत्र
तथा काम्पिल्यपुर आदि नगरों में विहार किया, और फिर दुबारा गंगा पार
कर वाणिज्य ग्राम में 21 वाँ चौमास किया। 8. वाणिज्य ग्राम के बाद गंगा पार कर मगध में विहार यात्रा और राजगृह में 22
वाँ चौमास। 9. राजगृह सै कयंगला, श्रावस्ती आदि में विहार और 23 वाँ वर्षावास वाणिज्य
ग्राम में। यहाँ भी दक्षिणी बिहार से उत्तरी बिहार में आते हुए गंगा पार की। 10. वाणिज्य के बाद गंगा पार कर अगला 24 वाँ चौमास राजगृह में किया। 11. राजगृह से चम्पा आदि में विचरण कर 25 वाँ चौमास मिथिला में किया।
यहाँ भी दक्षिणी बिहार से उत्तरी बिहार में मिथिला जाते हुए गंगा पार की। 12. मिथिला से गंगा पार कर अंगदेश की राजधानी चम्पा में आए और चम्पा
से लौटते समय गंगा पार कर 26 वाँ चौमास पुनः मिथिला में किया। इस वर्ष भी दो बार गंगा पार की गई।
भगवान् महावीर ने गंगा नदी क्यों पार की? 55
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
13. मिथिला से वैशाली, श्रावस्ती आदि में विचरण कर 27 वाँ चौमास पुनः मिथिला में किया यहाँ गंडकी आदि कितनी ही नदियाँ पार की।
14. मिथिला से पांचाल, श्रावस्ती, अहिच्छत्र, हस्तिनापुर आदि में विहार कर 28 वाँ चौमास वाणिज्य ग्राम में किया। इस वर्ष के लम्बे विहारों में अनेक छोटी-मोटी नदियों के साथ गंगा नदी भी दो बार पार की। 15. वाणिज्य ग्राम से गंगा पार कर अगला 29 वाँ चौमास राजगृह में किया। 16.राजगृह का वर्षावास समाप्त कर चम्पा, पृष्ठ चम्पा आदि नगरों में विहार
करते हुए भगवान् ने सुदूर दशार्णभद्र देश में जाकर दशार्णभद्र राजा को दीक्षा दी। वहाँ से लौटते समय गंगा पार कर विदेह देश के वाणिज्य ग्राम में 30 वाँ चौमास किया।
17. वाणिज्य ग्राम से कोशल- पांचाल, साकेत, काम्पिल्य, श्रावस्ती आदि नगरों में विचरण कर 31 वाँ चौमास वैशाली में किया। इस वर्ष के विहार में भी आते-जाते अनेक नदियों के साथ गंगा महानदी भी दो बार पार की। 18.भगवान् का 32 वाँ चौमास भी वैशाली में ही था। वहाँ से गंगा पार कर मगध प्रदेश में आए, और 33 वाँ चौमास राजगृह में किया ।
19. भगवान् का 34 वाँ चौमास नालन्दा में था । वहाँ से गंगा पार कर विदेह देश में गए, और 35 वाँ चौमास वैशाली में किया।
20. वैशाली से कौशल, पांचाल, सूरसेन आदि सुदूर देशों में भ्रमण किया, और साकेत (अयोध्या), काम्पिल्य, सौर्यपुर, मथुरा आदि में विचरण कर 36 वाँ चौमास मिथिला में किया । यहाँ भी यमुना, गोमती, सरयू आदि अनेक नदियों को पार करने के साथ आते-जाते दो बार गंगा नदी भी पार की।
21. मिथिला से गंगा पार कर मगध में आए, 37 वाँ चातुर्मास राजगृह में किया।
22. भगवान् का 38 वाँ चौमास नालन्दा में था । वहाँ से गंगा पार कर विदेह देश में पधारे और 39 वाँ चौमास मिथिला में किया।
23.भगवान् का 40 वाँ चौमास मिथिला में था । वहाँ से गंगा पार कर मगध में आए। अग्निभूति और वायुभूति गणधर वैभारगिरि पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त हुए, और भगवान् का यह 41 वाँ चौमास राजगृह में हुआ। "
द्वितीय पुष्प
56 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
केवल ज्ञान की प्राप्ति के बाद भगवान् महावीर के विहार का वह संक्षिप्त दिग्दर्शन है। गंगा और अन्य नदियों को पार करने की यह एक साध परण-सी स्थूल रूपरेखा है। इसमें शोण, इरावती, कोशी, मही और फल्गु आदि कुछ प्रमुख नदियों के नाम नही आए हैं, भगवान् महावीर के प्राचीन जीवन चरित्रों में भी इनका उल्लेख नहीं है। परन्तु विहार यात्रा का जो भौगोलिक पथ बताया गया है, इसमें उक्त नदियों का बीच में आना निश्चित है। जैसे कि कौशाम्बी से राजगृह जाते हुए शोण आदि कितनी ही जलधाराएँ बीच में पड़ती हैं। अतः इधर-उधर आते-जाते भगवान् महावीर ने उक्त नदियों के साथ अनेक अनुक्त नदियों को भी पार किया था। भगवान् महावीर ने गंगा महानदी क्यों पार की?
उपर्युक्त उल्लेखों पर से एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न खड़ा होता है कि भगवान् महावीर ने गंगा जैसी महानदियों को किसलिए पार किया? बार-बार गंगा पार करना, कभी-कभी तो एक वर्ष में दो-दो बार पार करना, क्या अर्थ रखता है? जैन शास्त्रानुसार एक छोटे से छोटे जल कण में भी असंख्य जलकाय के जीव होते हैं। उस प्राचीन काल में गंगा का कितना विराट रूप था, उस पर से अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी विशाल जलराशि पार करनी होती थी, और जलकाय के जीवों की कितनी अधिक हिंसा हो जाती थी? जल में वनस्पति आदि अन्य स्थावर जीव तथा द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीव भी होते हैं। अतः गंगा की विशाल जलधारा को पार करते समय असंख्य कीटाणु, मेढक और मछली आदि त्रस जीवन की हिंसा का होना भी निश्चित है। जल में निगोद भी रहता है, और निगोद के एक सूक्ष्म से सूक्ष्म कण में भी अनंत जीव होते हैं, यह किसी भी जैनागमों के अध्येता से छुपा हुआ नहीं है।
प्रश्न है, जब जल-सन्तरण में इस प्रकार एक बहुत बड़ी हिसा होती है, तब भगवान् ने बार-बार गंगा जैसी महानदियों को क्यों पार किया? ऐसी क्या आवश्यकता आ पड़ी थी उन्हें, जो इतनी बड़ी हिंसा का दायित्व लेकर भी उन्होंने गंगा को पार करना, आवश्यक माना। गंगा और गंगा जैसी महार्णवाकार अन्य नदियों का सन्तरण बिना नौका के नहीं हो सकता था। उस युग में गंगा आदि विराट नदियों पर पुल नहीं बने थे। जैन, बौद्ध तथा वैदिक परम्परा के किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में गंगा आदि विराट नदियों पर पुल होने का कोई उल्लेख
भगवान् महावीर ने गंगा नदी क्यों पार की? 57
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
नहीं है। अस्तु, नौका ही एक मात्र उक्त नदियों के जल सन्तरण का साधन था। इसीलिए भगवान् ने नौका पर बैठकर ही गंगा पार की। और जब भगवान् ने गंगा पार की तो उनके साथ जो हजारों साधु-साध्वी और थे, उन्होंने भी नौकाओं द्वारा ही गंगा पार की। भगवान् की नौका के साथ सैकड़ों ही अन्य नावों का विशाल काफिला गंगा के विशाल प्रवाह पर तैरता चला होगा, उसका जरा मन की आँखों के समक्ष कल्पनाचित्र प्रस्तुत कीजिए। आपके मन में सहज ही यह प्रश्न खडा होगा कि आखिर इन सब विशाल जल-यात्राओं का क्या उद्देश्य था? नौका भी जल-पथ का एक वाहन ही है। वाहन (सवारी) साधु के लिए निषिद्ध है। फिर बार-बार नौकाओं का क्यों प्रयोग किया गया?
भगवान् के समक्ष जलसन्तरण से सम्बन्धित क्या वे ही समस्याएँ थीं, जो सामान्य साधुओं के लिए प्राचीन आगम एवं आगमेतर साहित्य में उल्लिखित हैं। क्या भगवान् को दुष्ट राजा या चोरों का भय था? क्या सिंह आदि खूखार जंगली जानवरों का खतरा था? क्या भीषण दुष्काल पड़ रहे थे कि भिक्षा नहीं मिल रही थी? क्या अनार्य-म्लेंछों का हमला हो रहा था? क्या किसी भंयकर रोग के लिए दुर्लभ औषधि की तलाश थी? आखिर क्या था ऐसा कि भगवान् को गंगा जैसी महानदियों को पार करना पड़ा? आज के एक मुनिराज ने तो संयम-साध ना के आवेश में यहाँ तक लिखा है कि मेरा वश नहीं चलता है, यदि मेरा वश चले तो मैं अचित्त पृथ्वी पर भी पैर न रखें, मैं अचित्त वायु का श्वास-प्रश्वास के रूप में प्रयोग भी न करूँ, मैं अचित्त जल भी न पीऊँ, और अचित्त आहार का भी सदा के लिए परित्याग कर दूं" एक ओर आज के मुनिजी अचित्त वस्तुओं के प्रयोग के लिए भी अपनी विवशता बतला रहे हैं और दूसरी ओर भगवान् महावीर हैं कि गंगा जैसी महानदियों के विशाल प्रवाहों को अपने विराट साधुसंघ के साथ नौकाओं द्वारा तैर रहे हैं। विशाल जल प्रवाहों को तैरने के लिए भगवान् को क्या विवशता थी, क्या मजबूरी और क्या लाचारी थी, जो आज के एक साधारण मुनि के वैचारिक स्तर से भी नीचे उतर गए। भगवान् बार-बार जलबहुल प्रदेशों में घूमते रहे, गंगा जैसी समुद्राकार महानदियों को नौकाओं द्वारा पार करते रहे, परन्तु जलकाय, निगोद और त्रस जीवों की इतनी बड़ी हिंसा की
ओर ध्यान नहीं दिया। क्या भगवान् के पास आज के मुनियों जितनी भी विवेकदृष्टि नहीं थी? अहिंसा, संयम का इतना भी कुछ लक्ष्य नहीं था? कितनी विचित्र
58 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
विडम्बना है आज के चिंतन की? आज के कुछ अहंग्रस्त साधु भगवान् से भी बढ़कर संयमी घोषित कर रहे हैं अपने आपको! अहिंसा का बहुत बड़ा खटका है न अंतर्मन में! खटका सच्चा है या झूठा-यह तो वे ही कह सकते हैं। हाँ खटके का नारा अवश्य बुलंद है।
बात और कुछ नहीं है। कोई भी ऐसा आपवादिक कारण नहीं है, जो भगवान् के समक्ष रहा हो। भगवान् महावीर और उनके संघ द्वारा नदी पार करने का एकमात्र हेतु धर्म एवं नीति का प्रचार है। भगवान् महावीर के युग में सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति बड़ी विचित्र थी। जातीय श्रेष्ठता का अहंकार जनमानस पर बुरी तरह छाया हुआ था और इस कारण तत्कालीन शूद्रजन पशुओं से भी बुरी स्थिति में जीवन गुजार रहे थे। नारी जाति पर भी भयंकर अत्याचार हो रहे थे। यज्ञों में मूक पशुओं को होमा जा रहा था। यहाँ तक कि देवी-देवताओं की प्रसन्नता के लिए मनुष्यों तक की बलि दी जा रही थी। धर्म भी अर्थहीन क्रियाकाण्डों का केवल शवमात्र रह गया था। भगवान् को जन-जीवन में से यह सब अज्ञान-अंध कार दूर करना था। इसके लिए उन्होंने धार्मिक एवं सामाजिक उभयमुखी क्रांति का सिंहनाद किया, फलतः वे अपने विशाल साधुसंघ को साथ लिए तूफानी नदियों को भी पार कर सुदूर प्रदेशों में विहार करते रहे। इसके लिए उन्हें बार-बार अनेक विराट् जलधाराओं तथा वन-प्रदेशों को पार करना पड़ा। इसी पथ पर आगे आनेवाले वे साहसी आचार्य और मुनि भी आए, जो अपने युग में आन्ध्र, तमिल, महाराष्ट्र, कोंकण, मालव आदि आर्येतर और विदेश कहे जानेवाले देशों में भी धर्म प्रचार हेतु पहुँचे और वहाँ की तत्कालीन असंस्कृत जनता को धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से संस्कारी बनाया। जैन मुनियों द्वारा सुदूर जावा, सुमात्रा आदि देशों में विहार यात्रा करने के भी कुछ ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं, जो अभी विचाराधीन हैं, जिनकी चर्चा यथावकाश फिर कभी हो सकेगी।
ध्वनिवर्धक जैसे नगण्य प्रश्न पर और सुदूर प्रदेशों की दीर्घ विहार यात्राओं पर हिंसा और परिग्रह तक के दोषों की अर्थहीन चर्चा करनेवाले महानुभाव प्रस्तुत लेख पर यदि ठण्डे दिमाग से कुछ विचार करेंगे तो अवश्य ही भगवान् महावीर की उपरिचर्चित विहारचर्या का मर्म समझ सकेंगे, हिंसा-अहिंसा की स्थूल धारणाओं से ऊपर उठकर उनके वास्तविक तथ्य को हृदयंगम कर सकेंगे।
भगवान् महावीर ने गंगा नदी क्यों पार की? 59
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
संदर्भ :1. (क) अमरकोष 1/10/31
(ख) स्कन्दपुराण, काशीखण्ड, गंगा सहस्रनाम, 29 वाँ अध्याय। 2. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति 4 वक्षस्कार 3. (क) स्थानांग सूत्र 5/3
(ख) समवायांग 24 वाँ समवाय। (ग) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति 4 वक्षस्कार। (घ) निशीथसूत्र 12/42
(ङ) बृहत्कल्पसूत्र 4/32 4. (क) स्थानांग सूत्र 5/2/1
(ख) निशीथ 12/42 (ग) बृहत्कल्प 4/32
बहूदकतया महार्णवकल्पा - बृहत्कल्प भाष्य टीका, 5616 5. समुद्ररूपिणी स्वर्या - स्कन्दपुराण, काशी खण्ड, 29 अध्याय 6. आसां नवशतैर्युक्ता गंगा पूर्वसमुद्रगा - हारीत, 1/7 7. चोद्दसहिं सलिलासहस्सेहिं समाणा - जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति 4 वक्षस्कार 8. स्थानांग सूत्र 5/2/1 9. मुहे वा सटिंठ जोयणाइं अद्धजोयणं च विक्खभेणं।
-जंबू. 4 वक्ष. 10. सकोसं जोयणं उव्वेहेणं।
-जंबू. 4 वक्ष. 11. गंगा-सिंधुओं णं महाणईओ पवाहे साइरेगेणं चउबीसं कोसे वित्थारेणं पण्णत्ता।
-सम. 24 वाँ समवाय 12. मंदाइणी जयगुरू, संपत्तो पउर दुत्तरागाहजलं।
तओ तं अणोरपारं पलोयमाणस्स भवणगुरुणो .... भयवं पि तेणे य समयं समारूढो णावाए।
-चउप्पत्र महापुरिसचरियं (महावीर चरियं) 13. हिन्दी विश्वकोष, नागरी प्रचारिणी सभा । 14. वेसालिं नगरिं वाणियगामं च नीसाए दुवालस अंतरावासे वासावासे उवागए।
-कल्पसूत्र, 1 अधि. 6 क्षण 15. रायगिह नगरं नालंदं च बहाहिरियं नीसाए चउद्दस्स अंतरावासे वासावासं उवागए।
-कल्पसूत्र, 1 अधि. 6 क्षण
.60 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________ 16. (क) वीरवरस्स भगवओ, नावारूढस्स कासि उवसग्गं -आव. नियुक्ति 471 (ख) तओ सामी सुरभिपुरं गओ, तत्थ गंगा उत्तरीयव्वा.... भयवं नावाए ठिओ -आव. चूर्णि, 471 17. तत्यंतरा गंडइया नदी, तं सामी णावाए उत्तिण्णो। ते णाविया सामि भणति -देहि मोल्लं .... ___ -आवश्यक चूर्णि 494 18. भगवान् महावीर का साधनाकाल साढे बारह वर्ष का है। अत: 12 चौमास छद्मस्थ __काल के हैं। 19. विहार यात्रा में भगवान् महावीर द्वारा, गंगा पार करने का यह वर्णन कल्पसूत्र, आवश्यक नियुक्ति आवश्यक चूर्णि, महावीर चरियं-गुणचंद्राचार्य, महावीर चरियं-नेमिचंद्राचार्य, त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र-आचार्य हेमचन्द्र, श्रमण भगवान् महावीर - श्री कल्याण विजय गणी, तीर्थंकर वर्द्धमान आदि अनेक प्राचीन तथा अर्वाचीन ग्रन्थों पर आधारित है। 20. तस-उदग-वणे घट्टण। बृहत्कल्प भाष्य 5632 जलोद्भवानां त्रसानां उदकस्य वा सेवालादिरूपस्य वनस्पतेर्वा संघट्टनम्। -बृहत्कल्प भाष्य टीका 5632 21. उदए चिक्खिल परित्तऽणंतकाइग तसे -बृहत्कल्प भाष्य 5641 उदए चिक्खिल परित्तणंत काइग तसे - बृहत्कल्प भाष्य 5641 उदके चिक्खलादिक पृथिवीकायः, वनस्पतयश्च परीत्तकायिका अनंतकायिका वा त्रसाश्च द्वीन्द्रियादयो भवेयुः -बृह. भा. टीका आउक्काए णियमा वणस्सती अत्थि, -निशीथ चूर्णि, 4240 22. स्थानांग 5/2/1, बृहत्कल्प भाष्य, 5663, निशीथ भाष्य, 4 54 भगवान् महावीर ने गंगा नदी क्यों पार की? 61