Book Title: Bhagwan Mahavir Dwara Mahanadiyo Ka Santaran
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 3
________________ पूर्वविद् भद्रबाहु स्वामी ने आवश्यक निर्यक्ति में भगवान् महावीर के जीवन की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की है। दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों परम्परओं में महामान्य आचार्य की महामान्य कृति आवश्यक नियुक्ति के आधार पर हम यहाँ भगवान् महावीर की नौका-यात्रा के कुछ प्रसंग उपस्थित कर रहे हैं, जो पीछे के सभी आचार्यों को मान्य रहे हैं। "सुरभिपुरं सिद्धदत्तो गंगा कोसिय विऊ य खेमलतो। नागसुदाढे सीहे कंबलसबलाणं जिणमहिमा ।।469।। वीरवरस्स भगवतो नावारूढस्स कासि उवसग्ग। मिच्छादिट्ठिपरद्धं कंबलसबला समुत्तारे ।।47111-1 -आवश्यक नियुक्ति सुरभिपुरं भगवान् गतः तत्र गंगा नाम नदी, सिद्धयात्रो नाम नाविकः, तत्र नावमारोहति जने, कौशिको महाशकुनापरपर्यायो वासितवान्, खेमलकश्च शकुनविद्वान् अवादीत् -यदि परमेतस्य भगवतो प्रभावेन जीवांम् इति, अत्रान्तरे नागो नागकुमारः, सुदंष्ट्रनामा सिंहजीवो, भगवत उपसर्ग कर्तुमारब्धवानिति शेषः, कंबलशबलौ च नागकुमारौ तं वारयित्वा जिनस्य भगवतो महिमां चक्रतुः।" । -आचार्य मलयगिरि टीका उपर्युक्त गाथा में स्पष्ट है कि भगवान् महावीर ने साधनाकाल में सुरभिपुर के पास गंगा नदी नौका से पार की थी। उस समय एक नागकुमार असुर ने भगवान् पर उपसर्ग किया और नाव डुबाने लगा, तो भगवान के भक्त कंबल और शबल नाम देवों ने उपसर्ग का निवारण किया। इस प्रकार जिनेश्वर देव की महिमा की। "वेसलिए पडिमं संखो गणराय पिउवयंसो य। गण्डइआसरि तिन्नोचित्तो नावाए भगिणिसुओ।।494।। -आवश्यक नियुक्ति वैशाल्यां नगर्यां शंखो नाम गणराजः पितृवयस्यः- सिद्धार्थराजमित्रं भगवतः पूजामकरोत् तथा भगवन्तं वणिग्ग्राम प्रति प्रचलितमन्तरा गण्डकिकां सरितं - नदी तीर्णं नाविकैधृतं चित्रः शंखराजस्य भगिनीसुतो नावा समागच्छन् मोचितवान् पूजितवांश्च। ___ -मलयगिरि टीका 64 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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