Book Title: Bhagwan Mahavir Dwara Mahanadiyo Ka Santaran
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
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किया गया, जो प्रसंगतः+ आवश्यक था। साथ ही दूसरी बात यह है कि एक मास में तथा एक वर्ष कितनी बार नदियाँ पार करनी, यह भी नहीं बताया गया, जो कि उत्तरकालीन आगमों में वर्णित है। क्या आचारांग के काल में तथाकथित नौका-यात्रा द्वारा नदी पार करने की परिगणना की कोई स्थिति नहीं थी? विद्वत्जन इस पर ऐतिहासिक दृष्टि से कुछ विचार करें तो अच्छा है।
बृहत्कल्प सूत्र के चतुर्थ उद्देशक में गंगा, जमुना, सरयू, कोशिका और मही-इन पाँच महार्णव, महानदियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है
"नो कप्पइ निग्गंथाण निग्गंथीण वा पंचमहण्णवाओ महानदीओ उठ्ठिाओ गणिआओ वज्जियाओ।
अंतोमासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो व उत्तरित्तए वा, संतरित्तए वा तंजहा-गंगाजमुनासरयूकोसियामही"
-32 टीका। भावार्थ है, ये पाँच महानदियाँ एक महीने के अंदर नौका द्वारा अथवा तैर कर दो बार या तीन बार पार नहीं करनी चाहिए। इसका अर्थ है, महीने में एक बार तो पार की ही जा सकती है। "दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो" में वा शब्द है, जिससे यह भी फलित हो सकता है कि दो वार भी पार की जा सकती हैं।
प्रश्न है, महानदियाँ तो शतद्रु, विपासा, नर्मदा, काबेरी, आदि अन्य भी महार्णव नदियाँ हैं। उनके सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा गया। क्या सूत्रकार को इतनी ही भौगोलिक जानकारी थी? यद्यपि भाष्यकर ने इनसे अन्य नदियों की भी कल्पना की है, फलितार्थ के रूप में। किन्तु, मूल पाठ में ऐसा क्यों नहीं है? यह प्रश्न विचाराधीन है।
उक्त उद्देशक में ही उणाला नगरी के समीप बहनेवाली एरावती नदी का वर्णन किया है, जो कहीं जंघा-संतारिम है और कहीं नौका-संतारिम है। यह नदी अर्ध योजन अर्थात् दो कोस चौड़ी है और प्रायः जंघा प्रमाण जल वाली है। इसे पैरों द्वारा पार करने का उल्लेख है। भंडोपकरण नदी के तट पर रख कर जल-मार्ग की जाँच करने के लिए नालिका (एक विशेष दंड, जो अपने परिमाण से चार अंगुल ऊँचा होता है) लेकर परले तट तक जाएँ और फिर लौटकर भंडोपकरण ग्रहण कर तीसरी बार पूर्व परीक्षित जल-मार्ग से नदी पार करे। इस प्रकार छह कोस की जल-यात्रा हो गई है। यह बृहत्कल्प भाष्य का वर्णन है। यदि जंघा-संतारिम जल-मार्ग न हो, तो नौका द्वारा भी पार करने का उल्लेख है।
भगवान् महावीर द्वारा महानदियों का संतरण 71
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