Book Title: Bhagwan Mahavir Dwara Mahanadiyo Ka Santaran Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf View full book textPage 2
________________ एक वार अचित्त हुआ पानी पुनः किस ऋतु में कितने काल बाद सचित्त होता है? यह किस आगम के आधार से माना जाता है। अनेक सचित्त वस्तुएँ अमुक प्रकार के प्रक्षेपण से कितने काल बाद अचित्त होती है? यह किस आगम के आधार से है? शास्त्र, ग्रन्थ आदि लिखना एवं रखना तथा पात्रों की परिगणना किस मूल आगम से मानी जाती है? वर्तमान के बीस विहरमानों के नाम और उनसे प्रतिक्रमण आदि की आज्ञा लेना, किस आगम के आधार पर है? जबकि वे स्वयं पंच-प्रतिक्रमण (दिन-रात आदि) के पक्षधर नहीं हैं? साथ ही विभिन्न संप्रदायों के प्रतिक्रमण आदि की विभिन्न विधियाँ किस आगम के आधार पर हैं? कहाँ तक गिनाया जाए, सैकड़ो ही बातें आगम में न होने पर भी मानी जाती हैं, जो उत्तरकालीन आचार्यों द्वारा स्थापित की गई हैं। अतः भगवान महावीर के नदी संतरण का प्रश्न भी एकान्त रूप से आगम के 'हां और ना' के साथ जोड़ना गलत है। यह सर्वथा सिद्ध है कि आगम भी विखण्डित हैं। वे अपने रूप में आज पूरे-के-पूरे अखण्ड नहीं रहे हैं। एक आगम में दूसरे आगम का स्वरूप जो वर्णित है, वह उस आगम में उपलब्ध नहीं है। प्रश्न व्याकरण सूत्र ही इसका प्रमाण है। अन्तकृतदशांग आदि सूत्रों के अनेक अध्याय, जो स्थानांग सूत्र में उल्लिखित हैं, वे आज इन आगमों में उपलब्ध नहीं हैं। साधारण शास्त्रज्ञ भी यह सब देख सकता है। आचारांग सूत्र का सातवाँ अध्याय पूर्णतया गायब है। उसका एक अक्षर भी उपलब्ध नहीं है आज। अतः भगवान् महावीर के नदी संतरण एवं अन्य प्रश्नों के समाधान के लिए वर्तमान खण्डित आगमों पर ही सब बातें छोड़ देना बौद्धिकता से परे की बात है। इस प्रकार तर्कहीन एकान्त अन्ध आग्रह से हम उत्तरकालीन अनेक महामान्य आचार्यों को झुठलाने का प्रयत्न कर रहे हैं, यह कितना दुराग्रह भरा दम्भ-जाल है। ___ अस्तु, हम यहाँ भगवान् महावीर के जीवन के लिए एकान्त रूप से आगमों को ही सर्वाधार नहीं मान सकते हैं। मूल आगमों में तो महावीर का जीवन-वृत्त एक बूंद जितना भी नहीं है। अधिकतर वर्णन, जिन्हें हम मानते हैं और प्रचारित करते हैं, वह सब उत्तरकालीन आचार्यों के मान्य ग्रन्थों में ही है। और, वे आचार्य ऐसे हैं, जो भगवान् के पश्चात् होते हुए भी काफी अधिक निकट हैं। भगवान् महावीर से 170 वर्ष बाद के आचार्य पंचम श्रुतकेवली, चतुर्दश भगवान् महावीर द्वारा महानदियों का संतरण 63 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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