Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Klasagarsuri Gyanmandie १२शतके उद्देशः ६. १०८२॥ %ARAKH य दो आलावगा भा०, एवं उत्तरपुरच्छिमेण दाहिणपञ्चच्छिमेण य दो आलायगा भा०, दाहिणपुरच्छिमेणं उत्तव्याख्या-18|रपुरच्छिमेण दो आलावगा भा० एवं चेव जाव तदा णं उत्तरपञ्चच्छिमे णं चंदे उवदंसेति दाहिणपुरच्छिमेणं प्रज्ञप्तिः राहू, जदा ण राह आगच्छमाणे वा गच्छमाणे विउव. परियारेमाणे चंदस्स लेस्सं आवरेमाणे २ चिट्ठति तदा ॥१०८२॥ णं मणुस्मलोए मणुस्सा वदंति-एवं खलु राहू चंद गे० एवं०, जदा णं राह आगच्छमाणे वा ४ चंदस्स लेस्सं आवरेत्ताणं पासेणं वीइवयइ तदा णं मणुस्मलोए मणुस्सा वदंति-एवं खलु चंदेणं राहस्म कुच्छी भिन्ना एवं०, जदा णं राह आगच्छमाणे वा ४ चंदस्स लेस्सं आवरेत्ताणं पच्चोसकइ तदा णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति-एवं ग्वस्लु राहुणा चंदे वंते एवं , जदा णं राहू आगच्छमाणे वा ४ जाव परियारेमाण वा चंदस्स लेस्स अहे सपक्खि सपडिदिसिं आवरेत्ताणं चिट्ठति तदा णं मणुस्मलोए मणुस्सा वदति-एवं ग्वल राहुणा चंदे घत्थे, एवं ॥ [प्र०] राजगृह नगरमा ( भगवान् गौतम) यावद्-आ प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! घणा माणसो परस्पर ए प्रमाणे कहे छे, यावत्-ए प्रमाणे प्ररूपेठे क 'ए प्रमाणे खरेखर राहु चंद्रने ग्रसे छे, ए प्रमाणे खरेखर राहु चंद्रने ग्रसे' हे भगवन् ! एवी रीते वे म होय ?[उ.] हे गौतम! बहु माणसो परस्पर जे कहे छे ते यावत् ए प्रमाणे मिथ्या-असत्य कहे . हे गौतम! हुं तो आ प्रमाणे कहुं छु, यावद् आ प्रमाणे प्ररूपुं छु-ए प्रमाणे खरेखर गहु महर्धिक (महाऋद्धिवाळो) यावद्-महासुखवाळो, उत्तम वस्त्रो, उत्तम *माला, उत्तम मुगंध अने उत्तम आभूषण धारण करनार देव है, ते राहुदेवना नव नामो कह्या छ, ते आ प्रमाणे-१ शंगाटक, २ जटिलक, ३ क्षत्रक. ४ खर, ५ दर्दुर, ६ मकर, ८ मत्स्य, ८ कच्छप अने ९ कृष्णसर्प. ते राहुदेवना विमानो पांच वर्णवाळा कह्या RECCASECS For Private And Personal

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