Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१०८१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir उद्देशक ६. रायगिहे जाव एवं वयासी बहुजणे णं भंते ! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खति जाव एवं परूवेड़ एवं खलु राहू चंद गण्हति एवं २, से कहमेय भंते! एवं १, गोयमा ! जन्नं से बहुजणे णं अन्नमन्नस्स जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि एवं खलु राहू देवे महिड्डीए जाव महेसक्खे बरबन्धरे वरमल्लधरे वरगंधधरे वराभरणधारी, राहुस्स णं देवस्स नव नामधेजा पण्णत्ता, तंजहा - सिंघाडए १ जडिलए २ खंभए [ खेत्तए ] ३ खरए ४ ददुरे ५ मगरे ६ मच्छे ७ कच्छ भे ८ कण्हसप्पे ९, राहुस्स णं देवस्स विमाणा पंचवन्ना पण्णत्ता, तंजहा - किन्हा नीला लोहिया हालिद्दा सुकिल्ला, अस्थि कालए राहुविमाणे खंजणवन्नाभे पण्णत्ते, अस्थि नीलए राहुविमाणे लाउयवन्नाभे प०, अस्थि लोहिए राहुविमाणे मंजिवन्नाभे पं०, अस्थि पीतए राहुविमाणे हालिद्दवन्नाभे पन्नत्ते, अस्थि सुकिल्लए राहुविमाणे भासरासिवन्नाभे पन्नत्ते ॥ जया णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउच्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं पुरच्छिमेणं आवरेत्ता णं पञ्चच्छ्रिमेण वीतीवयह तदा णं पुरच्छिमणं चंदे उवदंसेति पञ्चच्छिमेणं राहू, जदा णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं पञ्चच्छिमेणं आवरेत्ताणं पुरच्छिमेणं वीतीवयति तदा णं पञ्चच्छिमेणं चंदे उवदंसेति पुरच्छिमेणं राहू, एवं जहा पुरच्छिमेणं पञ्चच्छिमेणं दो आलावगा भणिया एवं दाहिणेणं उत्तरेण For Private And Personal १२ शतके उद्देशः ६ ॥१०८१॥

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