Book Title: Bhagvati Sutra Part 04 Author(s): Ghevarchand Banthiya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 7
________________ पृष्ट = n n 6 K. पंक्ति . अशुद्ध शुद्ध १८७४ नामक नामक नगर १८८२ दिक्रप्रोक्षक दिप्रोक्षक वारा ईए वा राईए १९२९ रोमञ्चित रोमाञ्चित १९६६ अंतिम परिब्वायए परिवायए २०२१ एगयआ एगयओ २०३८ वेमानिक वैमानिक २०६९. किती किसी २०७४ पण्णपुवे वण्णपुग्वे २१०८ कसायाओ कसायायाओ २११२ उमके उसके २१२२ आया य आयाइ य २१२२ अंतिम णो आया णो आयाइ नोंध-(१)पृष्ठ २०१४ पंक्ति १८ का पाठ पं. भगवानदासजी दोषी संपादित भाग ३ पृ. २६६ के अनुसार है और ऐसा ही पाठ सूरतवाली प्रति पृ. १०३४ में भी है, किंतु अन्य प्रतियों में-"अहवाएगयओ दुषएसिए खंधे,एगयओ तिपएसिए खंधे, एगयभो पंचपएसिए खंधे भवइ।"पाठ है । यह पाठ होना आवश्यक भी है । इसका अर्थ पृ. २०१५ पं. ७ में-'होता है' के आगे-"अथवा एक ओर एक द्विप्रदेशी स्कन्ध, एक ओर एक त्रिप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर पंच प्रदेशी स्कन्ध होता है"-होना चाहिए। (२) प. २०१५ पंक्ति १९ में-"अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ तिष्णि तिपएसिया खंधा भवति"-पाठ पं. भगवानदास दोषी सम्पादित भाग ३ पृ. २६६ में हैं, और उसीसे लिया है, किंतु अन्य प्रतियों में देखने में नहीं आया। (३) प. २०९० पंक्ति २ में "णो उबवाओ" पाठ पं. भगवानदास दोषी सम्पादित भाग ३ पृ. २९० में हैं और उसीसे लिया है, किन्तु अन्य प्रतिषों में नहीं है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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