Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ नवम शतक ढाल : १६६ सोरठा १. शतक आठमों एह हो संपूरण अर्थ थी । नवमों हि कहेह, चित्त लगाई सांभलो ॥ २. अष्टम शतक मझार, विविध पदारथ आखिया । नवमें पिण सुविचार, तेहिज भंगंतर करी ॥ ३. प्रथम उद्देशे भेव, जंबूद्वीप नीं वारता । वक्तव्यता तेहनी अछे । द्वितीय जोतिषी देव 1 ४. अंतरद्वीपा जेह, अष्टवीस उद्देश तसु । असोच्या नें गंगेय, उद्देशक बत्तीसमों ॥ ५. कुंडग्राम बलि जाण, पुरुष हृणं जे पुरुष नैं । नवमें शतक पिछाण, उद्देशा चउतीस ए ॥ ६. तिण काले नैं तिण समय, नगरी मिथला नाम । माणभद्र है चैत्य वर वर्णन अति अभिराम ॥ ७. समवसरया स्वामी तिहां, परषद वंदण जाय । जावत गोतम वीर नीं सेव करी कहै वाय ॥ ८. जंबूद्वीप प्रभू ! किहां, किण संठाण कहेव ? जंबूद्वीपपन्नती में कह्यो, यावत एवामेव ॥ परिवार । मझार ॥ ६. चउद लक्ष छप्पन सहस्र, नदी तणें पूरब पश्चिम थी मिले, लवणसमुद्र १०. किहां वाचना-अंतरे, जंबुद्वीपपन्नत्ती गांय । तिम कहिवो जोतिषी बिना, वर्णन सर्व कहाय ॥ ११. जंबूद्वीपपन्नती विषे जोतिषी वर्णन जाण । 1 ते तो इहां भणवू नहीं, अपर समस्त बखाण ।। १२. जोतिषि वक्तव्यता बिना, जंबूद्वीपपन्नती सूक्त । इण उद्देशा नों अछे, वाचनांतरे उक्त ॥ वा०— एवं जंबुद्दीवपण्णत्ती भाणियव्वा' इम कह्यो ते पाठ लिखिये - केमहालए गंभ! जंबूरी दीवे किमाचारभाव पडोवारे गं भंते ! बुरीने दीने पण्णत्ते ? गोवमा 1 अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सय्यदीयसमुद्दा सम्बभितर सव्वा बट्टे तेल्यापूपसंठाणसंठिए बट्टे रहचक्कवालठाणसंठिए, वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए एगं जोयणसयसहस्सं आयाम विक्खंभेणं, (१1७ ) | इत्यादि केतला लग कहिवो ते कहै छे - एवामेवत्ति तिणहिज न्याये सपुव्वाबरेण त्ति पूर्व तथा पश्चिम सहित नदी नां वृद तिणे करी । जंबुद्दीवे दीने नोट्स सविलासवसहस्सा उपरणं च सहस्सा भवतीति मक्खायें' । चउदै लाख छप्पन हजार नदी नीं विगत १. जं० ६।१६-२६ Jain Education International *** १. व्याख्यातमष्टमशतमथ नवममारभ्यते । ( वृ०प० ४२५ ) उक्ताः, नवमेऽपि त २. अष्टमशते विविधाः पदार्था भंग्यन्तरेोच्यन्ते 1 २५. जंबुवेजोस अंतरीचा असो कुंडग्णामे पुरिसे गवमम्मि एव (बु० प० ४२५) गंगेय | सम्म पोलीसा ॥ १ ॥ (स० ९ संग्रहणी माहा) 'जंबुद्दीवे' ति तत्र जम्बूद्वीपवक्तव्यताविषयः प्रथमोदेशकः, 'जोइस' ति ज्योतिष्य द्वितीयः 'अंतरदीव' ति अन्तरदीपविषया अष्टाविशति देश: गिय त्ति गांगेयाभिधानगारवक्कष्पतार्थी द्वात्रिशत्तमः 'पुरिसे' त्ति पुरुषः पुरुषं घ्नन्नित्या दिवक्तव्यतार्थश्चतुस्त्रिंशत्तमः । ( वृ० प० ४२५) ६. ते काले ते समएणं महिला नाम नवरी होत्या बप्पओ जाव भगवं गोयमे - वण्यओ माणिभद्दे चेतिए ७. सामी समोसढे, परिसा निग्गता पलुवासमाणे एवं बदासी ८. कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे ? किंसंठिए णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ? एवं जंबुद्दीवपण्णत्ती [१७ - ६।२६] भाणियव्वा जाव एवामेव । For Private & Personal Use Only १. सय्यावरे जंबूरी दीवे चोट्स सलिला संयसहस्सा छप्पन्नं च सहस्सा भवतीति मक्खाया । ( श० ९1१ ) वा० - 'एवामेव' त्ति उक्तेनैव न्यायेन पूर्वापरसमुद्रगमनादिना 'सपुव्वावरेणं' ति सह पूर्वेण नदीवृन्देनापरं सपूर्वापरं तेन । श० ६, उ० १, ढाल १६६ १ www.jainelibrary.org

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