Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 25
________________ ३३. एक शशि परिवार अठ्यासी ग्रह कह्या, नक्षत्र अठावीस चंद्र साथै रह्या। छ्यासठ सहस्र कोड़ाकोडि नवसौ कोड़ाकोड़ है। पिचोत्तर कोड़ाकोड़ तारां नी जोड़ है ॥ ३४. हिवै पुक्खरोद समुद्र विषे प्रभु ! केतला, चंद्र प्रभास कियो करै करस्यै सुखनिला? इम सह द्वीप समुद्र विषे जोतिषि तणी, जावत स्वयंभूरमण जाव शोभा घणी॥ वा० -पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे केवतिया चंदा इत्यादि प्रश्ने ए उत्तरसंखेज्जा चंदा पभासिसु वा। इम आगलै सगल द्वीप समुद्र नै विषे पूर्व कह्य तिम अनुक्रमे संख्याता असंख्याता चंद्रादिक जाणिवा । द्वीप समुद्र नां नाम कहै छ-पुक्खरवर समुद्र तिवार पछी वरुण द्वीप, वरुणवर समुद्र । क्षीरवर द्वीप, क्षीरवर समुद्र । घृतवर द्वीप, घृतवर समुद्र । इक्षुवर द्वीप, इक्षुवर समुद्र । नंदीश्वर द्वीप, नंदीश्वर समुद्र, । अरुण द्वीप, अरुण समुद्र । अरुणवर द्वीप, अरुणवर समुद्र । अरुणवरावभास द्वीप, अरुणवरावभास समुद्र। कुंडल द्वीप, कुडलोद समुद्र । कुंडलवर द्वीप, कुडलवर समुद्र। कुंडल वरावभास द्वीप, कुंडलवरावभासोद समुद्र । रुचक द्वीप, रुचकोद समुद्र। रुचकवर द्वीप, रुचकवरोद समुद्र । रुचकवरावभास द्वीप, रुचकवरावभासोद समूद्र ।। हार द्वीप, हारोद समुद्र । हारवरद्वीप, हारावरोद समुद्र । हारवरावभास द्वीप, हारवरावभासोद समुद्र । रुचकद्वीप पछी असंख्याती योजन नी कोड़ाकोड़ि नां द्वीप समुद्र असंख्याता छ। इम यावत अर्द्ध राजू मठेरा में सर्व समुद्र द्वीप छ । अर्द्ध राजू जाझेरा में एक स्वयंभूरमण समुद्र छ त्रिण लाख जोजन अधिक अर्द्ध राज् मा छ। ते स्वयंभुरमण समुद्र पर्छ आगल अलोक छ। इम इत्यादिक ने विषे संख्याता जोतिषि चंद्रादिक तथा असंख्यात नक्षत्रादिक चार चरता हुआ गतकाले, चरै छ वर्तमान काले, चरस्य आगामि काले । जीवाभिगम' में कहा भी है - एसो तारापिंडो, सबसमासेण मणुयलोगमि । बहिया पुण ताराओ, जिणेहि भणिया असंखेज्जा ।। अंतो मणुस्सखेत्ते हवंति चारोवगा य उववण्णा । पंचविहा जोइसि या चंदा सूरा गह गणा य ।। तेणं पर जे सेसा चंदाइच्चगहतारनक्खत्ता । णत्थि गई णवि चारो, अवट्ठिया ते मुणे यब्वा ।। इत्यादि घणो ? ते पंडिते जाणिवो । ३३. अट्ठासीइं च गहा अट्ठावीसं च होइ नक्खत्ता । एगससीपरिवारो एत्तो ताराण बोच्छामि ॥१॥ छावट्ठि सहस्साई नव चेव सयाई पंच सयराई ति । (वृ० प० ४२८) ३४. पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा? पभासें ति वा ? पभासिस्संति वा ? एवं सब्वेसु दीवसमुद्देसु जोतिसियाणं भाणियवं जाव सयंभूरमणे जाव सोभिंसु वा, सोभिति वा, सोभिस्संति वा। (श० ६।५) वा०–'पुक्ख रोदे णं भंते ! समुद्दे केवइया चंदा' इत्यादौ प्रश्ने इदमुत्तरं दृश्यं-'संखेज्जा चंदा पभासिंसु वा ३ इत्यादि, 'एवं सव्वेसु दीवसमुद्देसु' त्ति पूर्वोक्तेन प्रश्नेन यथासम्भवं संख्याता असंख्याताश्च चन्द्रादय इत्यादिना चोत्तरेणेत्यर्थः ।। द्वीपसमुद्रनामानि चैवं-पुष्करोदस मुद्रादनन्तरों वरुणवरो द्वीपस्ततो वरुणोद: समुद्रः, एवं क्षीरबरक्षीरोदौ घृतवरघृतोदो क्षोदवरक्षोदोदौ नंदीश्वरवरनंदीश्वरोदी अरुणारुणौदी अरुणवरारुणवरोदौ अरुणवरावभासारुणवरावभासोदौ कुण्डलकुण्डलोदौ कुण्डलवरकुण्डलवरोदी कुण्डलवरावभासकुण्डलवरावभासोदो रुचकरुचकोदो रुचकवररुचकवरोदो रुचकवरावभासरुचकवरावभासोदी इत्यादीन्यसंख्यातानि, यतोऽसंख्याता द्वीपसमुद्रा इति ॥ (वृ० प० ४२८) ......"हारे दीवे हारे समुद्दे, हारवरे दीवे हारवरे समुद्दे, हारवरोभासे दीवे हारवरोभासे समुद्दे, ताओ च्चेव वत्तब्वताओ........ (जीवा० ३।६३५) । सोरठा ३५. 'जंबुद्वीप रै मांहि, बे चंदा बे सूर छै । लवणे दुगुणां ताहि चिउं चंदा दिनकर चिहं । ३५. जंबुद्दीवे 'जंबुद्दीवे णं दीवे दो चंदा पभासिसु (जीवा० ३।७०३) लवणे"लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदा पभासिसु. (जीवा० ३७२२) १. यह समग्र वर्णन देखें-जीवा० ३८४८-६४६ २. जी० ३१८३८।१,२१,२२ श० ६, उ०२, ढाल १६६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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