Book Title: Be Sanskrit Stavan Author(s): Dharmkirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ [4] कामितमशनैः शनिराधत्ते / राहुर्बाहुबलं बहु दत्ते / केतुः कीर्तिसुखाय / तेषां ये जगदीश भवन्तं / वामानन्दनमतिशयवन्तम् / मनसि नयन्ति चिराय // 4 // चारुमहोदयरत्नकरण्डम् / भवभयसागरतरणितरण्डम् // खण्डितपरपाखण्डम् / / श्रीजयसारकजमार्तण्डम् / / नत्वा वामासृनुमचण्डम् // नन्दत यूयमखण्डम् // इति श्री पार्श्वनाथलघुस्तवनम् / / संवत 1684 वर्षे कार्तिकवदि-चतुर्दशीदिने शिनीस / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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