Book Title: Be Sanskrit Stavan Author(s): Dharmkirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229538/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बे संस्कृत स्तवन -सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय फुटकर हस्तलिखित पत्रोमांथी प्राप्त थयेला बे संस्कृत स्तवनो यथामति संपादित करीने अत्रे रजू करवामां आवे छे । बेमां प्रथम स्तवन आदिनाथ भगवाननुं छे, जेना प्रणेता वाचक हेमहंस गणि छे। आ स्तवनमा मात्र अकारान्त पदो-वर्णो ज छे, अने छतां तेनी सरलता नोंधपात्र छे. बीजुं पार्श्वनाथ स्तवन छे । तेनी पांचमी कडीमा 'जयसार' एवो निर्देश छे, ते तेना कर्तानो निर्देश होवानुं जणाय छे. । ३-४ कडीमां पार्श्वनाथ भगवानने क्रमश: नवे ग्रहोना रूपमा वर्णव्या छे, ते ध्यान खेंचनारी बाबत छे । श्री आदिनाथस्त्वनम् नाभिनामनरनाथचन्दनम् । पापतापशमनाथचन्दनम् ॥ केवलाक्षरपदाप्तिहतवे । केवलाक्षरपदैरहं स्तुवे ॥ १ ॥ अमलतमकमलकलनयनकरचरणकं . सकलकरधवलकरवदनमपगतमलम् । भरतवरभरतधरजनकमघभरहरं । प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ।।२।। प्रणयनतसदशशतनयनधरसदमर प्रततततकनकमयकमलगतपदतलम् । अपरमतगहनवनदहनवनदवसंमं । प्रथममनवरतमबनमत शमदमधरम् ॥३॥ भवनवनगगनतलसदनसदमरसदः प्रसरपरसनवरसरचननवनवनवम् । दधतमलममलमपशकलजगदवगम प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥ ४ ॥ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [82] रजतमयकलशशरदमलजलधरशरत् प्रगतमलधवलकरगगनगजस्यशसम् । अचलतरपरमपदलनयकरमरजस प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥५॥ कमलभवकमलशयनगरहरशरर्भव प्रवरलसदमरमददमनपरमदनहम् । समसमवसरणवरवरणगतमतमसं प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥ ६ ॥ प्रबलतमजवनगमपवनपरवशचलत् फलददलचपलतरकरणहयवशकरम् । प्रणतजनजननजरमरण भवभयहरं प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥७॥ स्वजनधनकनकहयपदगमदकलगज त्यजनपरमवतमसहरणदशशतकरम् । करणरणरणकभरशरभनवजलधरं प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥ ८ ॥ चरणसरवकरणगतदशकहतहयवचः प्रकटकरवचनमयसमयधरगणधरम् । सततमशरणकजनशरणपदशतदलं प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥ ९ ॥ असंमशमभवनसममशमहयवनमहं कलहवनदहनशमसजलनवजलधरम् । कपटनटनटनसमघटनभवगतरसं प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥ १० ॥ कलशयवचमरशरमकरवररथपद ध्वजनपदकमलतलललनरतशतमखम् । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [83] डमरभरगरलधरहननवनधरसखं प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥ ११ ॥ नरकगजकलभदलदलनखरनखरख प्रखरराजमथनसममचलपदपथरथम् । तमनवमनवमरससवनगतमलचयं प्रथममनवरतमवनमत शमदमधरम् ॥ १२ श्रीसोमसुन्दरगरिममन्दिरसुमुनिसुन्दरपूजितं श्री आदिनाथं गुणसनाथं य इति विनुवति सन्ततम् । तेनाशुभासुरनरसुरासुरराजपदवी लभ्यते क्रमतोऽपि विमला मुक्तिकमलाकामिनी परिरभ्यते ॥ १३ ॥ इति श्रीयुगादिस्तवनम् । महोपाध्याय श्री हेमहंसगणिकृतम् । सुन्दरदेवगणिलिखितम् । श्री पार्श्वनाथलघुस्तवनम् धर्म्ममहारथसारथिसारम् । सरससुकोमलवचनविचारम् । सुचरितसलिलासारम् । सिद्धिवधूवक्षःस्थलहारम् । केवलकमलाली [ला ]गारम् । नागद्रहशृङ्गारम् ॥ १ ॥ मारविकारनिवारय(यि)तारम् । तारस्वरसुरगीताचारम् । क्षत्रियराजकुमारम् । स्फारफणावलिमण्डलधारम् । कारंकारं विनयमपारम् । वन्दे देवमुदारम् ॥ २ ॥ दिवसपतिः प्रतिभयनिस्तारी । चन्द्रश्चारुकलाविस्तारी | मङ्गलउदयाकारी । किं च बुधः सुधियामुपकारी । सुद्धगुरुरामयदोषनिवारी । शुक्रो विक्रमकारी ॥ ३ ॥ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [4] कामितमशनैः शनिराधत्ते / राहुर्बाहुबलं बहु दत्ते / केतुः कीर्तिसुखाय / तेषां ये जगदीश भवन्तं / वामानन्दनमतिशयवन्तम् / मनसि नयन्ति चिराय // 4 // चारुमहोदयरत्नकरण्डम् / भवभयसागरतरणितरण्डम् // खण्डितपरपाखण्डम् / / श्रीजयसारकजमार्तण्डम् / / नत्वा वामासृनुमचण्डम् // नन्दत यूयमखण्डम् // इति श्री पार्श्वनाथलघुस्तवनम् / / संवत 1684 वर्षे कार्तिकवदि-चतुर्दशीदिने शिनीस / /