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त्रिपिटक के अध्ययन की उपयोगिता * 13 कौमारभृत्य की जीवनी तथा उनके द्वारा कुछ कठिन रोगों की चिकित्सा किये जाने की चर्चा है, जो बहुत अर्थों में उदीयमान तथा नये डाक्टरों के लिए आज भी प्रासंगिक है।
चुल्लवग्ग में प्रथम दो बौद्ध संगीतियों का वर्णन तो है ही, देवदत्त के संघ से अलग होने की बात भी वर्णित है। अतः यहां ऐतिहासिक सामग्री है।
फिर, इस पिटक में कौन प्रव्रजित होने योग्य है, कौन अयोग्य है और क्यों, इसके साथ प्रव्रज्या, उपसंपदा के नियम, शिष्य एवं उपाध्याय तथा अन्तेवासी, एवं आचार्य के परस्पर कर्तव्यों का विस्तार से वर्णन है। भगवान बुद्ध के विचार कैसे उदार थे - ये यहां दिखाई पड़ते हैं।
__ अभिधम्मपिटक में उच्चतर धर्मो का पुंखानुपंखी वर्णन है। नाम और रूप कैसे मिलते हैं। चित्त कितने प्रकार के हैं और विभिन्न प्रकार के चित्तों की उत्पत्ति के मूल क्या हैं - इन पर गहराई से विचार किया गया है। यहां कौन-सा धर्म हानिकारक है, कौन-सा लाभकारक है - यह भी दिखाया गया है। इसे पढ़कर, जानकर लोग वैसे धर्मो का अभ्यास करते हैं जिनसे उनका कल्याण हो सके।
पालि तिपिटक बुद्ध के मुख से निःसृत वचनों का प्रामाणिकतम संकलन है। विशेष कर सुत्तपिटक तथा विनय पिटक में छठी और पांचवी शताब्दी ई.पूर्व का भारतीय जीवन प्रतिबिम्बित है।
सुत्तपिटक के पांच निकायों में वैसे सुत्तों का संग्रह हैं, जिन्हें भगवान तथा उनके कुछ पंडित श्रावकों ने उपदिष्ट किया है। इसमें छठी और पांचवी शताब्दी ई.पू. के भारत का सामाजिक जीवन चित्रित है। कई सुत्तों में श्रमणों, ब्राह्मणों तथा परिव्राजों के जीवन तथा सिद्धान्तों का विवरण है। गौतम बुद्ध के विचारों का वर्णन है।
गौतमबुद्ध की पारम्परिक जीवन का स्रोत भी मज्झिम निकाय में पाये जाने वाले कई सुत्त हैं जैसे अरियपरियेसना सुत्त, महासच्चक सुत्त तथा बोधिराजकुमार सुत्त। उस समय दुष्कर चर्यायें क्या थी तथा सिद्धार्थ ने बोधिप्राप्ति के लिए कौन-कौन सी दुष्कर चर्याएँ की- इनका स्पष्ट विवरण बोधिराजकुमार सुत्त में हैं। इसी सुत्त में भगवान ने अपने अनुभव की बात बोधिराजकुमार से कही और यह भी कहा कि 'न खो सुखेन सुखं अधिगन्तब्बं, और यह भी कि 'न खो दुक्खेन सुखं अधिगन्तब्बं, इस तरह उन्होंने मध्यम मार्ग का प्रतिपादन किया।
सुत्तपिटक के कई सुत्तों से बुद्ध का व्यक्तित्व प्रकट होता है। अक्कोस सुत्त (अंगुत्तरनिकाय पंचकनिपात) में जब अक्कोस भारद्वाज भगवान को गाली देता है तब भगवान बुद्ध का शांत व्यक्तित्व प्रकट होता है और निम्नलिखित बातें कहकर वे भारद्वाज के हृदय में परिवर्तन लाते हैं -
'ब्राह्मण, क्या कोई मित्र या रिश्तेदार तुम्हारे यहाँ कभी आते हैं?
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