Book Title: Bauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Author(s): Dharmchand Jain, Shweta Jain
Publisher: Bauddh Adhyayan Kendra

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Page 13
________________ त्रिपिटक के अध्ययन की उपयोगिता डॉ. अंगराज चौधरी इसके पूर्व कि मैं कछ तिपिटक (त्रिपिटक) के अध्ययन की उपयोगिता के बारे में कहूँ, मैं 'पिटक' शब्द के अर्थ पर कुछ कहना चाहूँगा। अनेक विद्वान् 'पिटक' शब्द का अर्थ पिटारी करते हैं। उनके अनुसार चूंकि सभी सुत्त एक पिटारी में, विनय संबंधी नियम दूसरी पिटारी में और अभिधम्म की बातें तीसरी पिटारी में थी, इसलिए ये क्रमशः तीन पिटक कहलाये - सुत्त पिटक, विनय पिटक, तथा अभिधम्म पिटक । ताड़ पत्रों पर जब बुद्ध के उपदेश लिखे गये तब तो अलग-अलग पिटारियों में रखे जाने की बात उचित लगती है और हम जानते हैं कि श्रीलंका में लिखे गये ई. पू. 29 में वट्टगामिनी अभय के समय तिपिटक लिखा गया। पर पिटक शब्द का प्रयोग तिपिटक लिखे जाने के पूर्व ही अशोक के बाद सांची और भरहुत के अभिलेखों में मिलता है।। इन स्तूपों पर लिखे अभिलेखों में भिक्षुओं को सुत्तन्तिक, पेटकी, धम्मकथिक, पंचनेकायिक आदि कहा गया है, जिनसे स्पष्ट है कि बुद्ध वचनों का पिटक, सुत्त तथा पञ्चनिकाय आदि में वर्गीकरण बुद्धवचन में लिखे जाने के पूर्व ही हो गया था। डॉ. कीथ आदि विद्वानों का कहना है कि पिटक का अर्थ पिटारी न होकर 'धर्मग्रंथ' होना चाहिए। केसमुत्ति सुत्त में ऐसा प्रयोग दिखता है - एथ तुम्हे कालामा, मा अनुस्सवेन, मा परम्पराय, मा इतिकिराय, मा पिटकसम्पदानेन, मा तक्कहेतु, मा नयहेतु, मा आकारपरिवितक्केन, मा दिट्ठिनिज्झानखन्तिया, मा भब्बरूपताय, मा समणो नो गरुति। __यदा तुम्हे कालामा, अत्तनाव जानेय्याथ-इमे धम्मा अकुसला, इमे धम्मा सावज्जा, इमे धम्मा विब्रुगरहिता, इमे धम्मा समत्ता समादिन्ना अहिताय दुक्खाय संवत्तन्ती 'ति अथ, तुम्हे कालामा पजहेय्याथ। * 5-6 फरवरी, 2011 को आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रदत्त आधार वक्तव्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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